बेटी के 17 साल के संघर्ष ने मां को कराया जेल से आजाद, गवर्नर ने दिया क्षमादान

गवर्नर से क्षमादान मिलने के बाद मर्डर के केस में 17 साल जेल में जिंदगी काटने वाली उर्मिला के चेहरे पर आज मुस्कान छाई हुई है। उसकी इस मुस्कान को वापस लौटाने में 20 वर्षीय उसकी बेटी और गांव के प्रधान का बड़ा योगदान रहा। ये मिस्ट्री अमेठी कोतवाली के पूरे गोपाल शुकुल के पुरवा गांव की है।

priyankajoshi
Published on: 12 Aug 2017 9:16 PM IST
बेटी के 17 साल के संघर्ष ने मां को कराया जेल से आजाद, गवर्नर ने दिया क्षमादान
X

अमेठी : गवर्नर से क्षमादान मिलने के बाद मर्डर के केस में 17 साल जेल में जिंदगी काटने वाली उर्मिला के चेहरे पर आज मुस्कान छाई हुई है। उसकी इस मुस्कान को वापस लौटाने में 20 वर्षीय उसकी बेटी और गांव के प्रधान का बड़ा योगदान रहा। ये मिस्ट्री अमेठी कोतवाली के पूरे गोपाल शुकुल के पुरवा गांव की है।

गर्भ की अवस्था में पति ने धक्के मार किया था बेघर

जानकारी के अनुसार रामअवतार ने अपनी बेटी उर्मिला का ब्याह नरैनी गांव निवासी किशन के साथ किया था। ब्याह के चार-पांच महीने बाद ही पति किशन ने उसे उस समय घर से धक्का मार कर निकाल दिया जब वो गर्भ से थी। जैसे तैसे समय बीता और उसने बेटी (लवली) को जन्म दिया। उर्मिला अब अकेली नहीं थी बल्कि उसके साथ एक ज़िंदगी और जुड़ गई थी। इसी बीच 1993 में परिजनों ने उर्मिला का दूसरा ब्याह सुल्तानपुर जिले के कादीपुर कस्बा निवासी बड़कऊ के साथ किया। तीनों हंसी खुशी रहने लगे थे।

आगे की स्लाइड्स में पढ़ें पूरी खबर...

इज्तज बचाने के लिए आरोपी को मारा था पत्थर, हो गई थी मौत

इसी बीच मई 1996 में वो मायके आई थी और यहां वो कुछ दिन रुकी। तभी उसकी ज़िंदगी में एक दूसरी और बड़ी आफत आ पड़ी। हुआ ये कि पट्टीदारी में एक लड़की थी जिसकी शादी जनपद प्रतापगढ़ के अहर विहर में हुई थी। उसका देवर बाबूलाल पुत्र दुर्गा अक्सर गांव आता था। 26 मई 1996 को बाबूलाल अपनी भाभी के मायके पहुंचा और फिर न जानें उसे क्या सूझी उसने गलत नियत के साथ उर्मिला से रेप की कोशिश की। उधर अपनी इज्ज़त जाते देख उर्मिला ने पत्थर उठाकर बाबूलाल को दे मारा। नतीजा ये हुआ कि बाबूलाल ने मौके पर दमतोड़ दिया और फिर नौबत मुकदमे तक आ गई।

2001 में डिस्ट्रिक्ट कोर्ट से हुई थी उम्रकैद की सजा

अमेठी कोतवाली में उर्मिला के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ और फिर चार दिनों बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। इधर मायके पक्ष के लोग गरीबी की मार से पहले ही टूटे हुए थे। नतीजतन डिस्ट्रिक्ट लेबल पर उर्मिला का न सिर्फ बेल ही खारिज हुई बल्कि 8 जून 2001 को कोर्ट ने उसको उम्र कैद की सजा सुना दिया।

17 साल बाद हाईकोर्ट से मिली थी बेल

उर्मिला की बेटी लवली ने मां को सलाखों के पीछे से बाहर लाने की मानों दिल में ठान ली। उसने अमेठी से लखनऊ तक के चक्कर काटना शुरु कर दिया। जिसमें गांव के प्रधान राजू शुक्ला उसके मददगार बने। इसी बीच उर्मिला को सुल्तानपुर जेल से लखनऊ जेल ट्रांसफर कर दिया गया। वहीं बेटी ने मां को जेल की सलाखों से बाहर लाने में एक-दो नहीं पूरे 17 साल लग गए। साल 2013 में उसने हाईकोर्ट से आर्डर कराकर मां को बाहर निकलवाया।

बेटी ने राज्यपाल के यहां दायर की थी क्षमा याचिका

उर्मिला की बेटी लवली इतने ही पर खामोश होकर नहीं बैठी बल्कि मां को जेल की सलाखों से बाहर निकलवाने के बाद वो उसको बेगुनाह साबित कराने और उसे मामले से बरी कराने के प्रयास में लग गई। उसने मां को इस बेड़ी से आजाद कराने के लिए राज्यपाल के यहां क्षमा याचिका दायर की। लवली की चार सालों की लम्बी दौड़ भाग का फल शुक्रवार 11 अगस्त को सामने आया।

क्या कहना है लवली का?

लवली बताती है कि कल उसे अमेठी कोतवाली से फोन आया और मां के साथ कोतवाली में बुलाया गया। आज जब वो मां को लेकर वहां पहुंची तो पुलिस ने जो ख़बर सुनाया उसे सुनकर उसके खुशी के आंसू छलक पड़े। पुलिस ने बताया कि राज्यपाल राम नाइक ने उसकी मां उर्मिला की क्षमा याचिका को स्वीकार करते हुए उसे क्षमादान दे दिया है।

priyankajoshi

priyankajoshi

इन्होंने पत्रकारीय जीवन की शुरुआत नई दिल्ली में एनडीटीवी से की। इसके अलावा हिंदुस्तान लखनऊ में भी इटर्नशिप किया। वर्तमान में वेब पोर्टल न्यूज़ ट्रैक में दो साल से उप संपादक के पद पर कार्यरत है।

Next Story

AI Assistant

Online

👋 Welcome!

I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!