India Azerbaijan Relations: कैसे भारत और अजरबैजान एक दूसरे पर निर्भर हैं, जाने क्या पाकिस्तान पहुंचा सकता है इन्हें नुकसान

India Azerbaijan Relations History: क्या आप भारत-अज़रबैजान संबंधों के बारे में जानते हैं साथ ही कैसे ये दोनों देश एक दूसरे पर निर्भर करते हैं आइये आपको विस्तार से समझाते हैं।

Akshita Pidiha
Published on: 19 May 2025 12:37 PM IST
India Azerbaijan Relations History
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India Azerbaijan Relations History (Image Credit-Social Media)

India Azerbaijan Relations History: भारत और अज़रबैजान दो ऐसे देश हैं जिनका भौगोलिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य एक-दूसरे से काफी भिन्न है, लेकिन फिर भी कूटनीतिक, व्यापारिक और ऊर्जा सहयोग के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच धीरे-धीरे बढ़ते रिश्ते देखने को मिलते हैं। अज़रबैजान, दक्षिण काकेशस क्षेत्र का एक रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण देश है जो एशिया और यूरोप के बीच एक कड़ी की तरह है। भारत, जो वैश्विक स्तर पर एक उभरती शक्ति है, अपनी "Connect Central Asia Policy" के अंतर्गत अज़रबैजान जैसे देशों के साथ मजबूत संबंध बनाने में रुचि रखता है।

भारत और अज़रबैजान के बीच औपचारिक राजनयिक संबंध 28 फरवरी 1992 को स्थापित हुए थे, जब अज़रबैजान ने सोवियत संघ से स्वतंत्रता प्राप्त की थी। इसके बाद 1999 में भारत ने बाकू में अपना दूतावास खोला और 2004 में अज़रबैजान ने नई दिल्ली में अपना दूतावास खोला।

हालांकि, दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक व्यापारिक और सांस्कृतिक संपर्क प्राचीन रेशम मार्ग के माध्यम से पहले से ही मौजूद थे। भारत के व्यापारी और सूफी संत अज़रबैजान के इलाकों में आया करते थे, और वहीं से अज़रबैजानी व्यापारी भी भारतीय बंदरगाहों से व्यापार करते थे।


भारत और अज़रबैजान के बीच रिश्ते सामान्यतः शांतिपूर्ण रहे हैं, हालांकि वे बहुत गहरे या ऐतिहासिक रूप से घनिष्ठ कभी नहीं रहे। लेकिन हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते सैन्य तनाव के दौरान अज़रबैजान की प्रतिक्रिया ने इन संबंधों में अप्रत्याशित खटास ला दी है। अज़रबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव द्वारा पाकिस्तान की सैन्य कार्रवाईयों की प्रशंसा और भारत विरोधी रुख अपनाने के बाद यह स्थिति और अधिक तनावपूर्ण बन गई। इसके जवाब में भारतीय जनता, ट्रैवल कंपनियों और सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं ने अज़रबैजान का बहिष्कार शुरू कर दिया है, जिससे दोनों देशों के बीच पहले से सीमित संपर्क अब और भी अधिक जटिल हो गए हैं।

पाकिस्तान का पक्ष लेने वाला अज़रबैजान

जब भारत और पाकिस्तान के बीच सीमावर्ती क्षेत्रों में संघर्ष तेज हुआ, तब दुनिया के अधिकांश देशों ने या तो चुप्पी साधी या संतुलित रुख अपनाया। लेकिन अज़रबैजान ने इस तनाव के समय पाकिस्तान का न केवल समर्थन किया, बल्कि भारत विरोधी बयानों से स्थिति को और भी संवेदनशील बना दिया। राष्ट्रपति अलीयेव ने सार्वजनिक रूप से पाकिस्तान की प्रशंसा की और भारतीय नीतियों की आलोचना की। यह बयान भारतीय राजनयिक समुदाय और आम नागरिकों को अप्रत्याशित और आपत्तिजनक लगा।

भारत और पाकिस्तान के संघर्ष में किसी तीसरे देश का सीधा पक्ष लेना आमतौर पर सावधानीपूर्वक किया जाता है, विशेषतः जब उस देश के साथ व्यापारिक और राजनयिक संबंध हों। अज़रबैजान का यह एकतरफा झुकाव भारत में नकारात्मक रूप से देखा गया, जिससे संबंधों पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ने की संभावना बढ़ गई।


भारत का कूटनीतिक और जन प्रतिक्रिया

भारत सरकार ने आधिकारिक तौर पर अज़रबैजान के इस रुख पर तीखी प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन जनता की प्रतिक्रिया तीव्र और आक्रामक रही। भारतीय सोशल मीडिया पर अज़रबैजान के खिलाफ व्यापक विरोध शुरू हो गया। ट्रैवल एजेंसियों ने अज़रबैजान की बुकिंग रद्द करनी शुरू कर दी और कई नामी ट्रैवल ब्रांडों ने इस देश को अपने पर्यटन सूची से हटा दिया। कुछ प्रभावशाली हस्तियों और नागरिक संगठनों ने भी भारत सरकार से अपील की कि वह अज़रबैजान के खिलाफ कूटनीतिक प्रतिक्रिया दे।

