महंत सुरेश दास का बयान- छुआछूत मध्यकाल के मुस्लिम शासन काल की देन

sudhanshu
Published on: 25 Sept 2018 7:50 PM IST
महंत सुरेश दास का बयान- छुआछूत मध्यकाल के मुस्लिम शासन काल की देन
X

गोरखपुर: गोरखनाथ मन्दिर में युगपुरुष ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ महाराज की 49वीं पुण्यतिथि एवं ब्रह्मलीन महन्त अवेद्यनाथ महाराज की चतुर्थ पुण्यतिथि समारोह के अन्तर्गत ‘‘सामाजिक समरसता भारतीय संस्कृति का प्राण है’’ संगोष्ठी में मुख्य अतिथि कटक उड़ीसा से पधारे महन्त शिवनाथ जी महाराज ने कहा कि दुनिया की श्रेष्ठतम हिन्दू संस्कृति, श्रेष्ठतम हिन्दू जीवन पद्धति एवं श्रेष्ठतम् सामाजिक व्यवस्था में जाति के आधार पर ऊँच-नीच की भावना और छुआछूत एक कोढ़ है। धार्मिक संकीर्णता भी हमारे समाज को रूढ़िगत बनाता है।

देश के सन्त-महात्मा एवं धर्माचार्य ने तो स्वतंत्रता के बाद से ही सामाजिक समरसता का अभियान छेड़ दिया। ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज एवं ब्रह्मलीन महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज ने तो इस विषय पर व्यापक जनजागरण का अभियान चलाया। किन्तु अधिकांशतः राजनीतिज्ञों ने ‘वोट बैंक’ के कारण एक तरफ तुष्टीकरण की नीति अपनायी तो दूसरी तरफ हिन्दू समाज में जातीय वैमनस्यता की खाई और चौड़ी की। उन्होनें कहा कि हम ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के वाहक है। हिन्दू संस्कृति तो कण-कण में भगवान का दर्शन कराती है। जहां अद्वैत वेदान्त का दर्शन गूंजा, उस संस्कृति में छुआछूत एवं धार्मिक संकीर्णता जैसी अमानवीय रूढ़िगत व्यवस्था की स्वीकृति कैसे की जा सकती है। हिन्दू समाज में छुआछूत, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, नारी-पुरूष जैसी किसी भी विषमता का कोई स्थान नहीं है और न ही ये शास्त्र सम्मत है।

हिन्दू समाज अपनी संस्कृति के शाश्वत पक्षों को पहचाने, संस्कृति को स्वीकारे और सामाजिक विकृति की त्याग करें। भारत माता का हर वह पुत्र जो भारतीय परम्परा का वाहक है वह एक समान है, एक जैसा है, न कोई ऊॅचा है न कोई नीचा है। उन्होंने आगे कहा कि मन में समरसता के बगैर सामाजिक समरसता कैसे सम्भव है? मन चंचल है, काम, क्रोध, लोभ, मोह, रागद्वेष से घिरा हुआ मन समरस समाज का हिस्सा कैसे बन सकता है। अतः हिन्दु संस्कृति और जीवन पद्धति से निर्मित शान्तचित्त एवं पवित्र मन ही सामाजिक समरसता का वाहक हो सकता है।

छुआछूत मिटाओ-देश बचाओ का है संकल्‍प

दिगम्बर अखाड़ा, अयोध्या के महन्त सुरेशदास महाराज ने कहा कि ‘छुआछूत मिटाओं और देश बचाओ’ का मंत्र फूंकना होगा। छुआछूत की भावना और धार्मिक संकीर्णता से हिन्दू समाज कमजोर होता है, राष्ट्र कमजोर होता है। सामाजिक समरसता को व्यवस्था परिवर्तन का हिस्सा बनाना होगा और सामाजिक समरसता अभियान के लिए शिक्षण संस्थाओं को आगे आना होगा। हिन्दू समाज में ऊंचनीच, छुआछूत, नारी-पुरूष जैसी विषमताओं का कोई स्थान नहीं है। सनातन हिन्दू धर्म ने कभी भी सामाजिक विषमता को स्थान नही दिया। सनातन धर्म की आर्ष परम्परा के ग्रन्थों के अनेक मंत्रों एवं अनेक ग्रन्थों की रचना उन्होंने की जिन्हे बाद में समाज में अछूत मान लिया गया। हमारे यहां वर्ण व्यवस्था थी किन्तु छुआछूत नही था। छुआछूत मध्यकाल के मुस्लिम शासन काल की देन है।

