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India Pakistan War Update: जानिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कब-कब पाकिस्तान मुँह के बल गिरा, संयुक्त राष्ट्र में भारत बनाम पाकिस्तान
India Pakistan War Update: पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र में कई बार आलोचना और फटकार का सामना करना पड़ा है, विशेष रूप से आतंकवाद, कश्मीर, और मानवाधिकार उल्लंघन के मुद्दों पर।
India Pakistan Terrorism Issues in United Nations
India Pakistan War Update: हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे टकराव को फिर से वैश्विक पटल पर ला खड़ा किया है। इस हमले ने न केवल मानवीय संवेदनाओं को झकझोर दिया, बल्कि आतंकवाद पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया को भी मजबूती से सामने लाया। भारत ने पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठनों की भूमिका को उजागर किया, जबकि पाकिस्तान ने इन आरोपों को नकारते हुए खुद को 'शांति का पक्षधर' बताया। हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने पाकिस्तान को फटकार लगाते हुए भारत का समर्थन किया। इस लेख में हम यह विश्लेषण करेंगे कि संयुक्त राष्ट्र में भारत और पाकिस्तान की स्थिति क्या रही, दोनों देशों ने कश्मीर, आतंकवाद और मानवाधिकार पर किस तरह की रणनीतियाँ अपनाईं, और किस देश की बात को अधिक गंभीरता से लिया गया। साथ ही यह भी देखेंगे कि भारत की वैश्विक छवि कैसे मजबूत हो रही है और पाकिस्तान अपनी साख बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहा है।
भारत-पाकिस्तान संबंधों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
1947 में जब भारत और पाकिस्तान का विभाजन हुआ, तभी से दोनों देशों के बीच रिश्तों में तनाव रहा है। कश्मीर मुद्दा सबसे बड़ा कारण रहा है, जिसकी वजह से अब तक तीन बार दोनों देशों के बीच युद्ध हो चुके हैं (1947, 1965, और 1999)। इसके अतिरिक्त, आतंकवाद, सरहद पर गोलीबारी, पानी के बँटवारे जैसे मुद्दे भी दोनों देशों के बीच लगातार टकराव को जन्म देते रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र में भारत और पाकिस्तान की स्थिति
भारत का पक्ष
भारत संयुक्त राष्ट्र (United Nations)का संस्थापक सदस्य है और विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों में से एक है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र में हमेशा अपने आपको एक लोकतांत्रिक, सहिष्णु और शांतिप्रिय राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत किया है। भारत का जोर वैश्विक शांति, सतत विकास और आतंकवाद के विरुद्ध एकजुटता पर रहता है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र के मंच पर बार-बार यह बात उठाई है कि आतंकवाद किसी एक देश की समस्या नहीं, बल्कि समूची मानवता के लिए खतरा है। भारत वैश्विक मंचों पर आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता और शून्य सहिष्णुता की नीति की वकालत करता रहा है।
भारत ने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के प्रमाण संयुक्त राष्ट्र में समय-समय पर प्रस्तुत किए हैं। हाल ही में पहलगाम, पुलवामा, उरी जैसे आतंकी हमलों के संदर्भ में भारत ने ठोस सबूतों के साथ अंतरराष्ट्रीय समुदाय को बताया है कि इन हमलों के पीछे सीमा पार से संचालित आतंकी नेटवर्क हैं। भारत की उप-स्थायी प्रतिनिधि योजना पटेल ने संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के रक्षा मंत्री के उस कबूलनामे का भी उल्लेख किया जिसमें पाकिस्तान द्वारा आतंकियों को समर्थन, प्रशिक्षण और फंडिंग देने की बात स्वीकार की गई थी।
