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भारत में कहां छुपी है रहस्यमयी नदी? साल में 3 दिनों तक बहती है खूनी धारा! क्या है कोई दैवीय शक्ति का कमाल
Brahmaputra River: भारत की एकमात्र पुरुष नदी ब्रह्मपुत्र न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि हर साल इसके लाल होने का रहस्य भी लोगों को चौंका देता है।
Brahmaputra River
Brahmaputra River: भारत में नदियों को सदियों से मातृरूप में पूजा जाता रहा है। गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी, नर्मदा जैसी तमाम नदियों को स्त्रीलिंग माना गया है और उन्हें देवी के रूप में पूजा जाता है। लेकिन इन्हीं के बीच एक ऐसी अद्वितीय नदी भी है जिसे "पुरुष नदी" का दर्जा प्राप्त है, यह है ब्रह्मपुत्र नदी।
कैसे पड़ा ब्रह्मपुत्र नाम
ब्रह्मपुत्र नदी को भारत की एकमात्र पुरुष नदी माना जाता है। मान्यता है कि यह नदी स्वयं ब्रह्मा जी के पुत्र के रूप में उत्पन्न हुई, इसलिए इसका नाम ‘ब्रह्मपुत्र’ पड़ा। यानी “ब्रह्मा का पुत्र”। यही कारण है कि इस नदी को पौरुष का प्रतीक मानते हुए इसे पुरुषलिंग में संबोधित किया जाता है।
एशिया की प्रमुख नदियों में से एक
ब्रह्मपुत्र नदी न केवल भारत की बल्कि एशिया की सबसे लंबी और विशाल नदियों में से एक है। यह नदी हिमालय के तिब्बत क्षेत्र से निकलती है, जहां इसे यारलुंग त्सांगपो कहा जाता है। वहां से होते हुए यह नदी अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है और अंततः असम, बांग्लादेश से होती हुई बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। इसकी विशालता, जलस्रोत और कृषि, परिवहन व संस्कृति में योगदान इसे विशेष बनाता है।
धार्मिक महत्व और कामाख्या मंदिर से जुड़ा रहस्य
ब्रह्मपुत्र नदी को हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना गया है। इसके अलावा बौद्ध और जैन धर्म में भी इसका विशेष महत्व है। लेकिन इस नदी से जुड़ा एक रहस्यमयी पहलू इसे और भी चर्चित बनाता है। असम की राजधानी गुवाहाटी में स्थित कामाख्या मंदिर इस नदी के किनारे स्थित है। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है और मान्यता है कि यहीं पर माता सती की योनि गिरी थी। इस कारण से यहां हर साल "अंबुबाची मेला" का आयोजन होता है, जो देवी के मासिक धर्म से जुड़ा हुआ माना जाता है।
तीन दिन के लिए नदी का पानी हो जाता है लाल
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हर साल तीन दिनों के लिए ब्रह्मपुत्र नदी का पानी लाल रंग का हो जाता है। यह माना जाता है कि कामाख्या देवी के मासिक धर्म के दौरान नदी का पानी रक्त की तरह लाल हो जाता है। इस अवधि में मंदिर के द्वार भी बंद रहते हैं और पूजा नहीं होती। यह परंपरा प्रकृति की रचनात्मकता और नारी शक्ति का प्रतीक मानी जाती है।
वैज्ञानिक कारण भी है मौजूद
हालांकि इस लाल पानी के पीछे वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी मौजूद है। विशेषज्ञों के अनुसार, ब्रह्मपुत्र नदी के उस क्षेत्र की मिट्टी में लौह तत्व (Iron Content) बहुत अधिक मात्रा में है। जब बारिश होती है और मिट्टी नदी में बहती है, तो पानी का रंग लालिमा लिए हुए दिखाई देता है। यह एक प्राकृतिक रासायनिक प्रतिक्रिया है, जिसे धार्मिक मान्यताओं से जोड़ दिया गया है।
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