मेडिको-लीगल की लिखावट न समझ आने पर डाक्टर तलब, अस्‍पष्‍ट लिखवाट केस निस्‍तारण में बाधक: हाईकोर्ट

sudhanshu
Published on: 25 Sept 2018 7:36 PM IST
मेडिको-लीगल की लिखावट न समझ आने पर डाक्टर तलब, अस्‍पष्‍ट लिखवाट केस निस्‍तारण में बाधक: हाईकोर्ट
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लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने डाक्टर की टेढ़ी मेढ़ी व अस्पष्ट लिखावट न पढ़ पाने पर उसे 28 सितम्बर को तलब करते हुए पूंछा है कि क्या कोई उसके द्वारा तैयार की गयी मेडिकल रिपोर्ट को पढ़ व समझ सकता है। कोर्ट ने कहा कि यदि उक्त डाक्टर अगली तारीख पर संबंधित मेडिको लीगल की साफ साफ टंकित कापी के साथ पेश नहीं होता है तो उस पर दस हजार रूपये का हर्जाना ठोंका जायेगा और यह रकम उसके वेतन से वसूली जायेगी। कोर्ट ने अपर शासकीय अधिवक्ता रवि सिंह सिसोदिया को उक्त डाक्टर की उपस्थिति सुनिश्चित करने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि डाक्टरों की अस्पष्ट लिखावट से मुकदमों के त्वरित निस्तारण में बाधा आती है।

पहले भी कोर्ट जता चुकी है आपत्ति

इस प्रकार का यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पूर्व भी कई मामलों में कोर्ट ने पहले भी डाक्टरों की अस्पष्ट लिखावट से तैयार होने वाली मेडिको लीगल रिपोर्टों पर आपत्ति जतायी थी। जिस पर स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सेवाओं के महानिदेशक ने 8 नंवबर 2012 को एक सर्कुलर जारी कर प्रदेश के सभी मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को निर्देश दिया था कि समस्त मेडिको लीगल स्पष्ट तरीके से लिखे होने चाहिए। यह बात सामने आने पर कि सरकारी अस्पतालों में कम्प्यूटर आदि की समुचित व्यवस्था नहीं है, कोर्ट ने राज्य सरकार को दिसम्बर 2017 में निर्देशित किया था कि अस्पतालों में मेडिको लीगल रिपोर्टों को तैयार करने के लिए उचित व्यवस्था की जाये।

ये है मामला

दरअसल जस्टिस अजय लांबा व जस्टिस संजय हरकौली की बेंच के सामने मंगलवार को हत्या के प्रयास का एक मामला सुनवाई के लिये आया। पप्पू सिंह आदि ने कोर्ट में एक रिट याचिका दायर कर उनके खिलाफ सीतापुर के तम्बौर थाने पर दर्ज हत्या के प्रयास से संबधित प्राथमिकी को रद करने की मांग की थी। याचियों की ओर से तर्क से दिया गया कि सूचनाकर्ता की जो मेडिको लीगल रिपोर्ट है, वह घटना के चार दिन बाद की है और उसमें जो चोटें हैं, वे भी साधारण प्रकृति की हैं। जिससे हत्या के प्रयास का मामला ही नहीं बनता है। कोर्ट ने जब याचियों की ओर से पेश सूचनाकर्ता की इंजरी रिपेर्ट पढ़नी चाही तो वह इतनी टेढ़ी मेढ़ी व अस्पष्ट थी कि उसे पढ़ा नहीं जा सका।

इस पर कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि पहले भी आदेश दिया गया था कि मेडिको लीगल रिपोर्टें साफ-साफ पढ़ने में आने वाली होने चाहिए। किन्तु फिर भी डाक्टरों के रवैये में कोई बदलाव नहीं दिख रहा है। कोर्ट ने यह कहते हुए सीतापुर जिला चिकित्सालय के उस डाक्टर को तलब कर दिया, जिसने वह इंजरी रिपोर्ट तैयार की थी। वास्तव में सूचनाकर्ता ने सीतापुर जिला चिकित्सालय में तैयार जिस इंजरी रिपेर्ट का हवाला अपनी याचिका में दिया है उस रिपोर्ट में न तो डाक्टर का नाम और न ही उसका पदनाम और न ही रिपोर्ट पर अस्पताल की मुहर ही लगी थी।

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