Varanasi News: सरदार वल्लभभाई पटेल की विरासत: राष्ट्रीय एकता, समावेशी शासन और विकसित भारत 2047 की परिकल्पना

Varanasi News: समारोह की अध्यक्षता सामाजिक विज्ञान संकाय की अधिष्ठाता प्रो. बिंदा डी. परांजपे ने की। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में उन्होंने कहा कि यह संगोष्ठी केवल एक अकादमिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की राष्ट्रीय चेतना के पुनरुद्धार का प्रयास है।

Ajit Kumar Pandey
Published on: 25 April 2025 10:35 PM IST
Legacy of Sardar Vallabhbhai Patel: National Unity, Inclusive Governance and Vision of Developed India 2047
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सरदार वल्लभभाई पटेल की विरासत: राष्ट्रीय एकता, समावेशी शासन और विकसित भारत 2047 की परिकल्पना (Photo- Social Media)

Varanasi News: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान संकाय में सामाजिक समावेशन अध्ययन केंद्र द्वारा "रिविज़िटिंग सरदार वल्लभभाई पटेल की विरासत: राष्ट्रीय एकता, समावेशी शासन और विकसित भारत 2047 की परिकल्पना" विषय पर आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन समारोह आज सामाजिक विज्ञान संकाय के संबोधि सभागार में अत्यंत गरिमामय एवं विद्वत्तापूर्ण वातावरण में सम्पन्न हुआ।

उद्घाटन समारोह की शुरुआत सामाजिक विज्ञान संकाय के वरिष्ठ प्रोफेसर जे. बी. कुमरैया द्वारा स्वागत भाषण से हुई। उन्होंने देश-विदेश से पधारे विद्वानों, शोधार्थियों एवं आगंतुकों का हार्दिक अभिनंदन करते हुए सेमिनार की पृष्ठभूमि, उद्देश्य एवं व्यापकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यह संगोष्ठी भारत के सामाजिक-राजनीतिक विमर्श में सरदार पटेल के योगदान को पुनर्परिभाषित करने का एक सशक्त मंच सिद्ध होगी।

मुख्य वक्ता (Keynote Speaker) के रूप में प्रो. संगीत रागी, एक प्रतिष्ठित राजनीतिक विचारक एवं शिक्षाविद्, ने अपने ओजस्वी वक्तव्य में सरदार पटेल की दृष्टि को वर्तमान संदर्भों में अत्यंत प्रासंगिक बताया। उन्होंने कहा कि सरदार पटेल केवल एक लौहपुरुष नहीं थे, बल्कि भारत के संघीय ढांचे के निर्माता भी थे, जिनकी विचारधारा आज भी राष्ट्रीय एकता के लिए मार्गदर्शक है।

विशिष्ट अतिथि डॉ. बालमुकुंद पांडेय, राष्ट्रीय सचिव, भारतीय इतिहास संकलन योजना, ने अपने सारगर्भित वक्तव्य में सरदार पटेल को भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का जीवंत प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि आधुनिक भारत की आत्मा को समझने के लिए सरदार पटेल के कार्यों और विचारों का पुनर्पाठ आवश्यक है।

प्रो. अजित कुमार पांडेय एवं नेपाल से पधारे विद्वान प्रो. उद्धव पोखरियाल ने सरदार पटेल की अंतरराष्ट्रीय छवि पर प्रकाश डालते हुए यह दर्शाया कि भारत की एकता और अखंडता की अवधारणा वैश्विक विमर्श का भी विषय बन रही है। उन्होंने भारत और नेपाल के ऐतिहासिक संबंधों में पटेल के योगदान को स्मरण किया।

इस भव्य समारोह के मुख्य अतिथि महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी, बिहार के कुलपति प्रो. संजय श्रीवास्तव ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि सरदार पटेल ने भारत को केवल राजनीतिक रूप से नहीं, बल्कि भावनात्मक रूप से भी जोड़ा। उन्होंने कहा कि ‘विकसित भारत 2047’ की परिकल्पना तभी साकार हो सकती है जब हम पटेल की एकता और समरसता की अवधारणा को अपने शासकीय एवं सामाजिक ढांचे में आत्मसात करें।

समारोह की अध्यक्षता सामाजिक विज्ञान संकाय की अधिष्ठाता प्रो. बिंदा डी. परांजपे ने की। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में उन्होंने कहा कि यह संगोष्ठी केवल एक अकादमिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की राष्ट्रीय चेतना के पुनरुद्धार का प्रयास है। उन्होंने शिक्षा, शोध और नीति निर्माण में सरदार पटेल के मूल्यों को पुनः समाहित करने की आवश्यकता पर बल दिया।

संचालन पारंपरिक बनारसी शैली में डॉक्टोरल फेलो अवलम्ब कुमार दूबे ने किया। यह संगोष्ठी न केवल सरदार पटेल की राष्ट्रीय दृष्टि को पुनः स्मरण कराने का सशक्त माध्यम बनी, बल्कि समकालीन भारत के लिए उनके विचारों की उपयोगिता एवं मार्गदर्शन को भी रेखांकित करती है। विभिन्न तकनीकी सत्रों में भारत और विदेश के विद्वानों द्वारा शोधपत्रों का वाचन किया गया।

Shashi kant gautam

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