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Brain Eating Amoeba: ब्रेन-ईटिंग अमीबा, कितना खतरनाक है नेगलेरिया फाउलेरी
Brain Eating Amoeba: नेगलेरिया फाउलेरी एक एकल-कोशिका वाला जीव है, जिसे मुक्त-जीवित अमीबा (free-living amoeba) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
Brain Eating Amoeba (Image Credit-Social Media)
Brain Eating Amoeba: केरल में हाल ही में एक दुखद घटना ने लोगों का ध्यान एक बार फिर ब्रेन-ईटिंग अमीबा, जिसे वैज्ञानिक रूप से नेगलेरिया फाउलेरी (Naegleria fowleri) के नाम से जाना जाता है की ओर खींचा है। एक नौ साल की बच्ची की इस अमीबा के कारण हुई मौत ने न केवल स्थानीय समुदाय को झकझोर दिया, बल्कि इस दुर्लभ लेकिन घातक जीव के बारे में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता को भी उजागर किया है। यह लेख नेगलेरिया फाउलेरी के बारे में विस्तृत जानकारी देता है-
नेगलेरिया फाउलेरी क्या है
नेगलेरिया फाउलेरी एक एकल-कोशिका वाला जीव है, जिसे मुक्त-जीवित अमीबा (free-living amoeba) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। यह आमतौर पर गर्म, मीठे पानी के स्रोतों जैसे झीलों, नदियों, तालाबों, गर्म झरनों और कभी-कभी अपर्याप्त रूप से क्लोरीनयुक्त स्विमिंग पूल या दूषित नल के पानी में पाया जाता है। यह अमीबा मिट्टी में भी मौजूद हो सकता है। यह सामान्य रूप से मिट्टी और पानी में रहने वाले अन्य सूक्ष्मजीवों को खाकर जीवित रहता है, लेकिन जब यह मानव शरीर में प्रवेश करता है, तो यह गंभीर और प्रायः घातक संक्रमण का कारण बन सकता है।
इस अमीबा का सबसे खतरनाक रूप इसका ट्रोफोज़ोइट (trophozoite) चरण है, जिसमें यह सक्रिय रूप से भोजन करता है और प्रजनन करता है। यह मानव मस्तिष्क में प्रवेश करने पर प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस (Primary Amoebic Meningoencephalitis, PAM) नामक एक दुर्लभ लेकिन अत्यंत घातक बीमारी का कारण बनता है। यह बीमारी मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी को ढकने वाली झिल्लियों (मेनिन्जेस) और मस्तिष्क के ऊतकों को प्रभावित करती है।
कितना खतरनाक है यह अमीबा?
नेगलेरिया फाउलेरी को ‘ब्रेन-ईटिंग अमीबा’ इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह मस्तिष्क के ऊतकों को नष्ट कर देता है। यह अमीबा नाक के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश करता है, विशेष रूप से तब जब कोई व्यक्ति दूषित पानी में तैरता है या नाक में पानी चला जाता है। नाक की पतली श्लेष्मा झिल्ली (mucous membrane) के माध्यम से यह अमीबा मस्तिष्क तक पहुंचता है, जहां यह मस्तिष्क के कोशिकाओं को खाना शुरू कर देता है। इस प्रक्रिया में यह मस्तिष्क के ऊतकों को नष्ट करता है, जिसके परिणामस्वरूप गंभीर सूजन और रक्तस्राव होता है।
इस बीमारी की मृत्यु दर अत्यंत उच्च है, जो 97-98% तक हो सकती है। इसका कारण यह है कि यह बहुत तेजी से फैलता है। इसका निदान और उपचार समय पर करना बेहद मुश्किल होता है। ज्यादातर मामलों में, लक्षण शुरू होने के कुछ दिनों के भीतर ही मरीज की मृत्यु हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अन्य स्वास्थ्य एजेंसियों के अनुसार, यह अमीबा इंसान से इंसान में नहीं फैलता, जिसके कारण इसका प्रसार सीमित रहता है। हालांकि, इसके घातक प्रभाव इसे बेहद खतरनाक बनाते हैं।
लक्षण क्या हैं
