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नेपाल के गृह मंत्री, प्रधानमंत्री के बाद अब राष्ट्रपति ने भी दिया इस्तीफा, Gen-Z के सामने झुकी सरकार
नेपाल में सोशल मीडिया बैन के विरोध में भड़के Gen-Z आंदोलन के बाद गृह मंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने इस्तीफा दे दिया। देश में राजनीतिक अस्थिरता और संवैधानिक संकट गहरा गया है।
Nepal President Resign: नेपाल में सोशल मीडिया बैन पर भड़का गुस्सा अब एक सियासी सुनामी में बदल गया है। हिंसक विरोध प्रदर्शनों और लगातार बिगड़ते हालात के बीच, सरकार एक-एक कर ताश के पत्तों की तरह ढह रही है। गृह मंत्री रमेश लेखक के इस्तीफे के बाद, प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भी अपना पद छोड़ दिया है, और अब सबसे बड़ी खबर यह है कि राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने भी इस्तीफा दे दिया है। यह घटनाक्रम न सिर्फ चौंकाने वाला है, बल्कि यह भी साबित करता है कि जनता का गुस्सा जब चरम पर होता है, तो सत्ता के ऊंचे पद भी हिल जाते हैं।
सोशल मीडिया से शुरू हुआ 'सियासी भूचाल'
यह पूरा मामला तब शुरू हुआ जब नेपाल सरकार ने फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगा दिया। सरकार के इस फैसले को युवाओं ने अपनी अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला माना, जिसके बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन भड़क उठे। राजधानी काठमांडू की सड़कों पर हजारों की संख्या में युवा और छात्र उतर आए, जिसके बाद पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़पें हुईं। इन झड़पों में अब तक 19 लोगों की मौत हो चुकी है, और सैकड़ों घायल हैं।
सरकार का 'पतन': एक के बाद एक इस्तीफे
हिंसा और मौतों के बाद सरकार पर भारी दबाव था। सबसे पहले, गृह मंत्री रमेश लेखक ने इस्तीफा देकर सरकार की गलती को स्वीकार किया। इसके बाद, प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भी जनता के आक्रोश के आगे घुटने टेक दिए और अपना पद छोड़ दिया। लेकिन, इस सियासी भूचाल का सबसे बड़ा झटका तब लगा, जब राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने भी अपना इस्तीफा सौंप दिया। राष्ट्रपति का इस्तीफा न सिर्फ सरकार के पतन को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि नेपाल में संवैधानिक संकट गहरा गया है।
युवाओं का 'विजयी' आंदोलन: एक नई शुरुआत?
यह घटनाक्रम नेपाल में युवाओं के आंदोलन की एक बड़ी जीत मानी जा रही है। उन्होंने बिना किसी बड़े नेता या राजनीतिक दल के समर्थन के, अपनी आवाज को इतना बुलंद किया कि पूरी सरकार को झुकना पड़ा। यह आंदोलन न सिर्फ सोशल मीडिया बैन के खिलाफ था, बल्कि यह भ्रष्टाचार, राजनीतिक अस्थिरता और रोजगार की कमी जैसे गहरे मुद्दों पर भी था। अब नेपाल एक अनिश्चितता के दौर में है, जहां सरकार के सभी शीर्ष पद खाली हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि देश इस संकट से कैसे बाहर आता है और क्या यह आंदोलन नेपाल में एक नए राजनीतिक युग की शुरुआत करेगा।
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