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कुवैत से यूक्रेन तक! जब भारत ने दुश्मनों के मुंह से अपने नागरिकों को छीन लाया—जानिए 5 सबसे बड़े मिशन
india 5 biggest evacuation missions: भारत सरकार ने इस संकट में ‘ऑपरेशन सिंधु’ शुरू किया है। इसकी पहली झलक दिल्ली एयरपोर्ट पर देखी गई, जब ईरान से निकाले गए 110 भारतीय छात्रों का पहला जत्था भारत पहुंचा। हैरान करने वाली बात ये है कि इनमें से 90 छात्र जम्मू-कश्मीर के हैं।
india 5 biggest evacuation missions
India 5 biggest evacuation missions: एक बार फिर दुनिया जंग की आग में झुलस रही है। इस बार मैदान में आमने-सामने हैं — ईरान और इजराइल। मिसाइलें बरस रही हैं, शहर तबाह हो रहे हैं और हवाई हमलों से धरती कांप रही है। लेकिन इन दोनों देशों की जंग के बीच सबसे बड़ी चिंता भारत के लिए बन गई है वहां फंसे हजारों भारतीय नागरिक। हज़ारों भारतीय छात्र, जायरीन (जियारत पर गए तीर्थयात्री) और कामगार इस समय संकट में हैं। कई अपने घर लौटने की आस में दूतावास के चक्कर काट रहे हैं तो कई बमबारी की आवाज़ों में अपनों से बात कर रो रहे हैं।
भारत सरकार ने इस संकट में ‘ऑपरेशन सिंधु’ शुरू किया है। इसकी पहली झलक दिल्ली एयरपोर्ट पर देखी गई, जब ईरान से निकाले गए 110 भारतीय छात्रों का पहला जत्था भारत पहुंचा। हैरान करने वाली बात ये है कि इनमें से 90 छात्र जम्मू-कश्मीर के हैं। ये सभी किसी तरह ईरान की राजधानी तेहरान से निकलकर आर्मेनिया पहुंचे और फिर दोहा होते हुए दिल्ली पहुंचे। पर ये तो महज़ शुरुआत है। अभी हजारों की तादाद में भारतीय वहां फंसे हुए हैं और भारत सरकार के लिए ये चुनौती छोटा नहीं, बल्कि एक और ऐतिहासिक ‘एयरलिफ्ट’ बन सकता है।
इजराइल में फंसे सात हजार भारतीय, अभी भी अंधेरे में
ईरान की बात तो सामने आ रही है, लेकिन इजराइल में संकट कहीं ज्यादा गंभीर है। अकेले उत्तर प्रदेश से करीब 7,000 कुशल मजदूर काम के लिए इजराइल भेजे गए थे। इनमें से अधिकांश मजदूर निर्माण, कृषि और अन्य क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। उनके परिवार भारत में परेशान हैं, लेकिन अभी तक इजराइल से भारतीयों को निकालने को लेकर स्थिति पूरी तरह स्पष्ट नहीं है।
भारत सरकार के मुताबिक इजराइल में फंसे नागरिकों को दूतावास के संपर्क में रहने के निर्देश दिए गए हैं, लेकिन अगर युद्ध ने बड़ा रूप ले लिया तो इजराइल से भी ‘ऑपरेशन सिंधु पार्ट-2’ जैसा बड़ा मिशन शुरू करना पड़ सकता है। यह संकट भारतीय विदेश नीति के लिए भी अग्निपरीक्षा साबित होने वाला है। इतिहास खुद को दोहराता है — जब भारत ने रचा था दुनिया का सबसे बड़ा एयरलिफ्ट मिशन आज जो तस्वीर हम देख रहे हैं, वह भारत के इतिहास में पहले भी कई बार देखी गई है। संकट के समय भारत ने अपने नागरिकों को सुरक्षित निकालने के लिए ऐसे ऑपरेशन चलाए हैं, जो दुनिया भर में मिसाल बन गए। और सबसे बड़ा उदाहरण है — कुवैत से भारतीयों का ऐतिहासिक एयरलिफ्ट।
साल 1990 — जब इराक ने कुवैत पर हमला कर दिया था
उस वक्त 1.70 लाख भारतीय कुवैत में फंसे हुए थे। इराकी सेना के कब्जे में फंसे इन भारतीयों को निकालना असंभव सा लग रहा था। लेकिन तभी सामने आए भारतीय मूल के बिजनेसमैन रंजीत कात्याल, जिनकी कहानी पर आगे चलकर सुपरहिट फिल्म ‘एयरलिफ्ट’ भी बनी। रंजीत ने इराकी अधिकारियों से संपर्क कर भारतीयों के लिए खाने-पीने और रुकने की व्यवस्था की। भारत सरकार ने भी तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में तेजी दिखाई। एयर इंडिया ने इसमें मुख्य भूमिका निभाई और करीब 59 दिनों तक चले इस ऑपरेशन में 488 फ्लाइट्स के जरिए 1.70 लाख भारतीयों को सुरक्षित वापस भारत लाया गया। आज भी इसे दुनिया का सबसे बड़ा एयरलिफ्ट माना जाता है।
ऑपरेशन सुकून — 2006 का युद्ध और भारतीय नौसेना की वीरता
ईरान-इजराइल जंग की तरह ही एक जंग 2006 में लेबनान और इजराइल के बीच छिड़ी थी। उस वक्त भारत ने ‘ऑपरेशन सुकून’ चलाकर 1,764 भारतीयों को सुरक्षित बाहर निकाला था। भारतीय नौसेना ने इस मिशन में श्रीलंका, नेपाल और लेबनान के अन्य नागरिकों को भी बचाया। ये साबित करता है कि जब बात अपने नागरिकों की आती है तो भारत पीछे हटने वालों में नहीं है। लीबिया, यमन और यूक्रेन से भी चलीं एयरलिफ्ट की उड़ानें
2011 में लीबिया में गृहयुद्ध के समय भारत ने ‘ऑपरेशन सेफ होमकमिंग’ चलाया था और 15,000 से अधिक भारतीयों को वापस लाया गया। वहीं, 2015 में यमन में हूती विद्रोहियों और सरकार के बीच संघर्ष में फंसे 4,000 भारतीयों को ‘ऑपरेशन राहत’ के तहत निकाला गया। इस ऑपरेशन में 26 देशों के नागरिकों को भारत ने सुरक्षित बाहर निकालकर वैश्विक स्तर पर वाहवाही बटोरी। 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध में फंसे 18,000 भारतीय छात्रों को बचाने के लिए भारत ने ‘ऑपरेशन गंगा’ चलाया था, जो हाल के वर्षों का सबसे बड़ा रेस्क्यू मिशन साबित हुआ।
‘ऑपरेशन सिंधु’ — क्या बनेगा नया रिकॉर्ड?
