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प्रदेश के डाक्टरों का आंदोलन शुरू, एक अक्टूबर को बांधेंगे काली पट्टी
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की प्रांतीय चिकित्सा सेवाओं के डाक्टरों का आंदोलन सोमवार से शुरू हो गया है। प्रोविन्शियल मेडिकल सेर्विसेज एसोसिएशन के निर्णय के अनुसार सभी जिलों से कार्य दशाओं तथा चिकित्सा सेवाओं में सुधार के लिए अविलम्ब हस्तक्षेप के ज्ञापन जिलाधिकारियों के माध्यम से मुख्यमंत्री को भेजे गए। एक अक्टूबर को राज्य भर के डाक्टर उपेक्षा व संवेदनहीनता के विरोध में काली पट्टी बांधेंगे। यह जानकारी एसोसिएशन के अध्यक्ष डा. अशोक यादव ने दी। गौरतलब है कि नौ सितंबर को एसोसिएशन की केंद्रीय कार्यकारिणी की बैठक में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिए गए थे।
कार्यदशाएं सुधारने व मौलिक अधिकारों का हनन रोकने की मांग
आन्दोलित चिकित्सकों ने चिकित्सा सेवाओं तथा संवर्ग की कार्यदशायें सुधारने तथा चिकित्सकों के सेवानिवृत्ति जैसे मौलिक अधिकारों का हनन रोकने की मॉग की है। एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. अशोक यादव ने बताया कि, आन्दोलन के इस चरण में आज जिला मुख्यालयों पर जिला शाखाओं द्वारा सभाओं का आयोजन कर मुख्यमंत्री को प्रेषित किये गये, ज्ञापन के विषयों पर व्यापक चर्चा की गयी तथा राजकीय चिकित्सकों को आन्दोलन के लिये बाध्य किये जाने के कारणों को सार्वजनिक रूप से स्पष्ट और प्रदर्शित किया गया।
मुख्यमंत्री से अविलम्ब हस्तक्षेप का आग्रह
एसोसिएशन के महामंत्री डॉ. अमित सिंह ने लखनऊ में बताया कि, उक्त ज्ञापन में मुख्यमंत्री से अविलम्ब हस्तक्षेप करने की मॉग की गयी है, ताकि राज्य में चिकित्सा स्वास्थ्य सेवाएं राज्य सरकार की प्रतिबद्धताओं के अनुरूप प्रदान की जा सकें और राज्य में राजपत्रित अधिकारियों के इस सबसे बड़े संवर्ग की क्षमता और दक्षता का सम्पूर्ण उपयोग लोक हित में सतत होता रहे।
तंत्र की शिथिलता व असंवेदनशीलता से उपजा आक्रोश
ज्ञापन में मुख्य मंत्री का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा गया है कि चिकित्सा स्वास्थ्य की सेवाएं सुचारू रूप से प्रदान करने में, राजकीय-चिकित्सक और चिकित्सा-कर्मी उपलब्ध संसाधनों के सापेक्ष, बहुत अधिक कार्य-भार का सम्पादन कर रहे हैं और दुर्वह-परिस्थितियों में दिन-रात काम कर रहे हैं -यहॉ तक कि राजपत्रित-अवकाश के दिनों में भी, बिना, किसी प्रतिकर-राशि या प्रतिकर-अवकाश प्राप्त किये, चौबीस घण्टे सातों दिन, निरन्तर सेवाएं दे रहे हैं। लेकिन शिथिलता और असम्वेदनशीलता के चलते, संवर्ग के प्रति, स्वेच्छाचारिता और उपेक्षा का भाव निरन्तर प्रदर्शित किया जा रहा है। इससे राजकीय सेवा के चिकित्सकों में निराशा और कुण्ठा का भाव हैं, जिसे दूर किया जाना जनहित में आवश्यक हैं।
अपमान, प्रताड़ना और गुलामी का शिकार हो गए हैं डाक्टर
