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Sonbhadra में जहर पी रहे नौनिहाल, विद्यालयों के पानी में मिली फ्लोराइड की अधिकता
Sonbhadra News Today: केंद्र के साथ ही राज्य के खजाने को भरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सोनभद्र की आधे से अधिक एरिया की आबादी जहरीला (प्रदूषित) पानी (polluted water) पीने को विवश है।
सोनभद्र: प्राथमिक विद्यालयों के नौनिहाल पी रहे प्रदूषित पानी
Sonbhadra: केंद्र के साथ ही राज्य के खजाने को भरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सोनभद्र (Sonbhadra) की आधे से अधिक एरिया की आबादी जहरीला (प्रदूषित) पानी (polluted water) पीने को विवश है। शासन के निर्देश पर पांच ब्लॉकों के प्राथमिक विद्यालयों (primary schools) में स्थापित हैंडपंपों और बोर के जरिए निकलने वाले पानी की कराई जा रही जांच में भी सामने आए शुरुआती आंकड़ों ने होश उड़ा दिए हैं। महज 30 विद्यालयों की फ्लोराइड की टेस्टिंग में, फ्लोराइड की मात्रा मानक से एक दो गुना नहीं बल्कि सात गुना तक अधिक पाई गई है। मरकरी, आर्सेनिक, आयरन की टेस्टिंग होने की दशा में जो स्थिति सामने आएगी सो अलग।
बताते चलें कि फ्लोराइड की अधिकता (excess fluoride in water) के चलते दुद्धी, ओबरा और राबर्ट्सगंज तहसील क्षेत्र के लगभग 269 गांव, प्रदूषण जनित बीमारी (फ्लोरोसिस) का दंश झेलने को विवश है। इसमें लगभग 30 गांव ऐसे हैं, जहां तीन पीढ़ी से फ्लोरोसिस की मार लोगों को अपंगता (दिव्यांगता) की सौगात बांट रही है। प्रभावित गांव के लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए कई बार पहल भी सामने आई लेकिन शुरुआती तेजी के बाद, ग्रामीणों को उनके हाल पर छोड़ देने के कारण, हालात बदतर बने हुए हैं।
महज पांच ब्लाकों की शुरुआती जांच में ही सामने आए डराने वाले आंकड़े
शासन के निर्देश पर दक्षिणांचल के चोपन, म्योरपुर, बभनी कोन और दुद्धी ब्लॉक के 860 प्राथमिक विद्यालयों में स्थापित हैंडपंप और समरसेबल के जरिए निकलने वाले पानी की जांच की जा रही है। इन विद्यालयों में 10,000 से अधि छात्र अध्ययनरत हैं। पिछले सप्ताह शुरू की गई जांच में 30 विद्यालयों कि जो रिपोर्ट सामने आई है, वह हैरान कर देने वाली है।
कोन ब्लॉक के कुड़वा में एक लीटर पानी में 7.79 मिलीग्राम फ्लोराइड मिला है जो अधिकतम मानक मानक 1.5 मिलीग्राम के मुकाबले पांच गुने से भी ज्यादा है। इसी तरह म्योरपुर ब्लॉक के गढिंया प्राथमिक विद्यालय में 7.22 मिली ग्राम फ्लोराइड पाए जाने की पुष्टि हुई है। कोन ब्लॉक के कचनरवा-कुड़वा ग्राम पंचायत के सभी प्राथमिक विद्यालयों में फ्लोराइड मानक से अधिक पाया गया है। वहीं, चोपन और बभनी ब्लॉक क्षेत्र में अब तक जिन भी विद्यालयों में पानी की टेस्टिंग हुई है, वहां फ्लोराईड के अधिकता की रिपोर्ट सामने आई है।