भारत का यह रुख अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच उसे एक जिम्मेदार और विश्वसनीय राष्ट्र के रूप में स्थापित करता है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र में आतंकवाद के सभी रूपों के प्रति पूर्ण असहिष्णुता की नीति का समर्थन किया है और वैश्विक मंचों पर आतंकवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है।
पाकिस्तान का पक्ष
पाकिस्तान 1947 में स्वतंत्रता के बाद संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बना। पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर मुद्दे को लगातार उठाता है, जहां वह इसे "विवादित क्षेत्र" के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश करता है और खुद को कश्मीरी मुसलमानों का रक्षक बताता है। पाकिस्तान अक्सर भारत पर "दमनकारी नीतियों" का आरोप लगाता है और यह दावा करता है कि वह कश्मीरियों के अधिकारों का पैरोकार है।
आतंकवाद पर पाकिस्तान का रुख उलझा हुआ और दोहरा है। एक ओर वह खुद को आतंकवाद का शिकार बताता है, लेकिन दूसरी ओर उसकी धरती पर लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिज्बुल मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठन सक्रिय हैं, जो भारत के खिलाफ हिंसक गतिविधियों में संलिप्त पाए जाते हैं। हाल ही में पहलगाम हमले समेत कई आतंकवादी घटनाओं में इन संगठनों की भूमिका पाई गई है, और इनका संचालन पाकिस्तान या पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होता है।
कश्मीर मुद्दा और संयुक्त राष्ट्र का रुख
1948 में पाकिस्तान समर्थित कबायली हमलावरों द्वारा जम्मू-कश्मीर पर हमला करने के बाद भारत ने सुरक्षा परिषद में यह मामला उठाया। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने तत्काल संघर्ष विराम की सिफारिश की और दोनों देशों को सलाह दी कि वे शांतिपूर्ण ढंग से इस मुद्दे का समाधान करें।
हालांकि, पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों में कश्मीरी लोगों को आत्मनिर्णय का अधिकार देने की मांग की, जबकि भारत का रुख यह रहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और यह मामला पूरी तरह आंतरिक है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में प्रस्ताव 47 में यह कहा गया कि पाकिस्तान पहले अपने सैनिक और कबायली आक्रमणकारी पीछे हटाए, उसके बाद भारत अपनी सेनाएँ कम करे और फिर जनमत संग्रह हो। लेकिन पाकिस्तान ने आज तक अपनी सेनाएँ नहीं हटाईं, जिससे यह प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाई।
इसलिए, संयुक्त राष्ट्र ने धीरे-धीरे यह मामला "द्विपक्षीय" मानते हुए हस्तक्षेप से किनारा कर लिया और अब यह लगभग निष्क्रिय स्थिति में है।
आतंकवाद पर दोनों देशों का पक्ष
भारत ने हमेशा संयुक्त राष्ट्र में आतंकवाद के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया है, खासकर 2001 की संसद पर हमले और 2008 के मुंबई हमलों के बाद। भारत ने जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों पर कार्रवाई की माँग की है और पाकिस्तान को ‘आतंकवाद का प्रायोजक देश’ बताया है।
पाकिस्तान की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद को लेकर नकारात्मक रही है। अमेरिका समेत कई देशों ने पाकिस्तान को हिदायत दी है कि वह अपनी जमीन का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए न होने दे।
भारत की इस रणनीति का परिणाम यह हुआ कि 2019 में पुलवामा हमले के बाद भारत ने बालाकोट एयर स्ट्राइक को “आत्मरक्षा” की कार्रवाई बताया, और कई देशों ने भारत के रुख का समर्थन किया।
संयुक्त राष्ट्र की आतंकी सूची में मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करवाना भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत रही, जिसमें फ्रांस, अमेरिका और UK का समर्थन भी मिला।
मानवाधिकार और पाकिस्तान की रणनीति
