अगर अज़रबैजान टूटा भारत का रिश्ता,तो जल उठेगी जेब, हिल जाएगा एनर्जी सेक्टर! जानिए कैसे एक छोटा-सा देश भारत को पहुंचा सकता है बड़ा नुकसान

India-Azerbaijan Relations: अब सवाल उठता है कि अगर भारत और अज़रबैजान के रिश्तों में दरार आ गई, तो क्या होगा? महंगाई किस पर आएगी, क्या चीजें महंगी होंगी, और देश को कुल कितना घाटा उठाना पड़ेगा?

Harsh Srivastava
Published on: 18 May 2025 3:47 PM IST
India Azerbaijan Conflict
X

India Azerbaijan Conflict

India-Azerbaijan Relations: सोचिए एक दिन सुबह आप उठते हैं, चाय का प्याला हाथ में लिए टीवी ऑन करते हैं, और ब्रेकिंग न्यूज़ आती है भारत और अज़रबैजान के रिश्ते पूरी तरह खत्म हो गए। शायद आप चौंक जाएं, शायद सोचें, “भला अज़रबैजान से हमारा क्या लेना-देना?” पर यहीं पर चूक हो जाती है। जिस देश को आप नाम से ही मुश्किल से पहचानते हैं, वो भारत की ऊर्जा सुरक्षा, पेट्रो-केमिकल सेक्टर और रणनीतिक कूटनीति में एक अहम भूमिका निभा रहा है। अब सवाल उठता है कि अगर भारत और अज़रबैजान के रिश्तों में दरार आ गई, तो क्या होगा? महंगाई किस पर आएगी, क्या चीजें महंगी होंगी, और देश को कुल कितना घाटा उठाना पड़ेगा?

दरअसल, अज़रबैजान कोई साधारण देश नहीं है। ये काकेशस क्षेत्र में स्थित एक ऊर्जा-संपन्न देश है, जिसकी सीमाएं रूस, ईरान और तुर्की जैसे महत्त्वपूर्ण देशों से मिलती हैं। ये ना सिर्फ पश्चिम और पूर्व के बीच एक भू-रणनीतिक पुल है, बल्कि एक ऐसा देश है जो दुनिया के टॉप तेल और गैस निर्यातकों में से एक है। भारत की ऊर्जा जरूरतों का एक हिस्सा अज़रबैजान से आता है, और अगर ये रिश्ता खत्म होता है तो असर सीधा आपकी जेब पर पड़ेगा।


भारत अज़रबैजान का क्या है रिश्ता?

भारत अज़रबैजान से मुख्य रूप से क्रूड ऑयल और एलपीजी यानी लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस खरीदता है। बीते कुछ वर्षों में दोनों देशों के बीच ऊर्जा व्यापार में तेजी आई है, खासकर तब से जब ONGC Videsh ने अज़रबैजान की कास्पियन सी परियोजनाओं में निवेश किया। इन प्रोजेक्ट्स के ज़रिए भारत को तेल और गैस की नियमित आपूर्ति होती है, जो घरेलू इस्तेमाल के साथ-साथ इंडस्ट्रियल उपयोग के लिए भी बेहद ज़रूरी है। अगर अज़रबैजान की सप्लाई बंद हो जाती है, तो भारत को दूसरे विकल्प तलाशने होंगे जैसे रूस या खाड़ी देश, जहां कीमतें या तो ज़्यादा हैं या सप्लाई उतनी स्थिर नहीं है। इससे भारत के ऊर्जा बिल में सीधी बढ़ोतरी होगी। सिर्फ इतना ही नहीं, भारत में घरेलू गैस सिलेंडरों की कीमत में 70 से 120 रुपये तक की बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है। इंडस्ट्रियल सेक्टर—खासकर प्लास्टिक, केमिकल और टेक्सटाइल में प्रयुक्त होने वाली रॉ मटीरियल की लागत भी बढ़ेगी। पेट्रोल-डीज़ल की कीमतें भी अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होंगी, जो पहले से ही अस्थिर अंतरराष्ट्रीय बाजार के कारण दबाव में हैं।


ये रिश्ते टूटने की नौबत क्यों आ रही है?

