भूतों की नहीं अब पर्यटकों की कहानियां! CM धामी की 'Adopt a Village' योजना से चमक उठे उत्तराखंड के वीरान गांव, पर्यटकों की पहली पसंद बन रहे घोस्ट प्लेसेस

Adopt a Village Scheme: पर्यटक लौट रहे हैं, गांवों में गतिविधियां शुरू हो रही हैं और इस बदलाव का सूत्रधार है उत्तराखंड सरकार का एक नायाब और दूरदर्शी कदम – मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की ‘Adopt a Village’ योजना।

Harsh Srivastava
Published on: 18 May 2025 10:47 PM IST
Adopt a Village Scheme
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Adopt a Village Scheme

Adopt a Village Scheme: एक समय था जब उत्तराखंड के पहाड़ी गांवों की गलियां वीरान होती थीं, मकान खंडहरों में तब्दील हो चुके थे और कहानियों में ये गांव 'घोस्ट विलेजेस' कहलाने लगे थे। इन गांवों से लोगों का पलायन इतना बढ़ चुका था कि पूरा-का-पूरा गांव खाली हो गया था। न वहां कोई त्योहार मनाने वाला था, न खेतों में हल चलाने वाला। लेकिन अब वही वीरानी मुस्कान में बदल रही है। पर्यटक लौट रहे हैं, गांवों में गतिविधियां शुरू हो रही हैं और इस बदलाव का सूत्रधार है उत्तराखंड सरकार का एक नायाब और दूरदर्शी कदम – मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की ‘Adopt a Village’ योजना।

जब गांवों पर छा गई थी खामोशी की परछाईं

उत्तराखंड के कई गांव, खासतौर पर सीमावर्ती और ऊंचाई वाले इलाकों के, धीरे-धीरे खाली होते चले गए। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार और मूलभूत सुविधाओं के अभाव ने लोगों को मजबूर कर दिया कि वे अपने पैतृक गांवों को छोड़कर शहरों या मैदानी क्षेत्रों की ओर रुख करें। यही वजह थी कि पिथौरागढ़, उत्तरकाशी, चमोली, बागेश्वर और टिहरी जैसे जिलों के दर्जनों गांव घोस्ट विलेज बन गए। सेमला बगोड़ी, कुंवारी, गेस्कू और हाट कालिका जैसे गांव कभी चहल-पहल से भरे रहते थे, अब वहां झाड़ियों और जंगली जानवरों का कब्जा हो गया था।

'Adopt a Village' योजना: एक उम्मीद की किरण

इस चिंताजनक स्थिति को बदलने के लिए उत्तराखंड सरकार ने साल 2023 में ‘Adopt a Village’ यानी 'गांव को गोद लो' योजना शुरू की। इस योजना का मकसद न केवल इन वीरान गांवों में फिर से जान फूंकना है, बल्कि प्रवासी उत्तराखंडियों और दुनियाभर में बसे भारतीयों को अपनी जड़ों से जोड़ना भी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की पहल पर शुरू हुई इस योजना में विदेशों में रहने वाले प्रवासी, एनआरआई और सामाजिक संगठन उत्तराखंड के किसी भी गांव को गोद ले सकते हैं। गांव को गोद लेने का मतलब है वहां बुनियादी सुविधाएं बढ़ाना, पर्यटन को बढ़ावा देना, संस्कृति का पुनर्जीवन करना और रोजगार के अवसर पैदा करना। यह योजना न सिर्फ एक सामाजिक अभियान है, बल्कि एक भावना है जो पहाड़ की मिट्टी को फिर से उसका गौरव लौटाने की कोशिश कर रही है।

सेमला बगोड़ी बना रोल मॉडल

उत्तरकाशी जिले का सेमला बगोड़ी गांव, जो कभी 'भूतों का गांव' कहा जाता था, अब ‘Hope Village’ बन चुका है। प्रवासी उत्तराखंडियों द्वारा गोद लेने के बाद इस गांव में ट्रैकिंग रूट्स, होमस्टे, कैफे और हैंडीक्राफ्ट सेंटर जैसे पर्यटन केंद्र स्थापित हुए हैं। गांव के पुराने मंदिरों का जीर्णोद्धार किया गया है और लोक कला को फिर से जीवंत किया जा रहा है। यह बदलाव स्थानीय युवाओं को गांव लौटने के लिए प्रेरित कर रहा है और पर्यटक भी इस गांव को घूमने आने लगे हैं।