पाकिस्तान अक्सर भारत पर कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगाता है और UNHRC (United Nations Human Rights Council) में इसे मुद्दा बनाता रहा है। वह OIC के सहयोग से इन आरोपों को हवा देने की कोशिश करता है।
हालाँकि, भारत ने हर बार इन आरोपों का तथ्यात्मक जवाब दिया है और बताया है कि पाकिस्तान खुद बलूचिस्तान, सिंध और खैबर पख्तूनख्वा में अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है। इसके अलावा, पाकिस्तान में पत्रकारों और राजनीतिक विरोधियों की आवाज को दबाने की घटनाएँ भी वैश्विक मंच पर उजागर हुई हैं।
कूटनीतिक समर्थन में भारत बनाम पाकिस्तान
भारत को वैश्विक मंचों पर लगातार समर्थन मिल रहा है, विशेष रूप से अमेरिका, फ्रांस, रूस और जापान जैसे प्रमुख देशों से। इन देशों ने समय-समय पर भारत के दृष्टिकोण और नीतियों का समर्थन किया है, जिससे भारत की अंतरराष्ट्रीय स्थिति मजबूत हुई है। भारत की सॉफ्ट पावर, विशाल आर्थिक ताकत और लोकतंत्र की मजबूत नींव ने उसे विश्व समुदाय में एक प्रभावशाली स्थान दिलाया है। इसके कारण, भारत की आवाज को अब अधिक गंभीरता और सम्मान के साथ सुना जाता है। भारत G20, BRICS, और SCO जैसे प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रभावशाली भूमिका निभाता है, जहां यह वैश्विक मुद्दों पर सक्रिय रूप से अपनी राय रखता है और समाधान खोजने में योगदान देता है। इसके अलावा, भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए भी एक मजबूत उम्मीदवार माना जाता है, क्योंकि उसकी वैश्विक साख, बढ़ती आर्थिक ताकत और राजनीतिक प्रभाव इसे इस स्थान के योग्य बनाते हैं।
पाकिस्तान को चीन का लगातार समर्थन मिलता रहा है, विशेष रूप से कश्मीर और आतंकवाद के मुद्दों पर। चीन ने हमेशा पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा होकर भारत के खिलाफ वैश्विक मंचों पर उसके दृष्टिकोण का समर्थन किया है, जिससे पाकिस्तान को एक प्रकार का रणनीतिक लाभ मिलता है। इसके अलावा, पाकिस्तान को ओआईसी (ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कॉपरेशन) में भी समर्थन प्राप्त है, जहाँ वह कश्मीर मुद्दे को उठाता है। हालांकि, ओआईसी में पाकिस्तान का प्रभाव है, लेकिन वहां से मिलने वाला समर्थन अधिकतर सांकेतिक होता है, और कोई ठोस या प्रभावी कार्रवाई कभी नहीं की जाती। ओआईसी सदस्य देशों का समर्थन आमतौर पर बयानबाजी तक सीमित रहता है, जिससे पाकिस्तान को केवल राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर ही लाभ होता है, लेकिन वास्तविक बदलाव या प्रभावी हस्तक्षेप की कमी होती है।
भारत की वैश्विक छवि बनाम पाकिस्तान की छवि
भारत आज न केवल दुनिया की सबसे बड़ी लोकतंत्र है, बल्कि आर्थिक रूप से भी उभरती हुई शक्ति है। डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं ने भारत को विश्व बाजार में आकर्षक गंतव्य बना दिया है। इसके अलावा भारत की वैक्सीन डिप्लोमेसी (कोविड-19 के दौरान) ने भी दुनिया भर में इसकी छवि को और मजबूत किया।
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चरमराई हुई है, IMF की सहायता पर निर्भरता बढ़ती जा रही है, और सेना व सरकार के बीच सत्ता संघर्ष उसकी राजनीतिक स्थिरता पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं। विदेशी निवेश घट रहा है और आतंरिक अस्थिरता उसकी छवि को और नुकसान पहुंचा रही है।
मीडिया और वैश्विक नैरेटिव
अंतरराष्ट्रीय मीडिया भी अब आतंकवाद को लेकर ज्यादा सचेत हो गया है। न्यूयॉर्क टाइम्स, वॉशिंगटन पोस्ट, बीबीसी जैसे मंचों पर अब भारत के दृष्टिकोण को अधिक गंभीरता से लिया जाता है, जबकि पाकिस्तान द्वारा गढ़े गए कई दावे तथ्यों की कसौटी पर खरे नहीं उतरते।
यही कारण है कि जब पहलगाम जैसा आतंकी हमला होता है, तो अधिकांश वैश्विक मीडिया इसे पाकिस्तान से जुड़ी आतंकी गतिविधियों से जोड़ते हैं, और भारत के प्रति सहानुभूति जताते हैं।
संयुक्त राष्ट्र मंच पर किसकी बात मानी जाती है?