मुस्लिम काल में हिन्दू समाज में अनेक विकृतियां उत्पन्न हुईं और कालान्तर में वे रूढ़िग्रस्त हो गई। किन्तु अब समय आ गया है कि हमें समतायुक्त, शोषणमुक्त समाज की रचना करना चाहिये। भारत में सामाजिक विषमता की विषबेली विकसित हुई तो भगवान बुद्ध से रमणि महर्षि, स्वामी रामानन्द, नाथ पंथ की पूरी परम्परा, बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर और ब्रह्मलीन युगपुरूष महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज तथा ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज तक की महात्माओं, संतो की एैसी परम्परा मिलती है जो सदा इसके खिलाफ संघर्ष करते रहे हंै। भारत मे धर्मगुरुओं की एक श्रेष्ठ परम्परा रही है जो संस्कृति मेें आई विकृति के खिलाफ सदा लड़ते रहे है। छुआछूत के खिलाफ भारत में जारी संघर्ष का नेतृत्व आज भी गोरक्षपीठ कर रहा है। यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है भारत मानवता की भूमि है। भारत देवभूमि है और भारत एक समरस, संवेदनशील और सभी में एक ही परमात्मा का अंश मानने वाले दर्शन की भूमि है।

अतः कालान्तर में आयी छुआछूत जैसे विकृति का भारतीय समाज में होना एक अभिशाप है। उन्होंने आगे कहा राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता के लिए सम्पूर्ण हिन्दू समाज को एक करने का योगी आदित्यनाथ जी जो प्रयास कर रहे है, देश का सन्त समाज उनका नेतृत्व स्वीकार करता है। हम सभी हिन्दू समाज की रूढ़िगत व्यवस्थाओं को ध्वस्त कर भारत में एक ही जाति की स्थापना में लगे है, वह हिन्दू जाति होगी।

श्री राम सामाजिक समरसता के प्रतीक

अयोध्या से प्रधारे महन्त राममिलनदास महाराज ने कहा कि भगवान श्रीराम सामाजिक समरसता के प्रतीक है। एक चक्रवर्ती सम्राट केवट को सम्मानित करते है और केवट कहता है कि हम और आप एक विरादरी के हे। शबरी के जूठे बेर भगवान खाते हैं, जटायु को तारते है। ऐसी सामाजिक समरसता से मुक्त हिन्दू समाज की पुर्नप्रतिष्ठा करके ही हम समृद्ध और समर्थ भारत का निर्माण कर सकते है। हिन्दू समाज छुआछूत मिटाए और धर्मान्तिरत हो चुके अपनों के घर वापसी का मार्ग प्रशस्त करें। भारत की जाँति-पाँति और छुआछूत की व्यवस्था ने न केवल भारतीय समाज को अपितु दुनिया की मानवता को नुकसान पहुॅचाया है। हमारे समाज के इन्हीं रूढ़िग्रस्त व्यवस्थाओं ने हमको कमजोर बना दिया। आर्य समाज ने हिन्दू समाज की एकता के लिए स्वामी दयानन्द सरस्वती के निर्देशन में अभियान चलाया। आज भी छुआछूत को जड़ से उजाड़कर फेकने की आवश्यकता है। उन्होनें आगे कहा कि हम एक श्रेष्ठ संस्कृति के एवं एक श्रेष्ठ परम्परा के वाहक है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का संदेश देने वाली भारतीय संस्कृति में जाति के आधार पर ऊॅच-नीच छुआछूत एक विकृति हैं एक रस हिन्दू समाज ही एक संगठित राष्ट्र का निर्माण कर सकता है।

sudhanshu

sudhanshu

Next Story

AI Assistant

Online

👋 Welcome!

I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!