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‘प्रधानमंत्री से सीधा संस्कृति मंत्री’: सियासी खेल में अब भी मौजूद शिनावात्रा, लीक कॉल ने मचाया था भूचाल
Thailand PM Shinawatra: कभी प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालने वाली पैटोंगतर्न शिनावात्रा को अब ‘संस्कृति मंत्री’ बना दिया गया है – वो भी उस वक्त जब वह एक बड़े एथिक्स स्कैंडल की जांच का सामना कर रही हैं!
Thailand PM Shinawatra: थाईलैंड की सियासत में एक ऐसा मोड़ आया है जिसे देखकर दुनिया चौंक गई है और जनता सड़कों पर उतर आई है। कभी प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालने वाली पैटोंगतर्न शिनावात्रा को अब ‘संस्कृति मंत्री’ बना दिया गया है – वो भी उस वक्त जब वह एक बड़े एथिक्स स्कैंडल की जांच का सामना कर रही हैं! हकीकत ये है कि उन्होंने भले प्रधानमंत्री पद गंवा दिया हो, लेकिन सत्ता के केंद्र से उनका नाता अभी टूटा नहीं है। और यही बात थाईलैंड की जनता के गले नहीं उतर रही। पूरे देश में एक ही सवाल गूंज रहा है — क्या देश की गरिमा से खिलवाड़ करने वाली नेता को सत्ता में दोबारा जगह मिलनी चाहिए?
‘लीक कॉल’ जिसने तख्त पलट दिया!
मामला तब भड़का जब मई में थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा पर एक झड़प हुई, जिसमें एक कंबोडियाई सैनिक की मौत हो गई। इस तनावपूर्ण स्थिति के बीच पैटोंगतर्न और कंबोडिया के पूर्व प्रधानमंत्री हून सेन के बीच की एक गुप्त फोन कॉल लीक हो गई — जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया। इस कॉल में शिनावात्रा कंबोडिया से ‘तनाव न बढ़ाने की अपील’ करती सुनी गईं। लेकिन थाई जनता को ये अपील ‘झुकने’ जैसा लगा। सोशल मीडिया पर बवाल मच गया, आरोप लगे कि उन्होंने देश की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई, राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता किया और कूटनीतिक रूप से थाईलैंड को कमजोर किया। इसी कॉल के चलते उनके खिलाफ ‘एथिक्स उल्लंघन’ की याचिका दायर की गई, जिसे संवैधानिक अदालत ने 7-2 वोटों से स्वीकार कर लिया। अदालत ने उन्हें तत्काल प्रभाव से प्रधानमंत्री पद से निलंबित कर दिया और 15 दिन में सफाई देने का समय दिया है।
संस्कृति मंत्री’ की शपथ या राजनीतिक चाल?
जिन्हें जनता ने देशद्रोह के आरोपों में घेरा, उन्हें राजा द्वारा अनुमोदित कैबिनेट में फिर से शामिल करना… इस कदम ने सबको हैरान कर दिया है। प्रधानमंत्री पद से निलंबित होने के महज 24 घंटे बाद ही पैटोंगतर्न ने संस्कृति मंत्री के तौर पर शपथ ली। गवर्नमेंट हाउस में जब वह नई कैबिनेट के साथ पहुंचीं तो उनके चेहरे पर वही आत्मविश्वास भरी मुस्कान थी — मानो कुछ हुआ ही नहीं। लेकिन इस ‘शपथ समारोह’ ने उनके खिलाफ जनता के गुस्से को और भी भड़का दिया। लोग पूछ रहे हैं — क्या यह पद ‘राजनीतिक संरक्षण’ के लिए दिया गया है? क्या यह सत्ता के गलियारों में रची गई एक नई साजिश है?
मंच से नज़रें चुराईं, सवालों से भागीं
जब शिनावात्रा ने बाकी मंत्रियों के साथ शपथ ली, तो मीडिया की नजरें उन्हीं पर थीं। लेकिन उन्होंने एक भी सवाल का जवाब नहीं दिया। उन्होंने चुपचाप शपथ ली, तस्वीरें खिंचवाईं और गाड़ी में बैठकर चली गईं — मानो अब कुछ कहना बाकी नहीं। इस बीच कार्यवाहक प्रधानमंत्री सुरिया जुंगरुंगरेंगकित ने नई कैबिनेट को राजा महा वजिरालोंगकोर्न से मंजूरी दिलवाई, लेकिन इस बीच जनता के भीतर एक अलग ही आग सुलग रही थी — राजधानी बैंकॉक की सड़कों पर प्रदर्शन तेज हो चुके हैं, नारे लग रहे हैं "देशद्रोही बाहर जाओ!"
जनता में फूटा गुस्सा, न्यायपालिका पर सबकी नजरें
कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए रास्ता खोल दिया है, लेकिन लोग साफ कह रहे हैं कि अगर इस बार भी नेताओं को बचाया गया, तो लोकतंत्र की आखिरी उम्मीद भी खत्म हो जाएगी। कोर्ट के पास अब दो ही रास्ते हैं — या तो शिनावात्रा को दोषी ठहराए और राजनीतिक जीवन से बाहर करें, या फिर उन्हें क्लीन चिट देकर जनता के गुस्से को और भड़काएं। अगर अदालत ने उन्हें दोषी पाया, तो थाईलैंड की राजनीति में भूचाल आ सकता है। लेकिन अगर उन्हें बरी किया गया, तो सड़कों पर जो आग लगी है — वो रुकने वाली नहीं।
यह सिर्फ फोन कॉल नहीं, लोकतंत्र की साख का सवाल है
पैटोंगतर्न शिनावात्रा अब सिर्फ एक पूर्व प्रधानमंत्री नहीं हैं, वह थाईलैंड की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए एक ‘लिटमस टेस्ट’ बन चुकी हैं। क्या सत्ता के गलियारों में अब भी ईमानदारी बची है? क्या जनता की आवाज सुनी जाएगी या फिर एक बार फिर ‘राजनीतिक चालों’ के आगे न्याय हार जाएगा? अगले कुछ हफ्ते थाईलैंड के भविष्य को तय करेंगे। एक कॉल ने न केवल प्रधानमंत्री की कुर्सी छीनी, बल्कि पूरे देश को सवालों के कटघरे में ला खड़ा किया। अब देखना ये है — क्या न्याय की आवाज सत्ता के शोर में दब जाएगी? या फिर इस बार इतिहास किसी और दिशा में लिखा जाएगा?
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