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Israel History 29 January: ब्रिटेन ने इजराइल को किया था इस दिन रिहा, आइए जानते हैं इज़राइल के संघर्ष की कहानी

Israel History 29 January: 29 जनवरी इज़राइल के लिए एक ऐतिहासिक दिन है। क्योंकि इसी तारीख को ब्रिटेन द्वारा इज़राइल को मान्यता देने के फैसले के बाद, इज़राइल को अन्य देशों से भी मान्यता मिलनी शुरू हो गई।

Akshita Pidiha
Written By Akshita Pidiha
Published on: 29 Jan 2025 11:34 AM IST
29 January History Of Israel War
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29 January History Of Israel War 

Israel History 29 January: 29 जनवरी 1949, ब्रिटेन (Britain) द्वारा इज़राइल (Israel) को मान्यता देने की तारीख को एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना के रूप में देखा जाता है। इस दिन ने मध्य-पूर्व में भू-राजनीतिक स्थिति को बदल दिया और इज़राइल के अस्तित्व के लिए एक निर्णायक कदम साबित हुआ। यह घटना उस समय के राजनीतिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य को भी प्रकट करती है, जब इज़राइल के निर्माण के बाद पहले साल में ही अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के रुख में बदलाव देखा गया था।

1939 से 1945 तक चले द्वितीय विश्व युद्ध (World War II) के बाद दुनिया में कई बदलाव आए थे। युद्ध ने यूरोप में भारी तबाही मचाई थी और लाखों लोग मारे गए थे। यह युद्ध विशेष रूप से यहूदी समुदाय के लिए अत्यधिक कष्टकारी था, क्योंकि नाज़ी जर्मनी ने लाखों यहूदियों को अपनी ‘होलोकॉस्ट’ (The Holocaust) नीति के तहत मार डाला था। युद्ध के बाद, यूरोपीय देशों में यहूदी शरणार्थियों की एक बड़ी संख्या थी। अधिकांश ने फिलिस्तीन में एक नए राज्य की स्थापना की उम्मीदें पाली थीं।

ब्रिटेन उस समय फिलिस्तीन का शासन कर रहा था। यह ब्रिटिश मैंडेट था जिसे 1917 में बौलेट फोर डिक्लेरेशन द्वारा अनुमोदित किया गया था। फिलिस्तीन में यहूदियों की आबादी बढ़ी थी। लेकिन वहां की अरब मुस्लिम आबादी के साथ तनाव भी बढ़ गया था। युद्ध के बाद, ब्रिटेन के लिए स्थिति और भी जटिल हो गई।

ब्रिटेन और इज़राइल का संघर्ष (Britain And Israel War)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

1947 में ब्रिटेन ने फिलिस्तीन में एक अलगाव योजना की पेशकश की, जिसमें यहूदियों और अरबों के लिए अलग-अलग राज्य बनाने का प्रस्ताव था। संयुक्त राष्ट्र ने भी फिलिस्तीन के विभाजन का समर्थन किया, और 29 नवम्बर, 1947 को एक प्रस्ताव पास किया, जिसके तहत फिलिस्तीन को दो हिस्सों में बांटने का निर्णय लिया गया – एक यहूदी राज्य और एक अरब राज्य। यह प्रस्ताव था तो बहुमत द्वारा स्वीकृत। लेकिन अरब देशों ने इसे पूरी तरह से नकारा किया। परिणामस्वरूप, युद्ध और हिंसा का सिलसिला शुरू हो गया।

इज़राइल की स्वतंत्रता की घोषणा (Israel Independence)

14 मई,1948 को इज़राइल ने औपचारिक रूप से अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की। इस घोषणा के तुरंत बाद, पड़ोसी अरब देशों ने इज़राइल के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। यह 1948 का अरब-इज़राइल युद्ध (Arab–Israeli War 1948) था। हालांकि, इज़राइल ने इस युद्ध में सफलता प्राप्त की और अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखा। युद्ध में इज़राइल की जीत के बाद, दुनिया भर में इस नए राष्ट्र के लिए पहचान और समर्थन की आवश्यकता महसूस होने लगी।

ब्रिटेन की भूमिका

ब्रिटेन, जो पहले फिलिस्तीन का प्रशासक था, अब एक जटिल स्थिति में था। एक ओर वह अरब देशों से रिश्ते बनाए रखना चाहता था, वहीं दूसरी ओर उसके भीतर यहूदी राज्य के निर्माण को लेकर सहानुभूति भी थी। हालांकि, युद्ध के दौरान ब्रिटेन ने इज़राइल के गठन को पूरी तरह से समर्थन नहीं दिया था। लेकिन धीरे-धीरे वह इस निर्णय पर पहुंचा कि इज़राइल को मान्यता दी जाए। ब्रिटेन ने 29 जनवरी, 1949 को इज़राइल को औपचारिक रूप से मान्यता दी।

