India Floods 2025: भारत में भयंकर बाढ़! आइये जाने इसके रोकथाम और बचने के उपाय

India Floods 2025: इस लेख में हम भारत में हाल की बाढ़ की घटनाओं, बीमारियों के खतरे, रोकथाम के उपाय और अतीत की भयंकर बाढ़ों के प्रभाव पर विस्तार से जानकारी देंगे।

Shivani Jawanjal
Published on: 17 Sept 2025 5:52 PM IST
India Floods 2025: भारत में भयंकर बाढ़! आइये जाने इसके रोकथाम और बचने के उपाय
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India Floods 2025: हाल ही में भारत के कई राज्यों में बाढ़ और भारी बारिश की समस्या बनी हुई है। उत्तराखंड में तेज बारिश और बादल फटने से फ्लैश फ्लड आया है, जिसमें दो लोग अभी भी लापता हैं। देहरादून, नैनीताल, ऋषिकेश, चमोली और चंपावत में प्रशासन सतर्क है। पंजाब में कई गांव बाढ़ से प्रभावित हुए हैं, खासकर किसानों की फसलें नुकसान हुई हैं और उन्हें मुआवजा दिया जा रहा है। गुजरात, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में भी भारी बारिश और बाढ़ का असर दिख रहा है। मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री प्रभावित इलाकों का दौरा कर राहत कार्यों का जायजा ले रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ में भी बादल फटने की घटनाएं हुई हैं।

इस प्राकृतिक आपदा के कारण लोगों के जीवन पर गहरा असर पड़ता है। न केवल घर, खेत और सड़कें जलमग्न होती हैं बल्कि इसके बाद लोगों के स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है। बाढ़ के पानी में गंदगी और रोगाणु मिल जाते हैं, जिससे स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर पड़ता है। ऐसे में बाढ़ के बाद सतर्क रहना और स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए उचित कदम उठाना बहुत जरूरी है।

उत्तर भारत में बारिश से हाहाकार

हाल ही में उत्तराखंड, पंजाब, गुजरात, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में बाढ़ और भारी बारिश हुई है। उत्तराखंड के देहरादून, नैनीताल, ऋषिकेश, चमोली और चंपावत में प्रशासन सतर्क है। उत्तराखंड में तेज बारिश और बादल फटने से फ्लैश फ्लड आया, जिसमें दो लोग अभी भी लापता हैं। पंजाब में कई गांव प्रभावित हुए हैं और किसानों की फसलें नष्ट हुई हैं, उन्हें मुआवजा दिया जा रहा है। मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री प्रभावित इलाकों का दौरा कर राहत कार्यों का जायजा ले रहे हैं। वर्तमान मौसम के अनुसार ऋषिकेश में हल्की बारिश और बादल बने रहने की संभावना है।

बाढ़ के बाद फैलने वाली प्रमुख बीमारियाँ


बाढ़ के पानी में कई प्रकार के जीवाणु, वायरस और कीटाणु मौजूद रहते हैं, जो लोगों को बीमार कर सकते हैं और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम कर देते हैं।

जलजनित बीमारियाँ - बाढ़ के पानी में गंदगी और मल-मूत्र मिल जाने से जलजनित रोग तेजी से फैलते हैं। गंदा पानी पीने या दूषित भोजन खाने से दस्त और उल्टी जैसी समस्याएँ होती हैं। इसके अलावा हैजा पेट में गंभीर संक्रमण और पानी की कमी पैदा करता है, जबकि एंटरिक फीवर से बुखार, कमजोरी और पेट दर्द हो सकता है।

त्वचा संबंधी बीमारियाँ - बाढ़ का पानी कई रसायन और कीटाणुओं से भरा होता है। लंबे समय तक इसके संपर्क में आने से त्वचा की समस्याएँ बढ़ सकती हैं। गीली जगहों में फंगस से दाद और खुजली होती है, जबकि गंदे पानी में नहाने या चलने से छाले और दाने निकल सकते हैं।

मलेरिया और डेंगू जैसे कीटजनित रोग - बाढ़ के पानी में खड़े पानी में मच्छर पनपते हैं, जो मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया जैसे रोग फैलाते हैं। मच्छर के काटने से बुखार, जोड़ों में दर्द और कमजोरी जैसी समस्याएँ हो सकती हैं।

सांस और फेफड़े से जुड़ी बीमारियाँ - बाढ़ और नमी से फफूंदी और जीवाणु बढ़ जाते हैं जिससे सर्दी, खांसी, फ्लू और न्यूमोनिया जैसी श्वसन समस्याएँ हो सकती हैं। बच्चों और बुजुर्गों में ये बीमारियाँ तेजी से फैलती हैं।

अन्य गंभीर बीमारियाँ - बाढ़ के पानी या दूषित भोजन से हैपेटाइटिस A और E फैल सकते हैं। लेप्टोस्पायरोसिस में बुखार, सिरदर्द और अंगों में दर्द होता है, जबकि जख्म या कटने पर टेटनस का खतरा बढ़ जाता है।

