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काशी की वर्षों पुरानी परंपरा, कालिया नाग के अहंकार का श्रीकृष्ण ने किया मर्दन
वाराणसी को अपनी प्राचीनता और धार्मिक परम्पराओं के लिए जाना जाता है। सदियों पुरानी परम्पराएँ आज भी यहाँ उतने ही उल्लास और उत्साह के साथ मनाई जाती हैं। करीब 455 वर्षों पुरानी एक ऐसी ही परंपरा में आज आस्था अद्भुत संगम गंगा किनारे देखने को मिला।
वाराणसी: वाराणसी को अपनी प्राचीनता और धार्मिक परम्पराओं के लिए जाना जाता है। सदियों पुरानी परम्पराएँ आज भी यहाँ उतने ही उल्लास और उत्साह के साथ मनाई जाती हैं। करीब 455 वर्षों पुरानी एक ऐसी ही परंपरा में आज आस्था अद्भुत संगम गंगा किनारे देखने को मिला। कुछ पलों के लिए गंगा मानो यमुना बन गयी और काशी मुथरा में बदल गयी। मौका था विश्व प्रसिद्ध नाग नथैया लीला का जिसमें भगवान कृष्ण के बाल स्वरुप द्वारा गंगा की लहरों के बीच कालिया नाग का मर्दन किया गया। इस लीला के माध्यम से लोगों को गंगा को प्रदुषण मुक्त करने का सन्देश भी दिया गया।
गोस्वामी तुलसीदास ने शुरू की परम्परा
शहर के तुलसी घाट पर हजारों भीड़ इस नयनाभिराम दृश्य को निहारने के लिए उमड़ी। इस परम्परा को सालों पहले खुद गोस्वामी तुलसीदास ने शुरू किया था। विश्व प्रसिद्ध नाग नथैया लीला के इस मंचन में भगवान कृष्ण का बाल स्वरुप और उनकी बाल लीलाएँ जीवंत हो उठी। कुछ समय के लिए काशी और मथुरा और गंगा और यमुना एक हो गए। अपने बाल सखाओं के साथ खेलते खेलते भगवान कृष्ण का सामना कालिया नाग से हुआ और उन्होंने उसका मर्दन किया।
गंगा को प्रदूषण मुक्त करने का दिया सन्देश
यमुना के जल को विषैला करने वाले कालिया नाग का मर्दन कर भगवान कृष्ण ने यमुना को प्रदुषण से मुक्त करने का सन्देश दिया था। आज कालिया नाग तो नहीं है लेकिन नाग की तरह टेढ़े मेढ़े नाले नदियों में मिल कर आज भी उन्हें विषैला कर रहे हैं। इसीलिए नाग नथैया की इस लीला के माध्यम से लोगों को गंगा और दूसरी पवित्र नदियों को प्रदुषण से मुक्त करने का सन्देश भी दिया गया। करीब करीब 455 वर्षों पुरानी इस परंपरा का गवाह बनने के लिए लोगों पुरे साल इंतज़ार रहता है।
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और कुछ पलों का यह अद्भुत नज़ारा देखने वालों को आस्था से भाव विभोर कर देता है। दुनिया चाहे किनती भी आधुनिक क्यों ना हो जाये पर वाराणसी का यह शहर आज भी अपनी परम्पराओं से पूरी मजबूती से जुड़ा हुआ है। अपनी परम्पराओं को सहेजे और संजोये हुए ये शहर पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल और इसीलिए बाबा विश्वनाथ की इस नगरी को तीनो लोकों से न्यारी काशी कहा जाता है।
आशुतोष सिंह
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