सालों से सामने आ रही प्रदूषण के गाया हुआ था लेकिन राहत के नाम पर दौड़ाया जा रहे कागजी घोड़ेः पानी में फ्लोराइड की अत्यधिक मात्रा पाए जाने का यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी कई रिपोर्ट सामने आ चुकी है। अब स्कूलों में भी निगम के जरिए नए सिरे से जांच कराई जा रही है। इससे पहले सेंटर फॉर साइंस इन्वायरमेंट नामक संस्था जिले के हर रग-रग में पारे की मौजूदगी का खुलासा कर चुकी है।
फ्लोराइड की अधिकता के चलते लोगों को तरह-तरह की बीमारियां होने की बात कई बार सामने आ चुकी है। कई गांवों में आर्सेनिक, नाइट्रेट और आयरन के भी अधिकता की पुष्टि हुई है। बाबू अभी तक प्रभावी राहत पहुंचाने की बजाय सिर्फ जांच और रिपोर्ट का ही खेल चला आ रहा है। मसला यह है कि क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का कार्यालय भी सोनभद्र में है। यहां बैठने वाले अधिकारी प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर रोजाना कई कागजी दस्तावेज भी दौड़ाते हैं। वायु प्रदूषण विभाग प्रदूषण से मुक्ति दिलाने के बजाय, सामने आने वाले रिपोर्टों पर ही टालमटोल का रवैया अख्तियार करने लगता है।
शिक्षा विभाग के पत्र का नहीं निकला कोई निष्कर्ष
जिला बेसिक शिक्षा महकमे की तरफ से पिछले वर्ष 22 अक्टूबर को ही मछली को लेकर जल निगम के अधिशासी अभियंता और प्रदूषण नियंत्रण विभाग को पत्र भेजा गया था। फ्लोराइड प्रभावित इलाकों के विद्यालयों में सोलर आधारित फ्लोराईड रिमूवल प्लांट स्थापित करने के लिए पहल का अनुरोध किया गया था लेकिन किसी ने बजट न होने तो किसी ने बाद में देखते हैं.. की तर्ज पर मामले को टाल दिया।
घुटने, कमर और जोड़ों की हड्डियों पर तेजी से असर डालता है फ्लोराइड
पर्यावरण वैज्ञानिक तथा जिले के स्थिति पर लंबे समय तक शोध करने वाले प्रेम नारायण अग्रहरि बताते हैं कि फ्लोराइड सबसे पहले बच्चों के दांतो को प्रभावित करता है। इसके कुछ वर्ष बाद घुटने, कमर और जोड़ वाली हड्डियों को प्रभावित करना शुरू कर देता है। आखिरकार लंबे समय तक फ्लोराइड युक्त का पानी का सेवन दिव्यांग बना देता है। इसके साथ ही उम्र भी तेजी से कम होने लगती है। किसी व्यक्ति को पूरी तरह चपेट में लेने के बाद यह बीमारी लाइलाज बन जाती है।
म्योरपुर सीएच वसी अधीक्षक डॉ. राजीव रंजन बताते हैं कि फ्लोराइड जनित बीमारी फ्लोरोसिस की चपेट में आने वाले लोगों की सिर्फ हड्डियां ही प्रभावित नहीं होती बल्कि उनका शारीरिक विकास भी रुक जाता है। पर्यावरण कार्यकर्ता रमेश यादव, सिंगरौली प्रदूषण मुक्ति वाहिनी के क्षेत्रीय संयोजक एवं प्रधान दिनेश जायसवाल कहते हैं कि कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी का भी इलाज उपलब्ध है लेकिन फ्लोरोसिस एक ऐसी बीमारी है जिसका कोई इलाज नहीं है। बावजूद इससे राहत के लिए कोई प्रभावी कदम क्यों नहीं उठाए जा रहे, यह बात समझ में नहीं आ रही।
शासन से आए निर्देश पर कराई जा रही जांच- बीएसए
बीएसए हरिवंश कुमार का कहना है कि शासन की तरफ से सभी स्कूलों के पानी की जांच कराने का निर्देश मिला है। इसी कड़ी में स्कूलों से लगातार जल के नमूने संग्रहित कर जल निगम को भेजा जा रहा है। रिपोर्ट में क्या आया है? इसकी जानकारी उन्हें नहीं है।
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