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डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट - क्या RBI जानबूझकर कमजोर कर रहा है मुद्रा?
डॉलर के मुकाबले रुपया 89 पार, बाज़ार में हलचल; क्या RBI निर्यातकों को फायदा देने गिरावट सह रहा है?
Rupee at Record Low (Photo - Social Media)
Rupee at Record Low: भारतीय रुपया पहली बार 89 के स्तर को पार कर गया। यह ऐतिहासिक गिरावट न केवल विदेशी व्यापार पर असर डाल रही है बल्कि बैंकों और कॉरपोरेट्स को भी जोखिम में डाल रही है। पिछले हफ्ते जब रुपया 88 से नीचे गया था, तभी चिंता की लहर दौड़ गई थी। अब 89 टूटने के बाद सवाल उठ रहा है कि क्या रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) जानबूझकर रुपये को कमजोर पड़ने दे रहा है।
बाज़ार में अनिश्चितता क्यों?
वैश्विक स्तर पर अमेरिकी टैरिफ और अस्थिरता ने भारतीय मुद्रा को और दबाव में ला दिया है। आयातकों के लिए यह स्थिति मुश्किल है क्योंकि डॉलर महंगा होने से उनकी लागत बढ़ रही है। दूसरी ओर, निर्यातकों के लिए यह राहत जैसा है, क्योंकि कमजोर रुपया उनकी प्रतिस्पर्धा को मजबूत करता है।
वित्तीय सलाहकारों का कहना है कि RBI आक्रामक दखल से बच रहा है और बाज़ार को खुद दिशा तय करने दे रहा है। अगर RBI ने बिल्कुल हस्तक्षेप न किया होता तो यह स्तर शायद एक हफ्ते पहले ही दिख जाता।
मान लीजिए एक कंपनी अमेरिका से कच्चा माल मंगाती है। अगर 1 डॉलर = 85 रुपये था तो 1 लाख डॉलर का बिल = 85 लाख रुपये होता। लेकिन अब 1 डॉलर = 89 रुपये है तो वही बिल = 89 लाख रुपये। यानी सिर्फ विनिमय दर के चलते 4 लाख रुपये का अतिरिक्त बोझ।
RBI का मकसद क्या हो सकता है?
विशेषज्ञों का मानना है कि RBI रुपये की कमजोरी को सहने दे रहा है ताकि निर्यातकों की कमाई बढ़े, सरकार को विदेशी मुद्रा भंडार से अधिक लाभांश मिले और व्यापार घाटे के दबाव को कुछ हद तक संतुलित किया जा सके। हालांकि, इस रणनीति का दूसरा पहलू भी है। आयात पर निर्भर कंपनियां और विदेशी कर्ज से जुड़ी फर्में रुपये की गिरावट से गंभीर नुकसान झेल सकती हैं, क्योंकि उनकी लागत और कर्ज़ चुकाने का बोझ दोनों बढ़ जाते हैं।
कॉरपोरेट्स के लिए खतरे
कई कंपनियों ने विदेशी मुद्रा जोखिम से बचने के लिए “सीगल” और “कॉल स्प्रेड” जैसे जटिल डेरिवेटिव स्ट्रक्चर अपनाए हैं। अब रुपये की तेज़ गिरावट उनके लिए मार्क-टू-मार्केट नुकसान का कारण बन रही है। नतीजतन, तिमाही नतीजों में भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकता है।
गवर्नर मल्होत्रा की नई रणनीति
मार्च से अब तक रुपया करीब 3.3% कमजोर हुआ है। गवर्नर संजय मल्होत्रा के कार्यकाल में RBI की नीति ज़्यादा लचीली दिख रही है। यह उनके पूर्ववर्ती शक्तिकांत दास की स्थिरता-प्रधान रणनीति से अलग है। कंपनियां पहले सीमित उतार-चढ़ाव मानकर चलती थीं, लेकिन अब हालात बदल गए हैं।
रुपये की दिशा क्या होगी?
विश्लेषकों के अनुसार, 5 सितम्बर को आने वाले अमेरिकी नॉन-फार्म पेरोल डेटा से रुपये की दिशा प्रभावित हो सकती है। अगर अमेरिकी आंकड़े कमजोर रहे तो डॉलर नरम पड़ सकता है और उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं को सहारा मिल सकता है। फिलहाल सवाल यही है कि RBI रुपया को और गिरने देगा या अचानक कड़े कदम उठाएगा।
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