ब्रिटेन का यह निर्णय महत्वपूर्ण था क्योंकि यह इज़राइल के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता की दिशा में एक बड़ा कदम था। इससे इज़राइल को न केवल राजनीतिक समर्थन मिला, बल्कि यह आर्थिक और सैन्य सहायता प्राप्त करने में भी सक्षम हुआ।

इज़राइल के लिए मान्यता का महत्व (Recognition of Israel)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

ब्रिटेन द्वारा इज़राइल को मान्यता देने के फैसले के बाद, इज़राइल को अन्य देशों से भी मान्यता मिलनी शुरू हो गई। यह इज़राइल के लिए एक बड़े कूटनीतिक विजय की तरह था। मान्यता मिलने से इज़राइल को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी स्थिरता की दिशा में मजबूत आधार मिला। इसके बाद इज़राइल ने संयुक्त राष्ट्र संघ में सदस्यता प्राप्त की, जो उसकी अंतर्राष्ट्रीय स्थिति को और मजबूत करने में सहायक था।

ब्रिटेन का निर्णय और उसके प्रभाव

ब्रिटेन का यह निर्णय केवल इज़राइल के लिए ही नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में भी महत्वपूर्ण था। ब्रिटेन की मान्यता से पहले ही कई देश इज़राइल के साथ संबंध स्थापित कर चुके थे। लेकिन ब्रिटेन की मान्यता ने उसे एक प्रमुख वैश्विक शक्ति के समर्थन की शक्ति दी।

ब्रिटेन के इस फैसले ने अरब देशों को भी प्रतिक्रिया देने के लिए प्रेरित किया। ब्रिटेन के निर्णय के बाद, अधिकांश अरब देशों ने इज़राइल के खिलाफ एकजुट होकर विरोध करना शुरू कर दिया।

29 जनवरी, 1949 को ब्रिटेन द्वारा इज़राइल को मान्यता देना न केवल एक कूटनीतिक निर्णय था, बल्कि यह मध्य-पूर्व में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत था। इसने इज़राइल को एक राष्ट्र के रूप में स्वीकार करने के लिए वैश्विक समुदाय का मार्ग प्रशस्त किया और क्षेत्रीय स्थिरता की दिशा में एक कदम आगे बढ़ाया। हालांकि, यह निर्णय अरब देशों के लिए एक घातक झटका था और इज़राइल को हमेशा अपने दुश्मनों का सामना करना पड़ा है।

आज़ादी के बाद से इज़राइल बार-बार युद्धों में उलझा और उसके नागरिकों पर हमले हुए। लेकिन इस देश ने हमेशा अपने दुश्मनों को मुँहतोड़ जवाब दिया। इज़राइल की जासूसी एजेंसी, मोसाद, दुनिया की सबसे खतरनाक खुफिया संस्था मानी जाती है, जिसने कई असंभव लगने वाली घटनाओं को अंजाम दिया है।

इज़राइल की राजधानी येरुशलम दुनिया के तीन प्रमुख धर्मों का पवित्र स्थल है, जिन्हें मानने वाले लोग पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। यह इस्लाम, यहूदी और ईसाई धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यधिक पवित्र मानी जाती है। येरुशलम प्राचीन यहूदी राज्य का केंद्र और राजधानी हुआ करता था और कहा जाता है कि यहीं यहूदियों का परम पवित्र सोलोमन मन्दिर हुआ करता था, जिसे रोमनों ने नष्ट कर दिया था। यह शहर ईसा मसीह की कर्मभूमि भी रहा है और यहीं से हज़रत मुहम्मद ने जन्नत की ओर यात्रा की थी।

इसके बाद मध्य-पूर्व में संघर्षों की लंबी श्रृंखला शुरू हुई। इज़राइल की मान्यता के बाद के घटनाक्रमों ने दुनिया भर में युद्ध, शांति प्रक्रिया और राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित किया। 29 जनवरी, 1949 की यह तारीख अब एक ऐतिहासिक मील का पत्थर बन चुकी है, जो यहूदी राष्ट्र की स्थापना के प्रयासों और उनके अस्तित्व के संघर्ष को याद कराती है।



Shreya

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