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रंग-बिरंगी यादें देकर ऐसे विदा हुआ सांस्कृतिक फेस्टिवल 'रेपर्टवा'
शहर के सबसे रंगारंग सांस्कृतिक फेस्टिवल रेपर्टवा का रविवार (17 दिसंबर) को समापन हुआ। अंतिम दिन संगीत नाटक अकादमी के परिसर में सुबह से ही खचाखच भीड़ रही।
लखनऊ: शहर के सबसे रंगारंग सांस्कृतिक फेस्टिवल रेपर्टवा का रविवार (17 दिसंबर) को समापन हुआ। अंतिम दिन संगीत नाटक अकादमी के परिसर में सुबह से ही खचाखच भीड़ रही।
रेपर्टवा के सह संस्थापक भूपेश राय ने कहा- ये रेपर्टवा का सबसे कामयाब सीज़न रहा। न सिर्फ जनता ने इस बार के महोत्सव की दिल खोल कर तारीफ़ की बल्कि महोत्सव में आने वाले सभी कलाकारों ने फेस्टिवल को लेकर बहुत सारी अच्छी अच्छी बातें कहीं। इस लिहाज़ से ये हमारे लिए हौसला बढ़ाने वाली चीज़ है। इस कामयाबी का श्रेय पूरी रेपर्टवा टीम को है।
मीट द कास्ट:
अंतिम दिन के पहले सत्र 'मीट द कास्ट' में भी ज़बरदस्त भीड़ रही। कॉमेडियन वरून ग्रोवर, संजय रजौरा, संगीतकार राहुल राम, अभिनेता कुमुद मिश्रा लेखक यतीन्द्र मिश्र के साथ संवाद में शामिल हुए। वरून ग्रोवर ने कहा कि फिल्मी गानों को लिखते वक्त शैलेन्द्र अपनी सरलता के कारण और साहिर अपनी जटिलता के कारण उनके पसंदीदा रहते हैं। इसके अलावा उन पर गुलज़ार का बड़ा प्रभाव है। उन्होने जो सबसे पहला गाना फिल्मों के लिए लिखा था उसमें गुलज़ार की स्पष्ट छाप देखी जा सकती है।
संजय रजौरा ने बताया कि ऐसी तैसी डेमोक्रेसी इस देश के सामाजिक राजनैतिक हालात पर अपनी तरह से हस्तक्षेप करता है। उन्होंने कहा कि आज जो माहौल है उसमें हास्य व्यंग्य के ज़रिए ही अपना विरोध दर्ज़ करवाने की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। संगीतकार राहुल राम ने कहा कि यद्यपि वो लोकसंगीत के साथ फ्यूज़न करते हैं मगर फिर भी वो ठीक ठीक ये नहीं कह सकते कि उनकी चीज़ें पूरी तरह लोकसंगीत आधारित हैं। उन्होने कहा कि शुद्धतावादियों का एक तबका ऐसा भी है जो ये मानता है कि सिर्फ शास्त्रीय संगीत ही सही है बाक़ी सब ग़लत। यतीन्द्र मिश्र ने भी संगीत से जुड़े अपने अध्ययन और अनुभव को साझा किया। अभिनेता कुमुद मिश्रा ने कहा कि फिल्म और थिएटर दो अलग-अलग विधाएं हैं जिनकी तुलना ठीक नहीं है। ये धारणा भी ग़लत है कि फिल्म वालों का नाटक देखने भीड़ आएगी ही आएगी।
थिएटर फेस्ट
थिएटर फेस्ट में आखिरी दिन आकर्ष खुराना निर्देशित एवं अधीर भट्ट लिखित नाटक धूम्रपान का मंचन हुआ। इसमें अभिनेता के रूप में कुमुद मिश्रा, शुभ्रज्योति बरत, सिद्धार्थ कुमार, घनश्याम लालसा, सार्थक कक्कड़ और सौरभ नैयर मंच पर थे। नाटक एक कॉरपोरेट ऑफिस के स्मोकिंग एरिया में सेट किया गया है। जहां ऑफिस के कर्मचारी सिगरेट पीने आते हैं और सिगरेट पीने के दौरान आपसे में ऑफिस और दूसरे विषयों से सम्बन्धित बातचीत करते हैं। इन विषयों में दफ्तर की पॉलिटिक्स, गॉसिप, प्रेम सम्बन्ध, व्यावसायिक अनुशंसाएं तो मुख्य रहती ही हैं। इनके माध्यम से कॉरपोरेट दफ्तर में काम करने वाले कर्मचारियों का मनोविज्ञान भी सामने आता है। यही इस नाटक की सबसे बड़ी कामयाबी भी है कि ये नाटक कॉरपोरेट के चरित्र को न सिर्फ ठीक तरह से पहचान लेता है बल्कि उससे जुड़ी अनेक महत्तवपूर्ण बातों को सहजता से रेखांकित भी करता है। अभिनेता के तौर पर कुमुद और शुभ्रज्योति का काम एवं संवाद अदायगी ला-जवाब है। नाटक के दोनो शो हाउसफुल रहना इस बात का प्रमाण है कि नाटक को लेकर जनता में ख़ासी उत्सुकता थी।
कॉमेडी फेस्ट
कॉमेडी फेस्ट में आखिरी दिन वरून ग्रोवर, राहुल राम और संजय रजौरा की मशहूर तिकड़ी ने ऐसी तैसी डेमोक्रेसी की प्रस्तुति दी. फेस्टिवल की बाक़ी स्टैण्ड-अप प्रस्तुतियों का ज़ोर जहां लोगों को हंसाने पर था वहीं वरून ग्रोवर और संजय रजौरा ने हास्य के साथ साथ व्यंग्य का भी बेजोड़ नमूना पेश किया। कई बार उनकी प्रस्तुति में जनता हंसी नहीं बल्कि सन्न रह गयी और बहुत कुछ सोचने पर मजबूर हो गयी। ऐसी तैसी डेमोक्रेसी ने मुख्यत: राजनैतिक और सामाजिक व्यंग्य करके जनता को तकरीबन एक घंटे तक बांधे रखा। इस दौरान उन्होने भारत की राजनीति, समाज, रीति रिवाज, नेतागिरी, ख़बरों का परिदृश्य, यूपी वालों एवं अन्य लोगों की मानसिकता पर बेहतरीन व्यंग्य किए। वरून और संजय ने व्यंग्य के बाण छोड़े तो मंच पर राहुल राम ने अपने संगीत से व्यंग्य हेतु उपयुक्त माहौल तैयार किया।
म्यूज़िक फेस्ट: म्यूज़िक फेस्ट में आखिरी दिन इंडियन ओशेन बैण्ड ने अपनी प्रस्तुति दी। इंडियन ओशेन के प्रति लोगों की दीवानगी का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि म्यूज़िक लॉन की सीटिंग से ज़्यादा जनता वहां मौजूद थी और सैकड़ों लोगों ने खड़े खड़े ही कार्यक्रम का लुत्फ़ लिया। इंडियन ओशेन ने अपने मशहूर गानों के अलावा कुछ बिल्कुल नए गाने भी लखनऊ वालों के लिए ख़ास तौर पर पेश किए। जिन चीज़ों को श्रोताओं की ख़ास तौर पर दाद मिली उनमें बंदे, कबीरवाणी, इस तन धन को बहुत पसंद किया गया।
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