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बिहार की सियासत में महाभारत! चिराग पासवान बनाम प्रशांत किशोर: कौन बनेगा 2025 का 'किंगमेकर'?
Chirag Paswan vs Prashant Kishor: आज से कुछ साल पहले तक शायद ही किसी ने सोचा होगा कि चिराग पासवान, जिनके नाम के आगे रामविलास पासवान जैसी विरासत जुड़ी है, सीधे-सीधे प्रशांत किशोर जैसे रणनीतिकार के आमने-सामने आ खड़े होंगे। लेकिन राजनीति में वक्त और जमीन दोनों कब करवट ले लें, यह कोई नहीं जानता।
Chirag Paswan vs Prashant Kishor
Chirag Paswan vs Prashant Kishor: बिहार की राजनीति हमेशा से उबाल पर रही है। लालू बनाम नीतीश, नीतीश बनाम मोदी, मोदी बनाम ममता—ये सब हमने देखे हैं। लेकिन अब एक नई जंग शुरू हो चुकी है। एक तरफ है चिराग पासवान, जिनकी राजनीति में भावनात्मक अपील है, युवा चेहरा है और दलित वोट बैंक पर पकड़ मजबूत होती जा रही है। दूसरी तरफ मैदान में उतरे हैं प्रशांत किशोर, जो खुद को ‘जनता का नेता’ साबित करने के लिए जमीन से संघर्ष कर रहे हैं। 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव किसी एक पार्टी या गठबंधन की जंग नहीं होगा, बल्कि यह 'चिराग बनाम प्रशांत' का मुकाबला बनने जा रहा है। आज से कुछ साल पहले तक शायद ही किसी ने सोचा होगा कि चिराग पासवान, जिनके नाम के आगे रामविलास पासवान जैसी विरासत जुड़ी है, सीधे-सीधे प्रशांत किशोर जैसे रणनीतिकार के आमने-सामने आ खड़े होंगे। लेकिन राजनीति में वक्त और जमीन दोनों कब करवट ले लें, यह कोई नहीं जानता। बिहार की गलियों से लेकर राजधानी पटना तक, अब हर चाय की दुकान पर यही सवाल गूंज रहा है—क्या बिहार की सत्ता की चाबी अब नीतीश या लालू के पास रहेगी या फिर कोई नया खिलाड़ी मैदान मार ले जाएगा?
चिराग का ‘पसंद चिराग’ कार्ड और मोदी से नजदीकी
चिराग पासवान ने 2020 के विधानसभा चुनाव में ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ का नारा देकर खूब सुर्खियां बटोरीं। हालांकि उनकी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) तब विभाजित हो गई थी और खुद को अलग-थलग पा गए थे। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव ने चिराग को फिर से बिहार की राजनीति में ‘स्टार’ बना दिया। पांच में से पांच सीटें जीतकर चिराग ने अपनी ताकत का अहसास करा दिया है।सबसे बड़ा फायदा उन्हें नरेंद्र मोदी से मिली छाया का हुआ। ‘पसंद चिराग, गारंटी मोदी’ का नारा बिहार में खूब चला। अब चिराग की नजर 2025 के विधानसभा चुनाव पर है, और वो खुलकर मुख्यमंत्री पद के दावेदार के तौर पर खुद को पेश कर रहे हैं। उनकी नजर खासतौर पर दलित वोट बैंक पर है, जो परंपरागत तौर पर कभी लालू के पास रहा, फिर नीतीश की तरफ गया, और अब चिराग उसे अपने पाले में लाने की जद्दोजहद कर रहे हैं। चिराग की सबसे बड़ी ताकत उनका युवापन और आक्रामक शैली है। हिंदी मीडिया उन्हें ‘बिहार का जूनियर मोदी’ तक कहने लगा है। लेकिन क्या सिर्फ चेहरे और नारों से बिहार फतह किया जा सकता है?
