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Sawan Me Shadi Kyu Nhi Hoti शिव-पार्वती का हुआ था मिलन, फिर भी इस पवित्र महीने में क्यों नहीं होती शादी, , जानिए इसके पीछे छिपे रहस्य
Sawan Me Shadi Kyu Nhi Hoti : सावन के पवित्र महीना में भक्ति चरम पर होती है, इस महीना शिव की भक्ति व्रत उपवास त्योहार मनाये जाते है। लेकिन इस पवित्र महीना में शादी जेसे काम क्यों नहीं किये जाते है।
Sawan Me Shadi Kyu Nhi Hoti: सावन का महीना साल के 12 मास में सबसे पवित्र महीना है। चातुर्मास की शुरुआत के साथ सावन का महीना शुरु होता है इस मास में शिव भक्ति चरम पर रहती है। हर तरफ उल्लास और हरियाली छाई रहती है। इस मास में शिव और पार्वती का मिलन हुआ था। सावन भगवान शिव और माता पार्वती की भक्ति का समय है, जब शिवलिंग पर जलाभिषेक करने और भोलेनाथ की पूजा करने के लिए भीड़ उमड़ती है। सावन में कांवड़ यात्रा, शिवरात्रि और मंत्र जाप की महिमा खास बनाती है, लेकिन इस महीने में पूजा पाठ तो होते है, लेकिन मुंडन, गृह प्रवेश, जनेऊ शादी विवाह जैसे काम नहीं होते है।
सावन का महीना भगवान शिव का विशेष महीना है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सावन में मोक्ष की प्राप्ति संभव है। सावन में प्रकृति भी हरियाली से भरी होती है, जो आध्यात्मिक शांति और पवित्रता का प्रतीक है। इस महीने में कांवड़ यात्रा, जिसमें भक्त पवित्र नदियों से जल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं और सावन सोमवार की पूजा विशेष महत्व रखती है, लेकिन इस पवित्र महीने में शादी जैसे मांगलिक कार्यों का निषेध क्यों है?
सावन में शुभ काम निषेध है ?
सावन के महीने में पूजा किए जाते हैं, लेकिन इस महीने मांगलिक कार्य जैसे कि विवाह नहीं किया जाता है। क्योंकि जब श्रावण मास आषाढ़ के बाद प्रारंभ होता है। आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन निद्रा में चले जाते हैं और इसके बाद सारे ही मांगलिक कार्य रुक जाते हैं। इसके साथ ही एकादशी के बाद से चतुर्मास का आरंभ होता है और फिर सावन ही नहीं बल्कि चार महीने तक सारे मांगलिक कार्य रुक जाते हैं। यही कारण है कि सावन का महीना इतना पवित्र होने के बाद भी इस महीने में मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। सावन में शादी न होने का एक अन्य महत्वपूर्ण कारण चातुर्मास से जुड़ा है। हिंदू धर्म में चातुर्मास यानी चार महीनों का समय- श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, और कार्तिक को भगवान विष्णु की योगनिद्रा का समय माना जाता है। विष्णु पुराण के अनुसार, सावन के महीने में भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग की शय्या पर योगनिद्रा में चले जाते हैं। इस दौरान वे सृष्टि के संचालन से विराम लेते हैं और भगवान शिव सृष्टि की जिम्मेदारी संभालते हैं।कर्मकांड मांगलिक काम बिना श्रीविष्णु के आशीर्वाद के पूरे नहीं हो सकते है।
सावन में नहीं होती शादी
स्कंद पुराण और शिव पुराण के अनुसार सावन में शादी न होने की कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है। जब देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया, तो समुद्र से कई रत्नों के साथ-साथ हलाहल नामक विष भी निकला। यह विष इतना प्रबल था कि वह तीनों लोकों को नष्ट कर सकता था। तब भगवान शिव ने इस विष को अपने कंठ में धारण किया और इसे पी लिया, जिसके कारण उनका कंठ नीला पड़ गया और उन्हें नीलकंठ कहा गया।
सावन के महीने में विष के प्रभाव से शिव को तीव्र पीड़ा हुई और माता पार्वती ने उनकी रक्षा के लिए विशेष पूजा और तप किया। इस कारण सावन का महीना शिव की तपस्या, भक्ति, और उनके बलिदान से जुड़ा हुआ है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, यह महीना आध्यात्मिक साधना और तप के लिए उपयुक्त है, न कि सांसारिक और मांगलिक कार्यों जैसे विवाह के लिए। विवाह एक उत्सव और सुख का प्रतीक है, जबकि सावन का महीना तप और त्याग का समय माना जाता है, इसलिए इस महीने में शादी जैसे मांगलिक कार्यों को टाला जाता है।सावन में भारी बारिश होती है, जिसके कारण यात्रा करना और विवाह समारोह आयोजित करना मुश्किल हो जाता है।
विवाह जैसे मांगलिक कार्यों में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद आवश्यक माना जाता है और इस समय विष्णु निद्रा में होते हैं, इसलिए सावन में शादी नहीं की जाती। यह मान्यता है कि विष्णु की अनुपस्थिति में विवाह जैसे कार्यों का शुभ परिणाम नहीं मिल सकता। इसके अलावा, चातुर्मास में अन्य मांगलिक कार्य जैसे गृह प्रवेश और मुंडन भी टाले जाते हैं।
देवी पार्वती के तप से जुड़ा है सावन
एक अन्य कथा माता पार्वती की सावन में की गई तपस्या से जुड़ी है। शिव पुराण के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए सावन के महीने में कठोर तप किया था। उनकी यह तपस्या इतनी प्रबल थी कि स्वयं शिव प्रसन्न होकर उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। इस कथा के कारण सावन का महीना तप, भक्ति और आत्मसंयम का प्रतीक बन गया।
विवाह एक सांसारिक और उत्सवपूर्ण कार्य है, जो सुख और समृद्धि से जुड़ा है, लेकिन सावन का महीना तप और संयम का समय है, जब भक्त अपनी इच्छाओं को नियंत्रित कर भगवान शिव की भक्ति में लीन होते हैं, इसलिए इस महीने में शादी जैसे कार्यों को अशुभ माना जाता है, क्योंकि यह तप के उद्देश्य के विपरीत है।
सावन में आराधना और तपस्या के लिए समर्पित होता है। यह समय आत्म-संयम और पूजा-पाठ के लिए होता है, न कि विवाह जैसे सांसारिक आयोजनों के लिए। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस महीने में शादी करना शुभ नहीं माना जाता है, क्योंकि यह समय साधना और ध्यान के लिए होता है। इस मौसम में बार-बार बारिश और खराब मौसम की स्थिति होती है, जो बड़े विवाह समारोह के आयोजन के लिए उपयुक्त नहीं होती। बारिश के कारण सड़कें खराब हो सकती हैं और यात्रा की समस्याएँ बढ़ सकती हैं। सावन में विवाह न करने की परंपरा भी समाज की उन मान्यताओं का हिस्सा है, जिनका पालन सैकड़ों वर्षों से किया जा रहा है।
नोट : ये जानकारियां धार्मिक आस्था और मान्यताओं पर आधारित हैं। Newstrack.com इसकी पुष्टि नहीं करता है।इसे सामान्य रुचि को ध्यान में रखकर लिखा गया है
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