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मजदूरों को बदमाश बताकर किया था इंकाउटर, कोर्ट ने पुलिसकर्मियों को नहीं दी जमानत
इलाहाबाद: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फर्जी इनकाउंटर में चार मजदूरों का पकड़कर मार डालने के आरोपी भोजपुर, गाजियाबाद थाने में तैनात रहे पुलिस कांस्टेबल सूर्यभान व सुभाष चन्द्र की जमानत अर्जी खारिज कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति विपिन सिन्हा तथा न्यायमूर्ति इफाकत अली खान की खण्डपीठ ने दोनों पुलिस अधिकारियों की आजीवन कारावास की सजा के खिलाफ दाखिल अपील पर अर्जी की सुनवाई करते हुए दिया है। सीबीआई की तरफ से अधिवक्ता ज्ञानप्रकाश व अर्जी पर वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल चतुर्वेदी ने पक्ष रखा।
मालूम हो कि थाना प्रभारी लाल सिंह ने पुलिस टीम के साथ अदम्य साहस दिखाने पर प्रोन्नति पाने की लालच में हापुर-गाजियाबाद रोड पर स्थित पुलिया के पास से चार मजदूरों को पकड़ा और मोदीनगर रोड के पास ईंख के खेत में मुठभेड़ में मार गिराया। मुठभेड़ को वास्तविक मुठभेड़ दिखाने के लिए कई थानों की पुलिस भी बुला ली गयी। 8 नवम्बर 1996 को दिन में साढ़े तीन बजे ताबड़तोड़ फायर हुआ और चार कथिम बदमाशों को मार गिराने का दावा किया गया। स्थानीय लोगों के विरोध व सबूतों के चलते सरकार ने घटना की जांच सीबीआई को सौंप दी। जिसमें फर्जी मुठभेड़ का खुलासा हुआ। गाजियाबाद की सीबीआई कोर्ट ने थाना प्रभारी सहित चार पुलिस कर्मियों रणवीर सिंह, लाल सिंह, सूर्यभान व सुभाष चन्द्र को हत्या का दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनायी। पुलिस कर्मियों ने जसवीर उर्फ पप्पू, जलालुद्दीन, अशोक व परवेश को फर्जी मुठभेड़ में मार गिराया गया। रणवीर कांस्टेबल की मौत हो चुकी है। तीन आरोपी जेल में है। दो आरोपी कांस्टेबलों ने हाईकोर्ट में जमानत अर्जी दाखिल की थी। कोर्ट ने आरोपों व साक्ष्यों को देखते हुए गंभीर अपराध में जमानत देने से इंकार कर दिया।
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स्मारक घोटाले में जांच की स्टेटस रिपोर्ट तलब
इलाहाबाद: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के शासनकाल में हुए स्मारक घोटाले में अभी तक हुई जांच की स्टेटस रिपोर्ट मांगी है। घोटाले की जांच विजिलेंस कर रही है। स्मारक घोटाले में पूर्व मुख्यमंत्री मायावती, पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन, बाबूराम कुशवाहा और कई तत्कालीन विधायक आरोपी हैं। स्मारक निर्माण में लगे कई अभियंता और अधिकारियों के खिलाफ भी जांच चल रही है। इस मामले में 2014 में प्राथमिकी दर्ज करायी गयी थी। मामले के अनुसार 2007 से लेकर 2012के बीच लखनऊ में कई पार्का और स्मारकों का निर्माण कराया गया था। निर्माण कार्य में भारी धंधाली का आरोप लगाकर तो सपा सरकार के शासनकाल में इस मामले की जांच बैठा दी गयी। निर्माण कार्य लोक निर्माण विभाग, नोएडा प्राधिकरण आदि के द्वारा कराया गया। लोकायुक्त द्वारा की गयी जांच में करीब 1410 करोड़ रूपये के घोटाले की बात आयीं है। इसे लेकर शशिकांत आर्या उर्फ भावेश पाण्डेय ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है। मुख्य न्यायामूर्ति डी.बी.भोसले और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की पीठ ने प्रदेश सरकार से जांच की प्रगति रिपोर्ट तलब की है।