बाढ़ के बाद होने वाली बीमारियों की रोकथाम के उपाय

इन भयंकर बाढ़ घटनाओं से यह स्पष्ट है कि बाढ़ के बाद होने वाली बीमारियों की रोकथाम के लिए निम्नलिखित उपाय आवश्यक हैं:

स्वच्छ जल आपूर्ति - बाढ़ के पानी से दूषित जल से हैजा, टाइफाइड और दस्त जैसी बीमारियाँ फैल सकती हैं। इसलिए, लोगों को उबला हुआ या सुरक्षित जल ही पीने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

स्वच्छता और सफाई - बाढ़ के पानी से घरों और आसपास के क्षेत्रों की सफाई करना आवश्यक है। गंदगी और मल-मूत्र से होने वाली बीमारियों की रोकथाम के लिए स्वच्छता बनाए रखना चाहिए।

टीकाकरण अभियान - बाढ़ के बाद हैजा, टाइफाइड और डिप्थीरिया जैसी बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए, प्रभावित क्षेत्रों में त्वरित टीकाकरण अभियान चलाना चाहिए।

मच्छर नियंत्रण - बाढ़ के पानी में मच्छरों का प्रजनन स्थल बन सकता है, जिससे मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियाँ फैल सकती हैं। इसलिए, मच्छरदानी का उपयोग और कीटनाशकों का छिड़काव करना चाहिए।

स्वास्थ्य जांच और उपचार - बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में स्वास्थ्य जांच शिविरों का आयोजन करना चाहिए, ताकि बीमारियों का शीघ्र पता चल सके और उपचार संभव हो सके।

मानसिक स्वास्थ्य समर्थन - प्राकृतिक आपदाएँ मानसिक तनाव और चिंता का कारण बन सकती हैं। इसलिए, मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना आवश्यक है।

बाढ़ के बाद स्वास्थ्य सुरक्षा का महत्व

बाढ़ केवल घर, खेत और सड़कों को नुकसान नहीं पहुँचाती बल्कि स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डालती है। इस वजह से सरकारी एजेंसियाँ और स्वास्थ्य विभाग बाढ़ पीड़ितों के लिए मेडिकल कैंप, टीकाकरण अभियान, फॉगिंग और साफ-सफाई जैसे कार्यक्रम चलाते हैं। ये अभियान प्रभावित इलाकों में जाकर मुफ्त चिकित्सा सेवा, दवाइयाँ, मच्छर नियंत्रण और अन्य स्वास्थ्य सहायता प्रदान करते हैं। स्थानीय प्रशासन के निर्देशों का पालन करना और इन सरकारी पहलों से जुड़ना बहुत जरूरी है। उदाहरण के लिए पंजाब सरकार ने बाढ़ प्रभावित हजारों गांवों में हेल्थ कैंप लगाए, घर-घर जाकर स्वास्थ्य जांच की, दवाइयाँ वितरित की और मच्छर जनित रोगों से बचाव के लिए फॉगिंग अभियान चलाया है । AIIMS नई दिल्ली ने भी टेली-कंसल्टेशन सेवा शुरू की जिससे लोग दूर से चिकित्सा सहायता ले सके। ऐसे सरकारी प्रयास बाढ़ के बाद बीमारियों के खतरे को कम करते हैं और प्रभावित लोगों को राहत पहुँचाते हैं।

पंजाब में असरदार कार्रवाई

पंजाब में बाढ़ के बाद मुख्यमंत्री भगवंत मान की सरकार ने जल्दी और असरदार कार्रवाई की। स्वास्थ्य विभाग ने 2,303 गांवों में हेल्थ कैंप चलाए और 51,612 लोगों की जांच की। आशा वर्कर्स ने 1,32,322 परिवारों की स्वास्थ्य जांच की और दवाइयाँ वितरित कीं। मच्छरों के प्रजनन स्थलों की जांच कर 1,08,770 घरों की स्क्रीनिंग की गई, और लार्वा मिलने पर 23,630 घरों में लार्वीसाइड का छिड़काव किया गया। 878 गांवों में फॉगिंग कर मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियों को रोका गया। यह अभियान बाढ़ पीड़ितों को राहत देने और बीमारियों की रोकथाम में बहुत मददगार साबित हुआ है।

भारत में कुछ प्रमुख भयंकर बाढ़ घटनाएँ

1979 में गुजरात के मच्छू-2 बांध के टूटने की घटना बेहद विनाशकारी थी जिसमें लगभग 1,500 लोगों की मृत्यु हुई थी।

1987 में बिहार की कोसी नदी की बाढ़ ने भारी तबाही मचाई थी जिसमें 1,300+ मौतें हुई थीं।

2004 के सुनामी और बाढ़ में तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और अंडमान-निकोबार में 12,000+ मौतें दर्ज हुई थीं।

2005 मुंबई बाढ़ में लगभग 1,000 लोगों की जान गई थी।

2013 उत्तराखंड बाढ़ और भूस्खलन में लगभग 5,700 मौतें हुई थीं।

2018 केरल की बाढ़ में लगभग 445 मौतें हुईं।

2023 सिक्किम में ग्लेशियर झील फटने की घटना में 90 से अधिक मौतें हुई थीं।

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