हाल ही में भारत और अज़रबैजान के बीच तनाव का कारण बना है एक कूटनीतिक बवंडर, जिसकी जड़ें धर्म और वैश्विक राजनीति से जुड़ी हैं। अज़रबैजान ने हाल ही में भारत की इस्लामिक पॉलिसियों और कुछ अंदरूनी घटनाओं पर आपत्ति जताई, और मुस्लिम दुनिया में भारत की छवि को लेकर सार्वजनिक बयान दिए। इसके जवाब में भारत ने भी कुछ कदम उठाए, जैसे अज़रबैजान की आलोचना वाले बयान या रणनीतिक सहयोग में सुस्ती।

दूसरी ओर, अज़रबैजान की गहराती नज़दीकी पाकिस्तान और तुर्की से भी भारत को खटक रही है। तुर्की और पाकिस्तान दोनों ही भारत के कश्मीर मुद्दे पर आलोचनात्मक रुख अपनाते रहे हैं। अब अज़रबैजान इन दोनों के साथ सैन्य अभ्यास, रक्षा सहयोग और धार्मिक एकता का बखान करता है। इससे भारत को लगता है कि अज़रबैजान धीरे-धीरे उस धुरी में शामिल हो रहा है, जो दक्षिण एशिया में भारत विरोधी एजेंडे को बढ़ावा देती है।


कैसे बढ़ा ये विवाद

इस तनाव को और हवा तब मिली जब अज़रबैजान ने संयुक्त राष्ट्र और OIC जैसे मंचों पर भारत के खिलाफ बयान दिए। भारत, जो अब तक अज़रबैजान के क्षेत्रीय मुद्दों (जैसे नागोर्नो-काराबाख विवाद) में तटस्थ भूमिका निभा रहा था, अब धीरे-धीरे वहां से दूरी बनाता दिख रहा है। यह दूरी कूटनीतिक रूप से नुकसानदेह हो सकती है, खासकर तब जब भारत खुद ऊर्जा सुरक्षा और वैश्विक कूटनीति के संतुलन के लिए कई मोर्चों पर जूझ रहा है। अब जरा सोचिए, सिर्फ तेल और गैस नहीं, भारत को अज़रबैजान से आयात होने वाले कुछ हाई ग्रेड केमिकल्स, धातुएं और औद्योगिक पार्ट्स की सप्लाई पर भी असर पड़ेगा। भारत की कई ऑटोमोबाइल और फार्मास्युटिकल कंपनियां इन सामग्रियों पर निर्भर हैं। इससे मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में दिक्कतें आएंगी, जो अंततः रोज़गार और उत्पादन दर को प्रभावित करेंगी।


भारत को करना पड़ेगा रणनीतिक घेराव का सामना ?

रक्षा के क्षेत्र में भी सहयोग की संभावनाएं रही हैं। अज़रबैजान इज़राइल और तुर्की से हाई-टेक हथियार खरीदता है, और भारत के लिए ये रास्ते, भले ही प्रत्यक्ष न हों, पर अप्रत्यक्ष रूप से रणनीतिक हैं। अगर अज़रबैजान भारत-विरोधी कैंप में शामिल हो जाता है, तो भारत को काकेशस क्षेत्र में एक और मोर्चे पर रणनीतिक घेराव का सामना करना पड़ सकता है। साफ है कि यह रिश्ता केवल तेल या कूटनीति तक सीमित नहीं है। यह एक बड़ी भू-रणनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक चेन का हिस्सा है, जिसका टूटना भारत के लिए कई मोर्चों पर झटके जैसा होगा। इसलिए भारत को इस मामले में बेहद सतर्कता से कदम रखने की ज़रूरत है। फिलहाल विदेश मंत्रालय और रणनीतिक विश्लेषकों की निगाहें इस मामले पर टिकी हैं। भारत शायद बैकचैनल डिप्लोमेसी से रिश्तों को फिर से पटरी पर लाने की कोशिश करे। वहीं, अज़रबैजान को भी समझना होगा कि पाकिस्तान और तुर्की से अत्यधिक निकटता उसे भारत जैसे विशाल बाजार और स्थिर साझेदार से दूर कर सकती है।


अगर भारत और अज़रबैजान रिश्ता खत्म हुआ तो क्या होगा?

अगर भारत और अज़रबैजान के रिश्ते पूरी तरह खत्म होते हैं, तो नुकसान सिर्फ डिप्लोमैटिक नहीं, बल्कि बहुत अधिक आर्थिक, रणनीतिक और सामाजिक होगा। महंगाई की लहर आम आदमी की रसोई से लेकर देश के उद्योग तक को झकझोर देगी। इसलिए अब वक्त है कूटनीति को सधे हाथों से संभालने का, ताकि ये रिश्ता पूरी तरह दरकने न पाए। भारत के लिए अज़रबैजान छोटा देश हो सकता है, लेकिन उसकी अहमियत तेल की उस बूंद जैसी है, जो इंजन बंद भी कर सकती है और रफ्तार भी दे सकती है।

Harsh Srivastava

Harsh Srivastava

News Cordinator and News Writer

Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

Next Story