अब सवाल यही है कि क्या ‘ऑपरेशन सिंधु’ भारत के इन ऐतिहासिक अभियानों की कतार में शामिल होगा? जिस तरह से ईरान और इजराइल में हालात बिगड़ते जा रहे हैं, ऐसा बिल्कुल संभव है। अभी तो 110 छात्रों को निकाला गया है, लेकिन अगर युद्ध ने व्यापक रूप ले लिया तो भारत को फिर से कुवैत जैसी बड़ी चुनौती से जूझना पड़ सकता है। सबसे बड़ा संकट यह है कि ईरान और इजराइल दोनों तरफ भारतीय फंसे हैं। दोनों ही देशों में हालात खतरनाक हैं। ईरान में जायरीन और छात्र तो इजराइल में कामगार। दोनों ही वर्ग कमजोर हैं, असहाय हैं और बमों के बीच घिरे हुए हैं। अभी तक भारत सरकार ने फंसे हुए भारतीयों को दूतावास से संपर्क में रहने की सलाह दी है, लेकिन जमीनी स्तर पर हर दिन खतरा बढ़ रहा है।
जम्मू-कश्मीर के छात्र, एक अलग पीड़ा
दिल्ली पहुंच चुके 90 छात्रों में से अधिकांश जम्मू-कश्मीर के हैं। इन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा है कि वे कई दिनों से तनाव में हैं। पहले तेहरान से आर्मेनिया पहुंचे, फिर कई पड़ाव पार कर भारत लौटे। लेकिन अब दिल्ली में भी ठिकाना नहीं। जम्मू-कश्मीर सरकार ने दिल्ली से अपने छात्रों को लाने के लिए बसें भेजी हैं, लेकिन छात्र मांग कर रहे हैं कि उन्हें विशेष विमान से सीधे जम्मू-कश्मीर भेजा जाए। ये तस्वीर बताती है कि भले ही वो अपने देश आ गए हैं, लेकिन मानसिक पीड़ा और अनिश्चितता से वे अभी भी बाहर नहीं निकल पाए हैं। सरकार के लिए ये जरूरी है कि सिर्फ एयरलिफ्ट नहीं, बल्कि पुनर्वास और उनकी मदद के लिए आगे आए।
इजराइल से भारतीयों की वापसी सबसे कठिन चुनौती
अभी तक जितनी भी एयरलिफ्ट ऑपरेशन्स भारत ने किए, उनमें सबसे बड़ी बात ये थी कि दुश्मन देश के साथ कोई सीधा युद्ध भारत का नहीं था। लेकिन इस बार इजराइल और ईरान दोनों में युद्ध अपने चरम पर है। इजराइल से भारतीयों को सुरक्षित निकालना आसान नहीं होगा। खासकर उन 7,000 मजदूरों का, जो उत्तर प्रदेश से गए हैं और जो इजराइल के उन इलाकों में काम कर रहे हैं जो युद्धग्रस्त घोषित किए जा चुके हैं। इजराइली सेना पूरी तरह से फ्रंटफुट पर है, और हवाई हमले तेज होते जा रहे हैं। ऐसे में भारत के लिए ये मिशन हर स्तर पर बेहद चुनौतीपूर्ण साबित होने वाला है।
क्या फिर गूंजेगा एयरलिफ्ट का इतिहास?
आज से 34 साल पहले जब कुवैत से भारतीयों को निकाला गया था तो किसी ने कल्पना नहीं की थी कि भारत इतनी बड़ी संख्या में अपने नागरिकों को निकाल सकता है। लेकिन तब भारत ने कर दिखाया था। अब 2025 में भारत के सामने फिर वैसी ही तस्वीर है। फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार एक नहीं, बल्कि दो-दो युद्ध क्षेत्रों से अपने नागरिकों को बचाकर लाना है। पूरी दुनिया की नजरें इस वक्त भारत पर टिकी हैं। क्या भारत फिर से वही करिश्मा कर पाएगा जो उसने कुवैत, यमन और यूक्रेन में किया था? क्या ‘ऑपरेशन सिंधु’ भारत का अगला सबसे बड़ा मिशन बनकर उभरेगा? फिलहाल दिल्ली एयरपोर्ट पर 110 भारतीयों की आंखों में सिर्फ एक ही उम्मीद है— ‘हम घर लौट आए हैं, लेकिन बाकी भाई-बहनों को भी जल्द लाया जाए।’ अब बारी भारत सरकार की है कि वह एक बार फिर दुनिया को दिखाए — जब बात अपने नागरिकों की आती है तो भारत कभी पीछे नहीं हटता।
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