अखिलेश यादव जन्मदिन विशेष: हम लाए हैं तूफ़ान से सपा की कश्ती निकाल के

Akhilesh Yadav Birthday Special: भाजपा की धुरी यूपी में मोदी-योगी की लोकप्रियता की सुनामी में सबसे बड़े विपक्षी दल के तौर पर सपा की शक्ति को बचा पाना अखिलेश यादव की बड़ी उपलब्धि है।

Naved Shikoh
Published on: 1 July 2025 2:42 PM IST
Akhilesh Yadav Birthday Special
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Akhilesh Yadav Birthday Special (PHOTO CREDIT: social media)

Akhilesh Yadav Birthday Special: संघर्षों से लड़ने और बढ़ने की विरासत लिए अखिलेश यादव राजनीतिक कुशलता में अपने पिता मुलायम सिंह यादव से कम नहीं हैं। भाजपा की धुरी यूपी में मोदी-योगी की लोकप्रियता की सुनामी में सबसे बड़े विपक्षी दल के तौर पर सपा की शक्ति को बचा पाना अखिलेश यादव की बड़ी उपलब्धि है।

तब जब भाजपा के फैलाव में पिछले एक दशक में देश के शक्तिशाली दल टूट गए,बिखर गई,बौने हो गए। पार्टी को बचा पाना,संभाल पाना और ऐसे दौर में सपा के इतिहास में पहली बार 2024 में लोकसभा चुनाव में 37 सीटें जीतना अखिलेश की राजनीतिक दक्षता का चमत्कार है। इतनी सीटें तो मुलायम सिंह अपने स्वर्णकाल में भी नहीं जीत सके थे।

अभिनेत्रा राजकपूर के गीत के निर्देशन में राजनीतिक गाड़ी चलानी पड़ती है- ऐ भाई जरा देख के चलो, आगे ही नहीं पीछे भी, दाएं ही नहीं बाएं भी...

कहते हैं कि सियासत में युद्ध कौशल का प्रदर्शन हर जगह होता है। घर के बाहर विरोधी से ही नहीं घर के अंदर के प्रतिद्वंद्वीयो से भी लड़ना होता है।

मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहते अपने चाचा और उनके गुट से अखिलेश नहीं लड़ते तो शायद आज पिता मुलायम सिंह की कुर्सी का सौ फीसद हिस्सेदारी का हक नहीं मिल पाता। चाचा शिवपाल यादव उनकी समानांतर ताकत में होते। नेता जी के बाद पार्टी में एकक्षत्र ताकत का संकट तो गहराता ही। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने हर मोर्चे पर युद्ध लड़ा। अपनों से भी लड़ाई जीती और भाजपा के तीव्र तूफान में भी पार्टी की नैय्या बचा ली।

बसपा सुप्रीमों मायावती यूपी की शीर्ष नेताओं में शुमार हैं, भाजपा के स्वर्णकाल में बसपा विपक्ष के लायक भी नहीं रही। लगभग डेढ़ दशक तक ये कहा जाता रहा कि प्रियंका गांधी राजनीति में आ जाएं तो यूपी में कांग्रेस के पुराने दिन वापस आ जाएंगे। वो भी आईं कुछ ना कर पाईं। भाजपा व उसकी सरकार और योगी आदित्यनाथ के हिन्दुत्व के चेहरे की ताकत के आगे सब धराशाई हो गए।

मजबूत विपक्ष के तौर पर कोई बचा तो वो थी समाजवादी पार्टी। अखिलेश यादव ने सपा की नैय्या को कई तूफानों से बचाया,कमजोर नेतृत्व होता तो ताज्जुब नहीं कि बसपा और कांग्रेस की तरह सपा भी हाशिए पर पड़ी होती और सदन में भाजपा का एकक्षत्र राज रहता। ये सच है कि यूपी का मुख्यमंत्री बनने में अखिलेश यादव की योग्यता आधी थी और आधा पिता प्रेम था, पिता का श्रेय था। मुख्यमंत्री बनने से पहले अखिलेश की खुद की ताकत- अपने बूते पर चुनाव जीतते रहे।

2012 का विधानसभा चुनाव जीतने से पहले पूरी चुनावी कम्पेन का उन्होंने नेतृत्व किया। उस चुनाव में मुलायम चुनावी कम्पेन से गायब थे उन्होंने ने अखिलेश पर ऐसे जिम्मेदारी दी थी जैसे चील अपने बच्चे को आकाश की ऊंचाइयों पर ले जाकर फेंक देती है। जान बचानी है तो बाजुओं में ताकत पैदा करो,उड़ना सीखो और उड़ो। फिर सारा आकाश तुम्हारा होगा !

पिता की कोशिश और मार्गदर्शन पर पुत्र पूरी फरमाबरदारी से चलता भी रहा। उन्होंने रथयात्रा निकालकर पूरे प्रदेश के गांव-गांव जनता से मिले,जमीनी संघर्ष किया। सपा को गुंडे-माफियाओं की पार्टी कहने के आरोपों को ग़लत साबित करते हुए दागियों को पार्टी से दूर करने की साहसी और सराहनीय पहल की। डीपी यादव जैसे कई नेताओं को टिकट ना देने पर अड़े तो जनता में अखिलेश में आशा की एक नई किरण दिखने लगी।

"अखिलेश यादव को सत्ता मिली तो भी संकट थे और सत्ता के बाहर दमदार विपक्ष बने रहना भी बहुत मुश्किल था"

2012 में सपा सरकार ने विकास के नये कीर्तिमान स्थापित किए। अखिलेश यादव बेहद लोकप्रिय नेता बन कर उभरे। किंतु पार्टी में इतनी कलह थी उसे सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव जी भी नहीं संभाल सके।

दूसरी तरफ तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करने पर नई भाजपा का समुद्र देश में उफान ले रहा था। बावजूद इसके हो सकता था कि अखिलेश यादव के विकास कार्यों और लोकप्रियता के आगे भाजपा की सुनामी उत्तर प्रदेश में कोई खास असर नहीं दिखा पाती। लेकिन उन दिनों सत्तारूढ़ सपा में आपसी कलह सड़क पर उतर चुकी थी, जिसके कारण यूपी में अखिलेश के विकास कार्य और लोकप्रियता भाजपा को रोक नहीं सकी।

संघर्ष जारी है। 2027 के चुनाव में लगभग डेढ़ वर्ष शेष है। अखिलेश के सामने योगी आदित्यनाथ का हिन्दुत्व का लोकप्रिय चेहरा है। इस जटिल लड़ाई में कांग्रेस का साथ लेना ही पड़ेगा। योगी तीसरी बार जीत गए तो सपा को टूट-फूट से बचाना बेहद मुश्किल होगा। अखिलेश जीत गए तो यूपी में कांग्रेस के फैलाव को रोकना भी काफी जटिल होगा। सियासत के हर रास्ते में कांटे होते हैं। सफलता में भी असफलता में भी। कभी फूलों में कांटे छिप जाते हैं और हमें दिखाई नहीं देते।

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Priya Singh Bisen

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