नेगलेरिया फाउलेरी के कारण होने वाले प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस (PAM) के लक्षण आमतौर पर दूषित पानी के संपर्क में आने के 1 से 9 दिनों के भीतर शुरू होते हैं। ये लक्षण मस्तिष्क के अन्य संक्रमणों, जैसे बैक्टीरियल मेनिन्जाइटिस, से मिलते-जुलते हैं, जिसके कारण शुरुआती निदान में अक्सर देरी हो जाती है। प्रमुख लक्षणों में शामिल हैं:
तेज़ सिरदर्द: मस्तिष्क में सूजन के कारण गंभीर और लगातार सिरदर्द होता है।
बुखार: शरीर का तापमान अचानक बढ़ सकता है।
उल्टी और मतली: पाचन तंत्र पर प्रभाव पड़ता है।
गर्दन में अकड़न: मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी की झिल्लियों में सूजन के कारण गर्दन को हिलाने में कठिनाई होती है।
प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता: आंखों को रोशनी में देखने में परेशानी हो सकती है।
मानसिक भ्रम और चिड़चिड़ापन: मस्तिष्क के प्रभावित होने के कारण व्यवहार में बदलाव आ सकता है।
दौरे: गंभीर मामलों में मरीज को मिर्गी जैसे दौरे पड़ सकते हैं।
बच्चों में अतिरिक्त लक्षण: खाने की इच्छा में कमी, खेलने से बचना, और याददाश्त में कमी जैसे लक्षण देखे जा सकते हैं।
ये लक्षण तेजी से बिगड़ते हैं, और यदि समय पर उपचार न हो, तो मरीज कोमा में जा सकता है या मृत्यु हो सकती है।
प्रसार कैसे होता है
नेगलेरिया फाउलेरी का प्रसार मुख्य रूप से दूषित पानी के माध्यम से होता है। यह अमीबा गर्म पानी (25-46 डिग्री सेल्सियस) में तेजी से पनपता है, विशेष रूप से गर्मियों के महीनों में। निम्नलिखित परिस्थितियों में इसका खतरा बढ़ जाता है:
तैराकी या स्नान: तालाबों, झीलों, नदियों, या अपर्याप्त रूप से क्लोरीनयुक्त स्विमिंग पूल में तैरने या डुबकी लगाने से अमीबा नाक के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर सकता है।
नल का पानी: कुछ मामलों में, दूषित नल के पानी से नाक धोने या नेटी पॉट (neti pot) का उपयोग करने से भी संक्रमण हो सकता है।
कुएं और अन्य जलाशय: जैसा कि केरल के हालिया मामले में देखा गया, घर के कुओं में दूषित पानी भी इस अमीबा का स्रोत हो सकता है।
यह महत्वपूर्ण है कि यह अमीबा मुंह के माध्यम से पानी पीने से नहीं फैलता, क्योंकि पेट का अम्लीय वातावरण इसे नष्ट कर देता है। यह केवल नाक के माध्यम से मस्तिष्क तक पहुंचने पर ही खतरनाक होता है।
निदान और उपचार
PAM का निदान करना चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि इसके लक्षण अन्य मस्तिष्क संक्रमणों से मिलते-जुलते हैं। निदान के लिए निम्नलिखित विधियों का उपयोग किया जाता है:
मस्तिष्कमेरु द्रव (CSF) का परीक्षण: रीढ़ की हड्डी से द्रव निकालकर उसमें अमीबा की उपस्थिति की जांच की जाती है।
मस्तिष्क की बायोप्सी: कुछ मामलों में, मस्तिष्क के ऊतकों का नमूना लिया जाता है।
पीसीआर टेस्ट: यह तकनीक अमीबा के डीएनए का पता लगाने में मदद करती है।
इमेजिंग: सीटी स्कैन या एमआरआई से मस्तिष्क में सूजन और क्षति का आकलन किया जाता है।
केरल में हालिया घटनाएं
केरल में नेगलेरिया फाउलेरी के कारण होने वाली मौतें हाल के वर्षों में एक गंभीर चिंता का विषय बन गई हैं। 2025 में कोझिकोड जिले में एक नौ साल की बच्ची की मृत्यु इस अमीबा के कारण हुई। स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार, बच्ची को 13 अगस्त को बुखार के कारण अस्पताल में भर्ती किया गया था, लेकिन उसकी हालत तेजी से बिगड़ी और 14 अगस्त को कोझिकोड मेडिकल कॉलेज में उसकी मृत्यु हो गई। जांच में पाया गया कि बच्ची के घर के कुएं में दूषित पानी इस संक्रमण का स्रोत था। इसके बाद, स्वास्थ्य विभाग ने कुएं के पानी की जांच की और अन्य लोगों में बुखार के लक्षणों की निगरानी शुरू की।
