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अखिलेश के नक्शे-कदम पर तेजस्वी, राजद की भी अनदेखी, मुसलमान आखिर कहां जाएं ?
तेजस्वी यादव ने भी अखिलेश के नक्शे-कदम पर चलकर मुस्लिम नेतृत्व को साइडलाइन किया
Muslim vote bank ignored by RJD-SP (image from Social Media)
यूपी से बिहार तक विपक्ष की राजनीति में एम साइलेंट कर दिया गया है। एम-वाई वाले इस 'एम' का कभी सियासत में सिक्का चलता था। करीब एक दशक से मोदी-योगी वाली नयी भाजपा ने इस सिक्के को खोटा साबित कर दिया है। हांलांकि विपक्षियों के खजाने में ये सिक्के खनकते हैं,पर खजाने के मालिक इस खनक की कीमत नहीं चुकाना चाहते। कटे-फटे नोटों की भी कीमत होती है पर सियासत के बाजार में कभी खूब चलने और खनकने वाला 'एम' (मुस्लिम वोट बैंक) सिक्का साइलेंट है।
बिहार के चुनावी मौसम में भले ही यहां एनडीए से इंडिया का मुकाबला हो पर आमने सामने की लड़ाई भाजपा और राजग की है। ऐसे में भाजपा को चुनौती देने का दारोमदार तेजस्वी यादव पर अधिक है। वो खूब मेहनत से लड़ भी रहे हैं। राजद का मुख्य आधार एम-वाई रहा है, पर यहां बिहार में भी यूपी की तरह मुस्लिम वोट भाजपा को सीधी टक्कर देने वाले राजद का बड़ा सहारा है लेकिन तेजस्वी यादव मुस्लिम टिकट बंटवारे से लेकर चुनावी कैंपेन में मुस्लिम समाज को नजर अंदाज करते दिख रहे हैं।
मुसलमान कशमकश में
यूपी में सपा के साथ और बिहार में राजद के साथ कांग्रेस का गठबंधन हैं। दोनों राज्यों में सपा-राजद की अनदेखी पर कांग्रेस आप्शन था पर कांग्रेस इन दलों के साथ है। यूपी की बात करें तो यहां मुस्लिम समाज के लिए बसपा बड़ा विकल्प था पर भाजपा की बी टीम समझकर इससे भी विश्वास टूटा। सपा, राजद, कांग्रेस अनदेखी कर रहे और बसपा भाजपा की बी टीम है तो फिर कहां जाएं मुसलमान?
एक आप्शन ये है कि मुसलमान भाजपा से विश्वास के रिश्ते जोड़कर धर्मनिरपेक्ष दलों द्वारा की जा रही अनदेखी का करारा जवाब दें। और दूसरा विकल्प है कि अकलियत एआईएमआई के असद्दुदीन औवेसी को एक तरफा वोट देकर उसे अपनी पार्टी माने। लेकिन यदि एआईएमआईएम को अपनी पार्टी मानकर मुस्लिम समाज एकजुट होता है तो ये तय है कि ध्रुवीकरण में अस्सी-बीस का बंटवारा भाजपा को अजेय कर देगा और मुस्लिम समाज सत्ता में भागीदारी को तरह जाएगा। और ध्रुवीकरण के नतीजों की सत्ता में मुस्लिम समाज को सत्ता में हिस्सेदारी मिलने से रही।
इन सच्चाइयों के मद्देनजर मुस्लिम समाज के दानिशमंदों की समाज में यही साइलेंट अपील सर्कुलेट होती रही है कि अनदेखा करने के बाद भी एकजुट होकर सपा, राजद और कांग्रेस जैसे दलों का समर्थन किया जाए र मुस्लिम समाज अधिक से अधिक वोट करे। जारी संदेशों में कहा जा रहा है कि धर्मनिरपेक्ष दलों की अनदेखी से वोट करने में ढिलाई ना बरतें, सत्ता परिवर्तन सबसे बड़ी जरूरत है। बाद में हम उन दलों से अपना हक ले लेंगे जिन्हें वोट देकर हम जिताएंगे।
अखिलेश के नक्शे-कदम पर तेजस्वी
