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रायबरेली: शिक्षकों का टीईटी अनिवार्यता के खिलाफ प्रदर्शन, सरकार से हस्तक्षेप की मांग
Raebareli News: सेवारत शिक्षकों ने कहा- दशकों की सेवा के बाद नई परीक्षा थोपना अन्यायपूर्ण कदम है
रायबरेली, शिक्षक विरोध
Raebareli News: रायबरेली में आज राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के बैनर तले बड़ी संख्या में शिक्षकों ने विकास भवन में जोरदार प्रदर्शन किया। यह प्रदर्शन केंद्र सरकार की शिक्षा नीतियों के खिलाफ था, जिन्हें शिक्षक सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का आधार मानते हुए अपने सम्मान के खिलाफ बता रहे हैं। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत प्राथमिक और जूनियर स्तर के सभी शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) पास करना अनिवार्य कर दिया है।
शिक्षकों का कहना है कि यह फैसला उन पर एक अनुचित बोझ है, खासकर उन शिक्षकों पर जिनकी सेवा अवधि दस या बीस साल पूरी हो चुकी है। उनका तर्क है कि जब वे अपनी सेवा में आए थे, तब टीईटी जैसी कोई शर्त नहीं थी। सेवाकाल के बीच में न्यूनतम योग्यता मानदंड में बदलाव करना उनके लिए न्यायसंगत नहीं है। उनका मानना है कि सरकार की गलत नीतियों के कारण उन्हें इस स्थिति का सामना करना पड़ रहा है, जहां उन्हें अपनी दशकों की सेवा के बाद भी अपनी योग्यता साबित करने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के जिलाध्यक्ष वीरेंद्र सिंह ने इस मुद्दे पर सरकार से तत्काल हस्तक्षेप करने की मांग की। उन्होंने कहा कि सरकार के पास दो रास्ते हैं: या तो वह राष्ट्रीय शिक्षा नीति में संशोधन करे ताकि सेवारत शिक्षकों को टीईटी की अनिवार्यता से छूट मिल सके, या फिर सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करे। वीरेंद्र सिंह ने चेतावनी दी कि यदि सरकार इस मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाती है, तो शिक्षकों का यह आंदोलन और भी उग्र रूप ले सकता है।
दूसरी ओर, इस मामले में एक अलग राय भी सामने आई है। असपा के जिलाध्यक्ष शशांक सिंह राठौड़ ने शिक्षकों के इस प्रदर्शन पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला शिक्षकों के कल्याण के लिए है, और यह सुनिश्चित करने के लिए है कि शिक्षा का स्तर बेहतर हो। राठौड़ ने शिक्षकों को सलाह दी कि वे केंद्र सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार करने के बजाय, इस मुद्दे को सीधे सुप्रीम कोर्ट में कानूनी रूप से लड़ें। उनका मानना है कि केंद्र सरकार इस मामले में सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकती क्योंकि यह फैसला न्यायिक है।
यह विवाद एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा करता है: क्या दशकों से पढ़ा रहे अनुभवी शिक्षकों को अचानक एक नई परीक्षा पास करने के लिए मजबूर करना सही है? क्या यह उनकी सेवाओं का अनादर नहीं है? वहीं, दूसरी ओर, क्या यह सुनिश्चित करना सरकार और न्यायपालिका की जिम्मेदारी नहीं है कि हमारे स्कूलों में केवल योग्य और अद्यतन ज्ञान वाले शिक्षक ही पढ़ाएं? यह मामला सरकार, शिक्षकों और न्यायपालिका के बीच एक जटिल संतुलन बनाने की आवश्यकता को उजागर करता है ताकि शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित हो सके और शिक्षकों के सम्मान की भी रक्षा हो सके।
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