पर्यटन बन रहा है ग्रामीण पुनर्जागरण का इंजन

उत्तराखंड सरकार ने इन गोद लिए गए गांवों को पर्यटन के नक्शे पर लाने के लिए विशेष रणनीति बनाई है। सरकार और निजी क्षेत्र मिलकर गांवों में इको-टूरिज्म, होमस्टे, ट्रेकिंग, लोक संस्कृति प्रदर्शन और हस्तशिल्प प्रशिक्षण केंद्र शुरू कर रहे हैं। इससे गांवों की अर्थव्यवस्था को नया जीवन मिल रहा है। पर्यटकों को अब ऐसी जगहों की तलाश होती है जो शांति से भरी हों, जहां प्रकृति का वास्तविक सौंदर्य मिले और जहां डिजिटल भागदौड़ से दूर सांस ली जा सके। और उत्तराखंड के ये पुनर्जीवित गांव ऐसे ही अनुभवों की खान बनते जा रहे हैं।

कहां-कहां लागू हो रही है योजना?

‘Adopt a Village’ योजना फिलहाल उत्तरकाशी, चमोली, पिथौरागढ़, टिहरी और अल्मोड़ा जिलों के कई गांवों में लागू की जा चुकी है। सरकार का लक्ष्य है कि अगले 5 वर्षों में कम से कम 500 गांवों को गोद लेने की प्रक्रिया पूरी की जाए। योजना के तहत गांव को गोद लेने वाले व्यक्तियों या संस्थाओं को सरकार की तरफ से लॉजिस्टिक सहयोग, प्रमोशन और मान्यता दी जाती है।

कौन उठा रहा है जिम्मेदारी?

इस योजना का सबसे बड़ा आकर्षण प्रवासी उत्तराखंडियों के लिए है। अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, यूएई और यूरोप में बसे उत्तराखंडी समुदाय के लोग अब अपने गांवों को फिर से बसाने की जिम्मेदारी उठा रहे हैं। इसके अलावा कई कॉरपोरेट कंपनियां भी सीएसआर (कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) के तहत गांवों को गोद ले रही हैं।

घोस्ट विलेजेस: अतीत की टीस से भविष्य की उम्मीद तक

उत्तराखंड के जिन गांवों को कभी डरावना और वीरान कहा जाता था, आज वहीं गांव भारत के नवाचार का मॉडल बन रहे हैं। कुंवारी गांव, जो कभी पहाड़ी प्रेतकथाओं का हिस्सा था, अब फोटोग्राफर्स और नेचर लवर्स के लिए खास डेस्टिनेशन बन गया है। पिथौरागढ़ के हाट गांव में अब स्थानीय व्यंजनों की कार्यशालाएं और होमस्टे सुविधाएं शुरू हो चुकी हैं।

मुख्यमंत्री धामी की दूरदर्शिता का नतीजा

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस योजना को सिर्फ एक सरकारी परियोजना नहीं, बल्कि एक जनभागीदारी आंदोलन के रूप में देखा है। उनका मानना है कि जब तक प्रवासी उत्तराखंडी अपने गांवों से भावनात्मक रूप से नहीं जुड़ेंगे, तब तक पहाड़ों का पुनर्विकास अधूरा रहेगा। उनकी नेतृत्व क्षमता और जमीनी समझ ने इस योजना को सिर्फ कागज़ों पर नहीं, बल्कि धरातल पर सफलतापूर्वक उतारा है।

भारत का पहला राज्य जहां ‘घोस्ट विलेज’ बना पर्यटन स्थल

उत्तराखंड भारत का पहला राज्य बन चुका है, जहां सुनसान हो चुके गांवों को पर्यटन केंद्रों में बदलने का व्यवस्थित प्रयास हो रहा है। इससे न केवल पहाड़ को नया जीवन मिलेगा, बल्कि पूरे देश को यह संदेश भी जाएगा कि विकास केवल शहरों में नहीं, गांवों में भी हो सकता है – बशर्ते नीयत, नीति और भागीदारी सही हो। घोस्ट विलेज अब इतिहास बनने को हैं। ‘Adopt a Village’ योजना ने यह साबित कर दिया है कि जब सरकार, समाज और प्रवासी नागरिक एक साथ जुड़ते हैं तो कोई भी सपना नामुमकिन नहीं होता। वीरानी से रौनक की इस यात्रा में उत्तराखंड ने न सिर्फ अपने अतीत को सम्मान दिया है, बल्कि अपने भविष्य को नई दिशा भी दी है। अगर यही रफ्तार रही, तो वह दिन दूर नहीं जब उत्तराखंड के हर वीरान गांव से पर्यटकों की हँसी गूंजेगी और 'घोस्ट' की जगह 'ग्लोरी' लिखी जाएगी।

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Harsh Srivastava

Harsh Srivastava

News Cordinator and News Writer

Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

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