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देश की सबसे बड़ी पुलिस फोर्स व प्रतिष्ठित जांच एजेंसी सीबीआई सबसे बुरे दौर में
लखनऊ : इस वक्त देश की सबसे बड़ी पुलिस फोर्स और प्रतिष्ठित जांच एजेंसी सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। जी हां! हम बात कर रहे हैं यूपी पुलिस और जांच एजेंसी सीबीआई की। राजधानी के विवेक तिवारी हत्याकांड के बाद सिपाही एकजुट हो रहे हैं। बरसों पुराने चले आ रहे कायदे कानूनों को खारिज करने पर तुले हैं। वहीं सीबीआई के मुखिया आलोक वर्मा और सेकेंड अफसर राकेश अस्थाना की जंग सतह पर आ चुकी है। इन घटनाओं ने सरकार की खूब फजीहत कराई है। देश के इतिहास में कानून व्यवस्था से जुड़ी व्यवस्थाओं का यह हाल आम जनता को भी संशय में डाल रहा है।
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विवेक तिवारी हत्याकांड के बाद आरोपी सिपाही प्रशांत चौधरी के पक्ष में जिस तरह तमाम सिपाही लामबंद हुए तो आला अफसरों के कान खड़े हो गए। आरोपी सिपाही को न्याय की मांग के साथ तमाम जिलों में सिपाहियों ने अपने चेहरे को छिपाते हुए काम के दौरान काली पटटी बांधी तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर डाली। पुलिस मुखिया ने कार्रवाई का चाबुक भी चलाया। पर सिपाहियों पर इसका कोई खास असर नहीं दिखा। 21 अक्टूबर को आयोजित पुलिस स्मृति दिवस में सीएम योगी अादित्यनाथ के जवानों के हित में बड़ा फैसला लेने की उम्मीद जताई जा रही थी। पर जब ऐसा नहीं हुआ तो उससे जवानों में और नाराजगी बढ़ी।
ताजे मामले में लखनऊ पुलिस लाइन में आरआई की मनमानी के चलते सिपाहियों में नाराजगी और आक्रोश साफ झलक रहा है। बीते दिन रात 8:00 बजे जब पुलिस लाइन में सिपाहियों की गणना हुई तो 158 सिपाही गैरहाजिर मिले। वे गैरहाजिर किए गए। यह प्रथा अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही है कि रात आठ बजे के बाद गणना में जो नहीं आते हैं उन्हें गैर हाजिर माना जाता है। अब इन सिपाहियों ने अपनी वापसी दर्ज नहीं कराने का फैसला लिया है। गैरहाजिर किए गए सिपाहियों के साथ कई अन्य सिपाही भी विरोध में उतर आए हैं। सिपाहियों का आरोप है कि ड्यूटी के बाद रात 8:00 बजे से पहले घर जाने के एवज में गणना मुंशी सिपाहियों से सुविधा शुल्क लेता है। सुविधा शुल्क के बावजूद रपट लिखे जाने से सिपाहियों में नाराजगी है।
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