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कोर्ट ने कहा- राशन की दुकान का लाइसेंस लेने से पहले पेश करना होगा चरित्र प्रमाण पत्र
हाईकोर्ट ने कहा है कि सस्ते गल्ले की दुकान का आवंटन पाने के लिए अर्जीदाता को पुलिस द्वारा जारी चरित्र प्रमाणपत्र करने संबधी प्रावधान पूरी तरह संवैधानिक है। कोर्ट ने कहा कि यह लाइसेंस किसी की जीविकोपार्जन का साधन नहीं होता बल्कि यह पीडीएस सिस्टम में केवल अनाज आदि के वितरण के लिए महज एक लाइसेंस होता है।
लखनऊ: हाईकोर्ट ने कहा है कि सस्ते गल्ले की दुकान का आवंटन पाने के लिए अर्जीदाता को पुलिस द्वारा जारी चरित्र प्रमाणपत्र करने संबधी प्रावधान पूरी तरह संवैधानिक है। कोर्ट ने कहा कि यह लाइसेंस किसी की जीविकोपार्जन का साधन नहीं होता बल्कि यह पीडीएस सिस्टम में केवल अनाज आदि के वितरण के लिए महज एक लाइसेंस होता है। इसी के साथ कोर्ट ने सस्ते गल्ले का लाइसेंस लेने के लिए 17 फरवरी 2002 के एक शासनादेश को भी असंवैधानिक मानने से इंकार कर दिया।
जिसमें कहा गया है कि लाइसेंस लेने की मांग करने वाले को पुलिस से अपना चरित्र प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना होगा। कोर्ट ने कहा है कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है बल्कि यह तो उचित ही है कि देख लिया जाए कि लाइंसेस के लिए अर्जी देने वाले का चरित्र कैसा है।
यह आदेश जस्टिस ए पी साही और जस्टिस संजय हरकौली की बेंच ने अवधेश कुमार की ओर से दायर याचिका पर पारित किया। याची का कहना था कि उसके खिलाफ एक एनसीआर दर्ज थी। जिसके कारण पुलिस उसे चरित्र प्रमाणपत्र नहीं जारी कर रही है।
जिसके चलते वह सस्ते गल्ले की दुकान का लाइसेंस लेने के लिए आवेदन नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि आवेदन के साथ चरित्र प्रमाणपत्र भी लगाना हेाता है। याची ने 17 फरवरी 2002 को चुनौती दी थी जिसमें यह प्रावधान है। कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई के बाद उसे खारिज कर दिया।
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प्रमुख सचिव श्रम, औद्योगिक न्यायाधिकरण के प्रिजाइडिंग जज के बीच रार की सच्चाई जानने के लिए रिकार्ड और सीसीटीवी फुटेज तलब
लखनऊ: औद्योगिक न्यायाधिकरण के प्रिजाइडिंग अफसर जस्टिस एस जेड सिद्दीकी, श्रम विभाग के प्रमुख सचिव राजेंद्र कुमार तिवारी और विशेष सचिव परशुराम प्रसाद के बीच तनातनी उस समय रोचक मोड़ पर पहुंच गई जब हाईकोर्ट ने देानों ओर के आरोप-प्रत्यारेाप की सत्यता जानने के लिए न्यायाधिकरण की सीसीटीवी फुटेज तलब कर ली। कोर्ट ने श्रम विभाग के दोनों अफसरों के लिखाफ जारी न्यायाधिकरण द्वारा की जा रही अवमानना की कार्यवाही पर भी फौरी तौर रोक लगा दी है।
कोर्ट ने कहा कि मामले में गंभीर विचार की जरूरत है। कोर्ट ने अपने सीनियर रजिस्ट्रार को निर्देश दिया कि किसी मैसेंजर केा भेजकर उक्त सीसीटीवी फुटेज को मंगवा लिया जाए। मामले की अगली सुनवाई 15 दिसंबर को होगी।
यह आदेश जस्टिस डी के अरोरा की बेंच ने दोनों अफसरों की ओर से दायर रिट याचिका पर पारित किया। याचियों की ओर से अपर महाधिवक्ता बुलबुल गेादियाल का तर्क था कि न्यायाधिकरण के प्रिजाइडिंग अफसर ने गलत तथ्यों के आधार पर 25 नवंबर को याचियों को अवमानना का देाषी मानकर एक महीने की सजा सुना दी।
कहा गया कि 21 नवंबर को न्यायाधिकरण ने आदेश पारित कर दोनो को 25 वंबर को तलब किया लेकिन प्रिजाइडिंग अफसर 25 नवंबर को सुबह 11 बजकर 50 मिनट से देर शाम तक अपने अदालत कक्ष में आए ही नहीं और बताया गया कि वे आए थे लेकिन लंच से पहले मेडिकल कारणों से चले गए।
तर्क था कि जब प्रिजाइडिंग अफसर खुद नहीं थे तो उन्होंने किस बीच उसी दिन दोनों को अवमानना का दोषी मानकर सजा सुना दी। मामला यूपी स्टेट मिनरल्स कार्पोरेशन के 132 कर्मचारियों की छटनी से संबंधित एक केस से जुड़ा है। सरकार ने यह केस कानपुर ट्रांसफर कर दिया था।
कहा गया कि प्रिजाइडिंग अफसर ने स्वयं को न्यायाधिकरण का हेड बनाए जाने की अर्जी सरकार को दी थी लेकिन सरकार ने जस्टिस सुरेद्र सिंह को बना दिया जिससे खफा होकर दोनों के लिखाफ आधारहीन आरेाप लगाकर उन्हें मनमाने तरीके से सजा सुना दी गई। सुनवाई के बाद जस्टिस अरेाड़ा ने केस की सारी पत्रावली भी तलब कर ली।
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