साथ ही, सोशल मीडिया पर "बायकॉट अज़रबैजान" जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे, जिससे वैश्विक स्तर पर संदेश गया कि भारत अपने विरोधियों के खिलाफ सख्त जनमत बना सकता है। यह जन-आंदोलन अज़रबैजान जैसे पर्यटन पर निर्भर अर्थव्यवस्था वाले देश के लिए आर्थिक रूप से घातक हो सकता है।

प्रमुख घटनाएं:

  • भारत ने अज़रबैजान को Non-Aligned Movement (NAM) की अध्यक्षता के दौरान समर्थन दिया।
  • अज़रबैजान ने भारत को Shanghai Cooperation Organization (SCO) की सदस्यता के दौरान समर्थन किया।
  • 2020 में भारत ने बाकू में आयोजित हुए NAM सम्मेलन में भाग लिया।

व्यापार के आंकड़े:

2021-22 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगभग 1.7 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया था।भारत अज़रबैजान से कच्चा तेल आयात करता है जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा में योगदान देता है।भारत अज़रबैजान को फार्मास्युटिकल्स, मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक्स, खाद्य उत्पाद आदि निर्यात करता है।प्रमुख कंपनियां:भारत की ONGC Videsh Ltd. (OVL) ने अज़रबैजान में तेल और गैस परियोजनाओं में निवेश किया है।अज़रबैजान की SOCAR कंपनी भारत में एलएनजी टर्मिनल परियोजनाओं में रुचि लेती रही है।

अजरबैजान की अर्थव्यवस्था और भारत पर उसकी निर्भरता

अज़रबैजान की अर्थव्यवस्था मुख्यतः तेल और गैस के निर्यात पर निर्भर करती है। 2022 में उसकी कुल GDP लगभग 78.7 बिलियन डॉलर थी। इसके कुल निर्यात में कच्चे तेल का हिस्सा 98% से अधिक है और भारत, अज़रबैजान से तेल खरीदने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश है। भारत-अज़रबैजान व्यापार में यह संबंध अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि अज़रबैजान की अर्थव्यवस्था ऊर्जा निर्यात की स्थिरता पर ही टिकी है।


इसके अतिरिक्त, अज़रबैजान का पर्यटन क्षेत्र भी धीरे-धीरे उभर रहा था, जिसमें भारतीय पर्यटकों की संख्या भी बढ़ रही थी। हाल के बहिष्कार से इस क्षेत्र को गहरा झटका लगा है। एक सप्ताह के भीतर ही 60% से अधिक बुकिंग रद्द हो चुकी हैं। यह संकेत है कि यदि भारत अपने लोगों को अज़रबैजान यात्रा से हतोत्साहित करता है, तो यह देश की कमजोर पर्यटन प्रणाली को बड़े नुकसान की ओर धकेल सकता है।

भारत और अजरबैजान की सैन्य क्षमता का तुलनात्मक विश्लेषण

सैन्य दृष्टिकोण से भारत और अज़रबैजान की तुलना अत्यंत असमान है। ग्लोबल फायरपावर इंडेक्स 2025 के अनुसार, भारत विश्व की चौथी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति है, जबकि अज़रबैजान का स्थान 59वाँ है। भारत के पास 14.5 लाख सक्रिय सैनिक, 11.5 लाख रिजर्व सैनिक और 25 लाख अर्धसैनिक बल हैं। साथ ही, उसके पास अत्याधुनिक मिसाइलें, जैसे अग्नि और ब्रह्मोस, आधुनिक लड़ाकू विमान जैसे राफेल और सुखोई, और परमाणु हथियारों की त्रिस्तरीय प्रणाली है।


दूसरी ओर, अज़रबैजान की सेना का आकार सीमित है और उसका रक्षा बजट 2024 में मात्र 3.7 बिलियन डॉलर था, जबकि भारत का रक्षा बजट 81.4 बिलियन डॉलर था। अज़रबैजान की सैन्य क्षमताएं क्षेत्रीय स्तर पर ही प्रभावी हैं और वह अधिकतर तुर्की और इज़राइल से प्राप्त हथियारों पर निर्भर करता है। उसके पास न तो परमाणु हथियार हैं और न ही बड़ी नौसेना या उन्नत वायुसेना है। भारत की रक्षा उत्पादन प्रणाली में आत्मनिर्भरता और तकनीकी नवाचार उसे अज़रबैजान की तुलना में कई गुना अधिक मजबूत बनाते हैं।