बिहार के उलमा बयान दे रहे हैं कि राष्ट्रीय जनता दल मुखिया तेजस्वी यादव मुस्लिम समाज को नजरंदाज कर रहे हैं। सपा मुखिया अखिलेश यादव के नक्शे-कदम पर चलते हुए तेजस्वी चुनावी मंचों पर मुस्लिम नेताओं को स्थान देने से बच रहे हैं। अकलियत के मुद्दे, उनकी समस्याओं और आवश्यकताओं की बात तक करने में परहेज कर रहे हैं। आबादी और समर्थन/विशाल वोट बैंक के लेहाज़ से टिकट बंटवारे में मुस्लिम हिस्सेदारी बेहद बेहद कम है। यही नहीं राजद की साथी कांग्रेस का भी यही रुख है। करीब सत्रह फीसद मुस्लिम आबादी के हिसाब से इंडिया गठबंधन ने बिहार में मुस्लिम उम्मीदवार बहुत कम उतारे हैं।
औवेसी से तेजस्वी की तल्खी
भले ही एआईएमआईएम मुखिया असद्दुदीन औवेसी के विधायक टूट कर राजद में चले गए हों पर बिहार में पांच सीटें जीत कर औवेसी ने पिछले विधानसभा चुनाव में पांच सीटें जीत कर ये साबित कर दिया था कि उन्होंने मुस्लिम बाहुल्य बिहार के सीमांचल में अपना जनाधार बना लिया है। वो बात अलग है कि चार विधायक टूट के राजद में चले गए।
इधर एक आई एम आई एम ने इंडिया गठबंधन में शामिल करने का आग्रह किया, दबाव बनाया फिर भी इंडिया में एंट्री नहीं मिला। जिसके बाद औवेसी की पार्टी ने यूपी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य और चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया। इधर इसपर तेजस्वी ने असद्दुदीन औवेसी से गठबंधन के सवाल पर बड़ी बेरुखी से कहा कि हम सबसे गठबंधन ही कर लेंगे तो हमारे पास कितनी सीटें बढ़ेंगी ! बेरुखी भरे ऐसे जवाब से जाहिर हुआ कि मुस्लिम समाज के वोट को बिखरने से रोकने के लिए वो जरा भी कुर्बानी देने को तैयार नहीं।
धर्मनिरपेक्ष दल भी मुस्लिम समाज से कटने लगे
एक दशक से अधिक समयकाल से भाजपा की सफलताओं का एक कॉमन कारण है- "ये पार्टी सनातनियों के उत्थान, विकास, उन्नति, रक्षा और सुरक्षा के लिए संकल्पित है। ये संदेश हिन्दू समाज के दिलों में घर कर गया, यही नहीं गैर भाजपा दलों के बारे में ये धारणा बनाई गई कि ये दल धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मुस्लिम तुष्टिकरण करते हैं और हिन्दू विरोधी हैं। इन दलों की सत्ता में सनातन धर्म और सनातनी सुरक्षित नहीं रह सकते।
भाजपा के इस परसेप्शन को तोड़ें बिना गैर भाजपाई दलों का सर्वाइवल नहीं हो सकता। इस अहसास से ही धर्मनिरपेक्षता की विचारधारा को सर्वोपरि मानने वाले दल अब किसी भी तरह से एक्स्ट्रा मुस्लिम केयर करते दिखना नहीं चाहते।
मुस्लिम परस्ती और तुष्टिकरण की छवि मिटाना चाहती है सपा
खासतौर से उतर प्रदेश में समाजवादी पार्टी पर मुस्लिम परस्त पार्टी होने के इल्ज़ाम लगाकर भाजपा ने यूपी में दो बार प्रचंड बहुमत की सरकार बनाई और योगी आदित्यनाथ ने निरंतर दूसरी बार मुख्यमंत्री बनकर करीब पौने चार दशक बाद सूबे में इतिहास रचा। हिन्दुत्व का सबसे बड़ा चेहरा बनकर योगी राष्ट्रीय स्तर के बड़े नेता के रूप में स्थापित हुए। अयोध्या विवाद के बाद से देश की राजनीति का केंद्र बनने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और फिर बसपा के हाशिए पर आने और भाजपा के जनाधार में बेहद इजाफा होने के बाद सपा ही एकतरफा विपक्ष की भूमिका में स्थापित है।
अब भाजपा से लड़ने के लिए चालीस फीसद वोट चाहिए
