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अभी आना बाकी हैं तेल के सबसे खराब दिन
दुनिया का हर रोज का ऑयल प्रोडक्शन करीब 10 करोड़ बैरल है। कोरोना महामारी की वजह से इसमें से 30 फीसदी डिमांड खत्म हो गई है। ऐसे में जो 3 करोड़ बैरल रोज के निकल रहे हैं और उनको रखने की जगह खत्म होती जा रही है।
नई दिल्ली क्रूड तेल की ओवरसप्लाई और लगभग शून्य डिमांड के कारण हालत ये हो गई है कि विक्रेताओं को तेल डिलीवर करने के लिए भुगतान करना पड़ रहा है। अमेरिका के तेल बाजार में बीते 20 अप्रैल ऐसी गिरावट आई कि दुनिया की बेस्ट क्वालिटी के कच्चे तेल की कीमत शून्य से भी नीचे चली गई। उस दिन ‘वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट’ (डब्ल्यूटीआई) की कीमत प्रति बैरल माइनस 40.32 डॉलर पर पहुंच गई थी। ब्लूमबर्ग के मुताबिक ये न सिर्फ कच्चे तेल की अब तक की सबसे न्यूनतम कीमत है, बल्कि शून्य के नीचे दाम गिरने की भी पहली घटना है। इससे पहले द्वितीय विश्व युद्ध के समये कच्चे तेल की कीमतें न्यूनतम स्तर पर गई थीं। शून्य से नीचे दाम जाने का मतलब है कि बेचने वाला उल्टे खरीदार को प्रति बैरल 40 डालर देगा। उधर माल्ट ब्रेंट की कीमतों में 25 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई और ये प्रति बैरल 20 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे गिर गया।
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क्या है इसका मतलब
एक बैरल कच्चे तेल की कीमतों का निर्धारण आपूर्ति, मांग और गुणवत्ता पर आधारित होता है। कोरोना वायरस के चलते अरबों लोगों की यात्रा पर रोक लगाए जाने की वजह से मांग के मुकाबले सप्लाई यानी कि आपूर्ति बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है। कच्चे तेल की ओवरसप्लाई की वजह से डब्ल्यूटीआई के स्टोरेज टैंक इतने भर चुके हैं कि तेल को रखने में जगह की समस्या हो रही है। यूएस एनर्जी इंफॉर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार अमेरिका के पाइपलाइन नेटवर्क का स्टोरेज 72% भर गया था। अब स्टोरेज के लिए कोई जगह बची नहीं है, इसलिए कमोडिटी की कीमत प्रभावी रूप से बेकार है। इसलिए अगर इसकी कीमत माइनस एक डॉलर है तो वे इसे वहां से निकालने के लिए आपको एक डॉलर का भुगतान करेंगे।
बंद हो सकता है उत्पादन
पूर्वानुमानों के अनुसार अमेरिकी तेल उत्पादन 2021 के अंत तक प्रति दिन 1 से 3 मिलियन बैरल तक गिर सकता है। इस आधार पर भंडारण और सप्लाई गिरने से ‘शट इन’ शुरू हो सकता है। गोल्डमैन सैक्स के विश्लेषकों ने लिखा है भंडारण की एक सीमित मात्रा को भरने के लिए छोड़ दिया गया है, बाजार में संतुलन लाने के लिए उत्पादन को जल्द ही गिराने की आवश्यकता होगी, आखिरकार धीरे-धीरे मांग बढ़ने पर कीमतों को बढ्ने का मौका मिलेगा। इसका मतलब है कि अमेरिकी तेल उद्योग अगले कुछ हफ्तों में प्रति दिन कई मिलियन बैरल खो सकता है, जिसे गोल्डमैन विश्लेषकों ने हिंसक असंतुलन कहा है।
संकट का नया चरण
उद्योग के लिए संकट एक नए चरण में प्रवेश कर गया है। अभी और मोड़ आने बाकी हैं। राष्ट्रपति ट्रम्प ने सुझाव दिया है कि वह सऊदी अरब से तेल के आयात को रोकने पर विचार। साथ ही उन्होने 75 मिलियन बैरल तेल के रणनीतिक पेट्रोलियम रिजर्व को भरने की अपनी योजना को दोहराया। इसके अलावा 21 अप्रैल को टेक्सास रेलरोड कमीशन ने उत्पादन कटौती को अनिवार्य करने का प्रस्ताव दिया। इसी राज्य में सर्वाधिक उत्पादन होता है।
सरकारी हस्तक्षेप
तेल और गैस उद्योग के अनुसार, ड्रिलरों को कर्ज चुकाने के लिए सरकार फंड उधार दे सकती है। इसके लिए 600 बिलियन डॉलर के फेडरल रिजर्व के इस्तेमाल की पैरवी की जा रही है। इसके अलावा, सरकार संकटग्रस्त फर्मों को ऋण की गारंटी दे सकती है, और वाशिंगटन अपने वोटिंग शेयरों का उपयोग शट-इन को बाध्य करने के लिए कर सकता है जिसमें ओपेक के साथ सौदेबाजी भी शामिल रहेगी। बहरहाल, तेल बाजार ओवरसप्लाई में डूब रहा है। प्रति दिन 25 से 30 मिलियन बैरल की डिमांड घटने का मतलब है तेल उद्योग का दिवालिया होने वाली स्थिति।
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भारत को फायदा नहीं
वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) का क्रूड भले ही नेगेटिव में चला गया है लेकिन ब्रेंट क्रूड की कीमतों में ज्यादा गिरावट नहीं आई है। भारत ब्रेंट क्रूड ही सबसे ज्यादा खरीदता है। यह ध्यान रखना जरूरी है कि वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में वर्तमान गिरावट सप्लाई का झटका नहीं है बल्कि ये अस्थाई कमजोर मांग के कारण है। इसमें भारत जैसे तेल उपभोक्ताओं को लाभ नहीं मिलने वाला है। एक्स्पर्ट्स के अनुसार भारत की राजकोषीय स्थिति में कम कच्चे तेल की कीमतों से लाभ सीमित रहेगा क्योंकि पेट्रोलियम क्षेत्र से सरकार को काफी टैक्स मिलता है।
ट्रांसपोर्ट का लॉकडाउन
लॉकडाउन के कारण गंभीर स्थिति उपजी है और पेट्रोलियम उत्पादों की खपत तेजी से गिरी है। इसके अलावा, उपभोक्ताओं के हाथों में कम पैसा होने के परिणामस्वरूप खपत में वृद्धि की संभावना नहीं है। विश्लेषकों ने तेल की कीमतों में धीरे-धीरे सुधार होने की उम्मीद जताई, है क्योंकि अर्थव्यवस्था में प्रतिबंधों में ढील शुरू हो गई है और मध्यम अवधि में मांग-आपूर्ति संतुलन बहाल हो गया है।
तेल कंपनियों के मुनाफे पर असर
तेल की कम कीमतें प्राकृतिक गैस कार्पोरेशन लिमिटेड और ऑयल इंडिया लिमिटेड की किस्मत पर छाया डालेंगी। दोनों कंपनियों के शेयर में गिरावट आई है। इसके अलावा तेल में सट्टेबाजी करनेवालों को भारी नुकसान हुआ है।
बॉक्स
दुनिया का हर रोज का ऑयल प्रोडक्शन करीब 10 करोड़ बैरल है। कोरोना महामारी की वजह से इसमें से 30 फीसदी डिमांड खत्म हो गई है। ऐसे में जो 3 करोड़ बैरल रोज के निकल रहे हैं और उनको रखने की जगह खत्म होती जा रही है।
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