इसके अलावा, 2024 में भी केरल के विभिन्न जिलों में इस अमीबा के कारण कई मौतें दर्ज की गईं। मलप्पुरम में एक पांच वर्षीय लड़की और कन्नूर में एक 13 वर्षीय लड़की की मृत्यु PAM के कारण हुई थी। कोझिकोड में ही एक 12 वर्षीय लड़के की मृत्यु भी इस संक्रमण से हुई थी। ये घटनाएं दर्शाती हैं कि केरल में गर्म और आर्द्र जलवायु इस अमीबा के पनपने के लिए अनुकूल है।
बचाव के उपाय
नेगलेरिया फाउलेरी से बचाव संभव है, यदि कुछ सावधानियां बरती जाएं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों और केरल स्वास्थ्य विभाग द्वारा सुझाए गए निम्नलिखित उपाय इस खतरे को कम कर सकते हैं:
ठहरे हुए पानी से बचें: तालाबों, झीलों, नदियों, या गंदे कुओं में तैरने या स्नान करने से बचें, खासकर गर्मियों में जब पानी का तापमान अधिक होता है।
नाक को बंद रखें: तैरते समय नाक पर क्लिप (nose clip) का उपयोग करें या सिर को पानी के ऊपर रखें ताकि पानी नाक में न जाए।
स्वच्छ जलाशयों का उपयोग: केवल क्लोरीनयुक्त स्विमिंग पूल में तैरें। क्लोरीन इस अमीबा को मार देता है।
कुओं और जलाशयों की सफाई: कुओं और अन्य जल स्रोतों की नियमित सफाई और क्लोरीनेशन करें। स्वास्थ्य विभाग के दिशा-निर्देशों का पालन करें।
नल के पानी का उपयोग: नाक धोने के लिए केवल शुद्ध या उबला हुआ पानी उपयोग करें। नेटी पॉट जैसे उपकरणों में दूषित पानी का उपयोग न करें।
जागरूकता और निगरानी: यदि आपने हाल ही में किसी संदिग्ध जलाशय में स्नान किया है और बुखार, सिरदर्द, या अन्य लक्षण दिखाई देते हैं, तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें।
केरल के स्वास्थ्य विभाग ने लोगों से अपील की है कि वे ठहरे हुए पानी से बचें और जलाशयों की नियमित जांच कराएं। जिला चिकित्सा अधिकारी डॉ. केके राजाराम ने कहा कि विभाग द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन करना अनिवार्य है।
सामाजिक और वैज्ञानिक प्रभाव
नेगलेरिया फाउलेरी से होने वाली मौतें न केवल व्यक्तिगत त्रासदी हैं, बल्कि ये सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए भी एक गंभीर चुनौती प्रस्तुत करती हैं। केरल जैसे क्षेत्रों में, जहां गर्म और आर्द्र जलवायु इस अमीबा के लिए अनुकूल है, जागरूकता और निवारक उपायों की आवश्यकता और भी बढ़ जाती है। वैज्ञानिक समुदाय इस अमीबा के खिलाफ प्रभावी उपचार विकसित करने के लिए शोध कर रहा है, लेकिन अभी तक कोई निश्चित इलाज उपलब्ध नहीं है।
इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान और जल स्रोतों में परिवर्तन इस अमीबा के प्रसार को और बढ़ा सकते हैं। इसलिए, जल स्रोतों की निगरानी, स्वच्छता और क्लोरीनेशन जैसे उपायों को और सख्त करना होगा।
नेगलेरिया फाउलेरी या ब्रेन-ईटिंग अमीबा एक दुर्लभ लेकिन अत्यंत खतरनाक जीव है, जो मस्तिष्क को नष्ट करके मृत्यु का कारण बन सकता है। केरल में हाल की घटनाएं इसकी गंभीरता को दर्शाती हैं। हालांकि यह इंसान से इंसान में नहीं फैलता, लेकिन दूषित पानी के माध्यम से इसका खतरा बना रहता है। जागरूकता, सावधानी, और स्वास्थ्य विभाग के दिशा-निर्देशों का पालन इस घातक संक्रमण से बचने का सबसे प्रभावी तरीका है। यदि समय पर निदान और उपचार हो, तो कुछ मामलों में जीवन बचाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए त्वरित कार्रवाई आवश्यक है।
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