ऐसे में भाजपा से लड़ने के लिए सपा को चालीस फीसद से अधिक जनाधार के लिए बहुसंख्यकों (हिन्दू समाज) का विश्वास जीतना जरूरी है। और इसके लिए गैर यादव पिछड़ी जातियों और दलितों को अपने साथ लाने के लिए पार्टी मुखिया अखिलेश यादव ने पीडीए के फार्मूले पर काम करना शुरू किया। उन्हें पता कि अब पहले की तरह एम वाई फेक्टर से पच्चीस -तीस फीसद वोट हासिल कर सत्ता हासिल नहीं की जा सकती। पूर्व के समय में सपा,बसपा, कांग्रेस और भाजपा सबकी थोड़ी ज्यादा कम लेकिन सबकी ठीक-ठाक ताकत थी,ऐसे में पच्चीस से तीस फीसद वोट हासिल कर सत्ता बन जाती थी।
अब एम वाई से काम चलने वाला नहीं
किसी जमाने में यूपी में 27 फीसद वोट हासिल कर सत्ता बना लेने के दौर में जीत के लिए सपा का एम वाई (मुस्लिम -यादव) फार्मूला ही कारगर हो जाता था। अखिलेश ने भाजपा के मुकाबिल अपना जनाधार बढ़ाने के लिए दलितों और गैर यादव पिछड़ी जातियों को जोड़ने के साथ ये भी धारण तोड़ने की कोशिश की है कि उनकी पार्टी सिर्फ मुस्लिम समाज और यादवों के ही हितकारी नहीं बल्कि सर्व समाज खासकर पिछड़ों, दलितों, वंचितों, किसानों, मजदूरों और नौजवानों का हित उनके लिए सर्वोपरि है। इस मैसेज को जनता तक पंहुचने के लिए सपा अब मुस्लिम समाज की एक्स्ट्रा केयर करने से बचने लगी। दलितों और गैर यादव जातियों का दिल जीतने के लिए जमीनी संघर्ष में लगी है सपा।
योगी ने सनातनियों का बिखराव रोका
खासतौर से उतर प्रदेश में समाजवादी पार्टी पर मुस्लिम परस्त पार्टी होने के इल्ज़ाम लगाकर भाजपा ने यूपी में दो बार प्रचंड बहुमत की सरकार बनाई और योगी आदित्यनाथ ने निरंतर दूसरी बार मुख्यमंत्री बनकर करीब पौने चार दशक बाद सूबे में इतिहास रचा। हिन्दुत्व का सबसे बड़ा चेहरा बनकर योगी राष्ट्रीय स्तर के बड़े नेता के रूप में स्थापित हुए। यूपी की तरह बिहार में जाति की राजनीति का तिलस्म तोड़ने के लिए योगी आदित्यनाथ बिहार में अंधाधुंध जनसभाएं कर रहे हैं।
अयोध्या विवाद के बाद से देश की राजनीति का केंद्र बनने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और फिर बसपा के हाशिए पर आने और भाजपा के जनाधार में बेहद इजाफा होने के बाद सपा ही एकतरफा विपक्ष की भूमिका में स्थापित है। ऐसे में भाजपा से लड़ने के लिए सपा को चालीस फीसद से अधिक जनाधार के लिए बहुसंख्यकों (हिन्दू समाज) का विश्वास जीतना जरूरी है। और इसके लिए गैर यादव पिछड़ी जातियों और दलितों को अपने साथ लाने के लिए पार्टी मुखिया अखिलेश यादव ने पीडीए के फार्मूले पर काम करना शुरू किया। उन्हें पता कि अब पहले की तरह एम वाई फेक्टर से पच्चीस -तीस फीसद वोट हासिल कर सत्ता हासिल नहीं की जा सकती। अखिलेश यादव हों या तेजस्वी यादव दोनों राज्यों के दोनों विपक्षी नेता कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के बाद इस बात का इत्मेनान रखें हैं कि उनका सबसे बड़ा मुस्लिम वोट बैंक अनदेखी के बाद भी कही नहीं जा सकता। क्योंकि कहीं कोई आप्शन ही नहीं है। बसपा और औवेसी को भाजपा की भी टीम मान लिया गया है। और यदि औवेसी के साथ मुसलमान जाते हैं तो अस्सी बीस के ध्रुवीकरण में भाजपा अजेय हो जाएगी और मुस्लिम समाज सत्ता की हिस्सेदारी को तरह जाएगा।
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