वैश्विक कूटनीतिक प्रभाव: कौन कहां खड़ा है

भारत की कूटनीतिक स्थिति वैश्विक स्तर पर मजबूत है। वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, G-20, ब्रिक्स, शंघाई सहयोग संगठन और क्वाड जैसे प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संगठनों में सक्रिय भूमिका निभाता है। भारत के अमेरिका, रूस, इज़राइल, फ्रांस, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ मजबूत रणनीतिक और रक्षा संबंध हैं। जब अज़रबैजान ने पाकिस्तान का समर्थन किया, तब इज़राइल और अमेरिका ने भारत के साथ खड़े होकर अपनी कूटनीतिक प्रतिबद्धता दिखाई।

इसके विपरीत, अज़रबैजान की कूटनीतिक रणनीति मुख्यतः तुर्की और पाकिस्तान जैसे देशों पर केंद्रित है। चीन ने अज़रबैजान के साथ सीमित संबंध बनाए रखे हैं, लेकिन उसे वैश्विक मंच पर कोई विशेष प्रभाव नहीं प्राप्त है। इस प्रकार, भारत की वैश्विक स्वीकार्यता और प्रभावशीलता अज़रबैजान से कहीं अधिक विस्तृत और सशक्त है।

व्यापारिक संबंधों पर संभावित प्रभाव

भारत और अज़रबैजान के बीच व्यापार का मुख्य आधार तेल और गैस है। अज़रबैजान को भारतीय बाजार से काफी राजस्व प्राप्त होता है, लेकिन यदि भारत वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ता है, तो यह अज़रबैजान के लिए बड़ा आर्थिक झटका हो सकता है। भारत ने हाल के वर्षों में मध्य एशियाई देशों और खाड़ी देशों से ऊर्जा आपूर्ति के कई विकल्प तैयार किए हैं। यदि वह अज़रबैजान से तेल आयात को कम करने का निर्णय लेता है, तो इससे अज़रबैजान की अर्थव्यवस्था अस्थिर हो सकती है।

पर्यटन के क्षेत्र में भी भारत एक संभावित ग्राहक देश था, लेकिन अब स्थिति बदल रही है। भारतीय ट्रैवल कंपनियों और ऑनलाइन बुकिंग पोर्टल्स ने अज़रबैजान को प्रोमोट करना लगभग बंद कर दिया है। इससे उसके पर्यटन राजस्व में भारी गिरावट देखने को मिल सकती है।


भारत की रणनीतिक स्थिति और भविष्य की राह

भारत इस समय एक वैश्विक शक्ति बनने की ओर अग्रसर है। उसका तकनीकी, आर्थिक और सैन्य विकास उसे विश्व मंच पर एक विश्वसनीय और निर्णायक शक्ति बनाता है। भारत किसी भी विदेशी समर्थन नीति का आकलन अपने रणनीतिक हितों के आधार पर करता है। अज़रबैजान की हालिया स्थिति ने भारत को दिखा दिया है कि मित्र और विरोधी देशों की पहचान समय-समय पर पुनः मूल्यांकित की जानी चाहिए।

अज़रबैजान यदि अपने रुख में बदलाव नहीं करता, तो भारत उसकी तेल निर्भरता और सीमित वैश्विक सहयोगियों के माध्यम से कूटनीतिक दबाव बना सकता है। भारत के पास वह ताकत और संसाधन हैं, जिनसे वह ऐसे छोटे और अनावश्यक विरोधों को सफलतापूर्वक संभाल सकता है।

कौन ज्यादा मजबूत, कौन ज्यादा निर्भर

संपूर्ण परिदृश्य पर विचार करें तो यह स्पष्ट है कि भारत आर्थिक, सैन्य और कूटनीतिक दृष्टिकोण से अज़रबैजान की तुलना में कई गुना अधिक शक्तिशाली और आत्मनिर्भर है। अज़रबैजान का पाकिस्तान के पक्ष में झुकाव और भारत विरोधी रुख उसके लिए दीर्घकालिक रूप से हानिकारक सिद्ध हो सकता है। भारत के पास न केवल आर्थिक और सैन्य संसाधन हैं, बल्कि वैश्विक सहयोग और समर्थन भी है। अज़रबैजान को इस कूटनीतिक गलती से सबक लेना चाहिए और अपने रुख में संतुलन लाना चाहिए, अन्यथा वह एक शक्तिशाली सहयोगी को खो सकता है और वैश्विक मंच पर अलग-थलग भी पड़ सकता है।

भारत और अज़रबैजान के संबंध धीरे-धीरे गहराते जा रहे हैं, हालांकि इनमें पाकिस्तान और तुर्की जैसे कारक बाधा बनते हैं। फिर भी व्यापार, ऊर्जा, परिवहन और संस्कृति के क्षेत्रों में व्यापक संभावनाएं हैं जिन्हें भारत को रणनीतिक समझदारी से विकसित करना होगा।

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