ज्ञापन देने से पूर्व चिकित्सकों ने एक सभाकर ज्ञापन में व्यक्त किये विषयों पर विस्तृत चर्चा की। सभा में वक्ताओं ने कहा कि, राज्य की 22 करोड से अधिक जनसंख्या की दिन रात, सेवा करने वाले राजकीय चिकित्सकों के संवर्ग को अपमान, प्रताड़ना और गुलामी का शिकार बना दिया गया है। कर्तव्यनिष्ठा, कठोर परिश्रम और जीवन भर में अर्जित योग्यता के लिये प्रोत्साहन देने के बजाये, संवर्ग के चिकित्सकों के मौलिक अधिकारों तक को दर-किनार कर दिया गया है, यहॉ तक कि, सेवा में योगदान के समय-प्रवृत्त, अधिवर्षता-आयु पर सेवा निवृत्त होने जैसे मौलिक अधिकार और स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति के अधिकारों से भी राज्य सरकार ने उन्हे वंचित कर दिया है। ऐसे में दशकों से सेवारत चिकित्सक हताश, निराश और कुंठित हैं, नये चिकित्सक नियमित राजकीय सेवा में आने से डर गये हैं और उन्हे नियमित राजकीय सेवा में लाने में सरकार के सारे प्रयास विफल हो गये है। इसके चलते प्रान्तीय चिकित्सा स्वास्थ्य सेवा संवर्ग के मृत प्रायः होने का खतरा बहुत बढ़ गया है।
गैरतकनीकी नीतियों के चलते पटरी से उतरी चिकित्सा सेवाओं की दुर्व्यवस्था के लिए चिकित्सकों एवं चिकित्सा कर्मियों को जिम्मेदार ठहरा कर अव्यवस्था के उत्तरदायी तत्वों को बचाया जा रहा है। राज्य में सरकार की घोषित प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिये आवश्यकता के सापेक्ष स्थाई ढाचे में एक चौथाई से भी कम चिकित्सक और चिकित्सा कर्मी उपलब्ध हैं। सन् अस्सी के दशक में सरकार द्वारा स्वयं निर्धारित किये गये जन स्वास्थ्य के मानक, सन् 2018 तक भी प्राप्त नही किये जा सके है- इस वास्तविकता को न केवल दबाया व छुपाया जा रहा है अपितु इस बावत आम जनता और न्यायालय तक को अंधेरे में रख पूरे संवर्ग को गुलाम बनाकर छोड़ दिया जाना किसी हालत में सहन नही किया जा सकता है।
इस अवसर पर कहा गया कि, दोहरी व्यवस्था के तहत चिकित्सा इकाईयों में रूपये ढाई लाख तक, प्रतिमाह वेतन पर चिकित्सक बिडिंग के माध्यम से मात्र आठ घण्टे के लिये नियुक्त किये जा रहे हैं और उनसे मेडिकोलीगल पोस्ट-मार्टम इत्यादि कार्य नही लिये जाने का नियम भी प्रख्यापित किया गया है, जब कि लोक सेवा आयोग से चयनित नवनियुक्त चिकित्साधिकारियों को मात्र 60 से 70 हजार प्रतिमाह वेतन प्रदान किया जाता है और उनसे दिन रात मेडिकोलीगल कार्य सहित सभी राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों के सम्पादन में कार्य लिये जाते है। यदि राज्य की चिकित्सा सेवाएं इसी प्रकार दोहरी व्यवस्था के तहत चलाया जाना जनहित में है तो सभी सेवारत-सदस्य चिकित्सक, सेवा मुक्त होकर उक्त संविदा नियमों के तहत पारितोषित स्वरूप रूपये ढाई लाख प्रतिमाह के वेतन पर कार्य करने के लिये तैयार है। प्रोन्नति सहित सेवा सम्बन्धी अन्य लम्बित मामलों को लेकर तथा सातवें वेतन आयोग के क्रम में प्रैक्टिस वेतन बन्दी भत्ते सहित अन्य भत्तों के अभी तक प्रदान नही किये जाने पर आक्रोश व्यक्त किया गया है। चिकित्सकों का कहना है कि विकल्प लिये बिना अधिवर्षता आयु मनमाने ढंग से बढाये जाने को तथा पात्र चिकित्सकों स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति का लाभ तक नही दिये जाने को और उन्हें केवल गुलाम बनाकर रखने को किसी भी हालत में सहन नही किया जा सकता और मूल अधिकारों की बहाली और न्यायोचित अपनी मॉगो को पूरा कराने के लिये हम हर सघर्ष के लिये तैयार हैं।
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