अगर हम निष्पक्ष दृष्टि से देखें तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय भारत की बात को अधिक गंभीरता और सम्मान के साथ सुनता है। भारत की छवि एक जिम्मेदार, शांति चाहने वाले और लोकतांत्रिक देश के रूप में बनी है, जो वैश्विक मुद्दों पर विचारशील और संतुलित दृष्टिकोण अपनाता है। इसके विपरीत, पाकिस्तान की हर रणनीति अक्सर संदेह और आलोचना का शिकार होती है, क्योंकि उसके कार्यों पर कई बार विश्व समुदाय में सवाल उठते हैं। खासकर आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान की भूमिका को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निरंतर चिंता व्यक्त की जाती है। संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक मंच पर भी भारत का पक्ष अधिक मजबूत और तथ्य-आधारित होता है, जो उसे वैश्विक राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाता है। भारत का दृष्टिकोण हमेशा ठोस प्रमाणों और तर्कों पर आधारित होता है, जो उसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अधिक विश्वसनीय बनाता है।
पाकिस्तान को कब - कब पड़ी फटकार
कश्मीर विवाद और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद( UNSC( का हस्तक्षेप - 1948 में पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में उठाया, जिसके बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने संघर्ष विराम की सिफारिश की और पाकिस्तान से अपनी सेनाएँ और कबायली हमलावर हटाने को कहा। हालांकि, पाकिस्तान ने अपनी सेनाएँ पूरी तरह से नहीं हटाईं, जिससे जनमत संग्रह की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाई। बाद में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) और संयुक्त राष्ट्र ने इसे द्विपक्षीय मुद्दा मानते हुए हस्तक्षेप कम कर दिया।
संसद पर हमले के बाद भारत की प्रतिक्रिया - 2001 के संसद हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान पर आतंकवादी संगठनों को समर्थन देने का आरोप लगाया। संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक शक्तियों ने पाकिस्तान पर आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव डाला।
2019 में पुलवामा हमला और बालाकोट एयर स्ट्राइक - पुलवामा हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान पर आतंकवाद को समर्थन देने का आरोप लगाया और बालाकोट में एयर स्ट्राइक की। संयुक्त राष्ट्र और कई देशों ने पाकिस्तान से आतंकवाद के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने की मांग की। पाकिस्तान को इस पर अंतरराष्ट्रीय दबाव और आलोचना का सामना करना पड़ा।
2019 में आतंकवाद और मानवाधिकार उल्लंघन पर आलोचना - जब भी पाकिस्तान कश्मीर मुद्दा उठाता है, भारत इसे अपना आंतरिक मामला बताते हुए जवाब देता है और संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की आलोचना करता है। इस पर संयुक्त राष्ट्र के कई सदस्य देशों ने भारत का समर्थन किया, जिससे पाकिस्तान की स्थिति कमजोर पड़ी।
2020 मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करना - 2020 में भारत ने जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव रखा। चीन के विरोध के बावजूद, मसूद अजहर को अंततः वैश्विक आतंकवादी घोषित किया गया, जो पाकिस्तान के लिए एक कूटनीतिक झटका था और उस पर दबाव बढ़ा।
पाकिस्तान के मानवाधिकार उल्लंघन पर UNHRC की आलोचना
2021 में पाकिस्तान के बलूचिस्तान, सिंध और अन्य क्षेत्रों में मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC)और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने चिंता जताई है। पाकिस्तान को मानवाधिकारों के उल्लंघन पर बार-बार आलोचना और चेतावनी मिली, जो उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि के लिए एक गंभीर मुद्दा बना।
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