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टूट गए सारे रिकॉर्ड! बिहार में बंपर वोटिंग का क्या है राज? क्या है इसके सियासी मायने
Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में रिकॉर्ड तोड़ मतदान हुआ, जहां महिलाओं और युवाओं ने सबसे अधिक भागीदारी दिखाई। इस बंपर वोटिंग ने चुनावी परिदृश्य बदलते सामाजिक और राजनीतिक रुझानों का संकेत दिया।
Record Breaking Voting in Bihar: बिहार विधानसभा चुनाव का पहला चरण गुरुवार को संपन्न होने के बाद, जो आंकड़े सामने आए हैं, उन्होंने न केवल राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया है, बल्कि बिहार के चुनावी इतिहास में एक नया अध्याय भी लिख दिया है। पहले चरण में 121 विधानसभा क्षेत्रों में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच हुए मतदान में, लगभग 3.75 करोड़ मतदाताओं में से करीब 65 फीसदी यानी 64.66% ने अपने मताधिकार का प्रयोग कर बिहार में हुए अब तक के सभी चुनावों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। बिहार के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी विनोद सिंह गुंजियाल ने मतदान समाप्ति के बाद उत्साह से मत प्रतिशत की जानकारी देते हुए कहा कि पहले चरण में 45,341 बूथों में से 41,943 बूथों से प्राप्त सूचना के अनुसार 64.64 फीसदी मतदान हुआ है। आयोग का अनुमान है कि चूंकि अभी सभी बूथों से रिपोर्ट आनी बाकी है, इसलिए कुल वोट प्रतिशत का आंकड़ा और ऊपर जा सकता है और यह 70 फीसदी को भी पार कर सकता है। इस बंपर वोटिंग के बाद, राजनीतिक गलियारों से लेकर विश्लेषकों के बीच अब इस रिकॉर्ड तोड़ मतदान के मायने और संदेश निकाले जा रहे हैं।
बंपर वोटिंग का पारंपरिक सिद्धांत बनाम नई हकीकत
चुनावी प्रक्रिया और परंपराओं के विश्लेषण में एक आम धारणा रही है कि जब भी वोटिंग परसेंट पुराने पैटर्न को तोड़कर एक नया रिकॉर्ड बनाता है, तो इसे अक्सर एंटी इनकमबेंसी फैक्टर यानी सत्ता विरोधी लहर के तौर पर देखा जाता है। यह माना जाता है कि मतदाता सत्ता को बदलने के लिए एकजुट होकर बड़ी संख्या में घरों से बाहर निकले हैं। हालांकि, पिछले कई चुनावों ने इस धारणा को अब कुंद कर दिया है। राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि, कुछ इलाकों में मौजूदा नीतीश सरकार के खिलाफ गुस्सा जरूर है, लेकिन यह इतना बड़ा नहीं है कि इसे भारी सत्ता विरोधी लहर कहा जाए। ऐसे में, विश्लेषकों का मानना है कि वोटिंग परसेंट बढ़ने के पीछे अन्य महत्वपूर्ण कारण भी हो सकते हैं, जो बिहार की सामाजिक और राजनीतिक चेतना में आए बदलाव का संकेत देते हैं।
'महिला शक्ति' का बढ़ता प्रभाव
वोटिंग प्रतिशत बढ़ने के सबसे बड़े कारण में महिलाओं की भागीदारी को माना जा रहा है। हिन्दुस्तान के प्रधान संपादक शशि शेखर ने 'आज तक' से बातचीत में जोर देकर कहा कि इस बार मतदान प्रतिशत बढ़ने में महिलाओं की भूमिका अहम है। उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में महिलाओं को सुबह से ही लगभग सभी इलाकों में मतदान के लिए लंबी कतारों में खड़े देखा गया। शेखर का मानना है कि सरकार द्वारा महिलाओं को जो ₹10,000 की प्रोत्साहन राशि मिली है, उससे उनमें अतिरिक्त जागरूकता आई और वे बड़ी संख्या में वोट देने उमड़ीं। उन्होंने कहा कि महिलाओं को मतदान के लिए बढ़-चढ़कर आगे बढ़ता देख, परिवार के पुरुषों ने भी उत्साह के साथ हिस्सा लिया, जिससे समग्र मतदान प्रतिशत में इजाफा हुआ।
'वोट चोरी' पर सक्रियता और चुनाव आयोग की पहल
बंपर वोटिंग के पीछे एक बड़ा कारण मतदाताओं के बीच अधिकार चेतना में आई वृद्धि को भी माना जा रहा है। शशि शेखर ने बताया कि जिस तरह राहुल गांधी ने महाराष्ट्र, कर्नाटक और हरियाणा में 'वोट चोरी' को लेकर मुखर दावे किए और बिहार में 'वोटर अधिकार यात्रा' की, उससे सभी वर्गों में अपने मत के महत्व को लेकर जागरूकता आई। उन्होंने कहा कि इस सक्रियता के कारण लोग पहले के मुकाबले बड़ी संख्या में घरों से बाहर निकले और अपने मताधिकार का प्रयोग किया, क्योंकि वे अपने मत की चोरी नहीं होने देना चाहते थे। उन्होंने चुनाव आयोग की कोशिशों को भी एक कारण माना, जिसकी वजह से मत प्रतिशत में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी हुई है। वरिष्ठ पत्रकार विनोद अग्निहोत्री ने भी SIR (संभवतः सुरक्षा और सूचना की जागरूकता) और राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा को वोटिंग परसेंट बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाने वाला फैक्टर बताया।
युवाओं और अति पिछड़ा वर्ग (EBC) की आक्रामक भागीदारी
वरिष्ठ पत्रकार राजकिशोर ने न्यूज 24 पर एक चर्चा के दौरान कहा कि इस चुनाव में युवाओं ने बहुत बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी ली है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि NDA द्वारा दिखाए गए इस डर का युवाओं पर कोई असर नहीं पड़ा कि तेजस्वी की सरकार आने से 'जंगलराज' की वापसी हो जाएगी। उन्होंने कहा कि नीतीश के खिलाफ कोई बड़ी सत्ता विरोधी लहर नहीं देखने को मिली, लेकिन उनके कोर वोटर में बिखराव हुआ है और वह मुखर होकर इस बार वोट करने निकला है। राजकिशोर ने बताया कि मोकामा प्रकरण के बाद धानुक जाति के वोटर आक्रामक होकर मतदान करने निकले हैं। इनके अलावा, उस क्षेत्र के युवाओं ने भी इसी तरह की तेजी दिखाई है। कुछ अन्य राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी के मछली पकड़ने और मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम बनाने के ऐलान ने मल्लाह समुदाय को आगे बढ़कर वोट करने के लिए प्रेरित किया है। इसी तरह, आईपी गुप्ता की वजह से तांती-ततवा जैसी ईबीसी जातियों के लोग भी पहले के मुकाबले अधिक वोट करने निकले हैं। यह दर्शाता है कि इस बार EBC और युवाओं ने अपनी राजनीतिक शक्ति का भरपूर प्रदर्शन किया है।
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