प्रशांत किशोर का जमीनी मिशन और PK फैक्टर
दूसरी तरफ मैदान में हैं प्रशांत किशोर, जिनकी पहचान किसी पार्टी से नहीं बल्कि एक रणनीतिकार और अभियान चलाने वाले नेता के तौर पर है। पीके ने पिछले तीन सालों में ‘जन सुराज’ नाम से ऐसा अभियान खड़ा किया है, जो गांव-गांव जाकर लोगों से संपर्क साध रहा है। पीके ने कांग्रेस से लेकर ममता बनर्जी और नरेंद्र मोदी तक के लिए रणनीति बनाई है, लेकिन बिहार में अब वो खुद मुख्यमंत्री पद के सपने के साथ उतर चुके हैं। उनके पास संगठन नहीं है, कोई बड़ा चेहरा नहीं है, कोई जातीय वोट बैंक भी नहीं है। लेकिन उनके पास है जमीन पर मेहनत करने का जज्बा और सिस्टम को बदलने का सपना। प्रशांत किशोर के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही है कि बिहार की जातिवादी राजनीति में विकास और सिस्टम सुधार जैसे मुद्दे कितने असरदार साबित होंगे? गांवों में युवा जरूर उनके साथ जुड़ रहे हैं, लेकिन सत्ता की राजनीति जाति के गणित पर ही टिकी रहती है।
चिराग बनाम प्रशांत: कौन किस पर भारी?
बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण ही असली खेल तय करते हैं। चिराग पासवान के साथ दलित वोट बैंक है, भाजपा का अप्रत्यक्ष समर्थन है और ‘पासवान’ नाम की विरासत भी है। दूसरी तरफ, प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार को चुनौती देने की ठान ली है। पीके लगातार कहते आ रहे हैं कि “बिहार में जो विकास मॉडल चल रहा है वो पूरी तरह फेल हो चुका है।” लेकिन दिलचस्प बात यह है कि जहां चिराग का खेल ‘भाजपा प्लान बी’ जैसा दिखता है, वहीं प्रशांत किशोर पूरी तरह से एंटी-भाजपा और एंटी-जेडीयू लाइन पर खड़े हैं। अगर भाजपा नीतीश कुमार से किनारा करती है तो चिराग पासवान उनके लिए बिहार में चेहरा बन सकते हैं। वहीं विपक्ष के मतों का बंटवारा करने में पीके की भूमिका अहम हो सकती है। बिहार के जातीय समीकरणों में यादव, कुर्मी, दलित, सवर्ण और मुसलमानों का समीकरण बनाना सबसे बड़ी चुनौती है। चिराग को सवर्ण और दलित का मिश्रण मिल सकता है, लेकिन मुसलमान वोट किस ओर जाएगा, यह सवाल बना हुआ है। प्रशांत किशोर का फायदा यह हो सकता है कि वो जाति से परे ‘विकास’ की बात करते हैं, जिससे गैर-राजनीतिक युवा वर्ग प्रभावित हो सकता है।
क्या बिहार में कोई बड़ा उलटफेर होगा?
2025 का बिहार विधानसभा चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन का नहीं बल्कि राजनीतिक ध्रुवीकरण का चुनाव बनने वाला है। नीतीश कुमार की लोकप्रियता में गिरावट, लालू प्रसाद यादव की उम्र और स्वास्थ्य, कांग्रेस की कमजोरी—इन सबके बीच एक नई लड़ाई उभर रही है। एक तरफ विरासत के सहारे आगे बढ़ते चिराग पासवान हैं, तो दूसरी तरफ ‘सिस्टम बदलने’ का नारा लेकर आए प्रशांत किशोर। क्या चिराग मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच पाएंगे या प्रशांत किशोर राजनीति के सारे समीकरण बिगाड़ देंगे? फिलहाल तो बिहार की सियासी हवा में गूंज रहा है—“2025 में असली मुकाबला चिराग बनाम पीके!
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