अध्यापक भर्ती मामला-याचिकाओं की सुनवाई अपील के साथ 26 को
इलाहाबाद: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अध्यापक भर्ती काउन्सिलिंग चार सितम्बर 2018 को समाप्त होने के बाद दाखिल याचिका पर राहत देने से इन्कार कर दिया है और कहा है कि जो भी नियुक्ति होगी वह याचिका के निर्णय पर निर्भर करेगी। कोर्ट ने जुबैदा खान व 120 अन्य की याचिका को कुलभूषण मिश्र व अन्य की विचाराधीन विशेष अपील के साथ सम्बद्ध कर दिया है। खण्डपीठ ने विशेष अपील पर राज्य सरकार से जवाब मांगा है। जिसकी सुनवाई 26 सितम्बर को होगी। काउन्सिलिंग के बाद दाखिल होने वाली सभी याचिकाओं को कोर्ट ने विशेष अपील से सम्बद्ध कर दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति डी.के सिंह ने दिया है। याचियों का कहना है कि चयन परिणाम में व्यापक अनियमितता बरती गयी है। फेल को पास व पास को फेल किया गया है। इसलिए काउन्सिलिंग में शामिल होने की अनुमति दी जाय। फिलहाल याचिकाओं की सुनवाई विचाराधीन अपील के साथ की जायेगी।
एससी-एसटी एक्ट की धारा 14ए की वैधता पर फैसला सुरक्षित
इलाहाबाद: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय पूर्णपीठ ने एससी-एसटी ऐक्ट की संशोधित धारा 14 ए की वैधानिकता की लंबी सुनवाई के बाद निर्णय सुरक्षित कर लिया है। कोर्ट के समक्ष सवाल है कि विशेष कोर्ट के निर्णय आदेश के खिलाफ कुल 180 दिन के भीतर अपील दाखिल करने की अवधि तय की गयी है। इसके बाद न्याय के दरवाजे बंद किये गये हैं। तो 180 दिन के बाद क्या संविधान के अनुच्छेद 226, 227 द.प्र.सं की धारा 482 की हाईकोर्ट की अन्तर्निहित व्यक्तियों व पुनरीक्षा अधिकारी का प्रयोग किया जा सकता है या नहीं। क्या 180 दिन के भीतर अपील दाखिल करने से वंचित रह गये। आरोपी या पीड़ित को कोई अन्य वैधानिक या संवैधानिक फोरम प्राप्त है या नहीं ?
अधिवक्ता विष्णु बिहारी तिवारी व अन्य की जनहित याचिका की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश डी.बी. भोसले, न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा तथा न्यायमूर्ति यशवन्त वर्मा की पूर्णपीठ कर रही थी। धारा 14 ए में व्यवस्था दी गयी है कि विशेष कोर्ट के निर्णय व आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील होगी। जमानत अर्जी पर पारित आदेश को भी अपील में चुनौती दी जायेगी। अपील 90 दिन में दाखिल हो सकेगी और इस अवधि के बीत जाने के बाद अगले 90 दिन की देरी कोर्ट माफ कर सकेगी। कुल 180 दिन बीत जाने के बाद पीड़ित को न्याय पाने का अवसर मिलेगा या नहीं। इसी गंभीर मुद्दे पर बहस की गयी। याची की तरफ से वरिष्ठ रवि किरण जैन, राजीव लोचन शुक्ला, विष्णु बिहारी तिवारी व कई अन्य राज्य सरकार के अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल व भारत सरकार के अपर सालीसिटर जनरल शशि प्रकाश सिंह ने पक्ष रखा। याचियों का कहना है कि जब न्याय के दरवाजे बंद हो गये हो तो संविधान के तहत हाईकोर्ट अपनी अन्तर्निहित शक्तियों का प्रयोग कर सकता है। सरकार का कहना है कि त्वरित न्याय देने के लिए बने कानून के उपबंधों को कड़ाई से लागू किया जाय। 180 दिन के बाद हाईकोर्ट को अपील की देरी की माफी देने का अधिकार नहीं है।
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