UPSC Result Motivation: किन सफलताओं का जश्न है ये? जिंदगी में सफलता का मतलब सिर्फ सरकारी नौकर बनना ही है क्या?

UPSC Result Motivation: हर व्यक्ति जीवन में आगे बढ़ना चाहता है और सफल होने का प्रयास करता है ऐसे में आईएएस बनना जिंदगी का सबसे बड़ा सपना सच होने जैसा है। लेकिन इसे लेकर कुछ सवाल भी उठते हैं।

Yogesh Mishra
Published on: 30 April 2025 12:03 PM IST
UPSC Result Motivation
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UPSC Result Motivation (Image Credit-Social Media)

UPSC Result Motivation: यूपीएससी के रिजल्ट आये। जैसा हमेशा होता आया है, वही दोहराया गया। टॉप रैंकर्स और यहां तक कि निचले रैंकर्स वालों की जयजयकार हुई, इंटरव्यू छपे, फोटो, वीडियो, फूल माला, क्या कुछ महिमामंडन नहीं हुआ। जो गांव-देहात बैकग्राउंड के थे, उनके गांव देहात में दीवाली मनाई गई। गांव वाले तर गए।

आईएएस बनना कितनी बड़ी उपलब्धि है। जिंदगी का सबसे बड़ा सपना। जो बन गया वो महान हो गया, सुप्रीम हो गया। उनके मां बाप तपस्वी कहलाये, जिन्होंने ऐसे महान सपूतों को जन्म दिया।

सरकारी नौकरी पाना वो भी आईएएस की, कितनी बड़ी बात है हमारे लिए। क्यों? क्योंकि आईएएस देश चलाता है, वो माई बाप है, वो हाकिम है, वो ही सरकार है। इसीलिए वो धन्य है, पूज्यनीय है। वो बड़ी गाड़ी में चलता है, बड़े बंगले में रहता है, नौकर चाकर की फौज रहती है, पुलिस गारद मिलती है, उसका ट्रैफिक चालान नहीं होता, उसकी नौकरी कभी नहीं छिनती । वो मालिक होता है, हम मजलूम, तभी वो दैवी है।

UPSC Result (Image Credit-Social Media)

गुणगान से इतर, तस्वीर के दूसरे पहलू और हकीकत पर हमारा ध्यान जाता ही नहीं। हम अलग नज़रिया पेश कर नहीं पाते या हमारे में वो कूवत ही नहीं है कि अलग सोच सकें।

कोई तो सोचे और बताए कि सिविल सर्विस वालों ने किया ही क्या है? इस साल की टॉपर से कोई तो पूछे कि बायोकेमिस्ट्री की पढ़ाई को कैसे वो अपनी अफसरी में काम लाएंगी? देश और देशवालों की दुश्वारियों को दूर करने के बारे में क्या प्लान और विजन है उनका?

आईआईटियन, बीटेक, आईआईएम, एमबीबीएस वाले आईएएस आम हो चले हैं। अच्छी डिग्रियां और कितना ही काम करने का स्कोप फिर भी बाबूगीरी? क्यों? ऐसी कौन सी देश सेवा करने जा रहे हैं? विभागाध्यक्ष बनना ही देश सेवा है? तो क्या जो बाकी लोग हैं वो देश सेवा नहीं कर रहे?

नहीं। जवाब आसान है, जो देखा, सुना, महसूस किया वही तो मन की चाहत होगी। जब आईएएस को सुपरपावर युक्त, सुपर पैसों वाला और सबसे सुपीरियर देखा है तो क्यों न कोई वही बनना चाहेगा? कहने को कोई कहे कि देश पॉलिटिशियन चलाते हैं लेकिन सच्ची बात ये है कि देश बाबू ही चलाते हैं।

कोई ये भी तो कहे कि हम सेलेक्ट हुये कैंडिडेट्स का यशोगान करें ही क्यों? हमें इससे क्या मतलब? क्या सिर्फ सरकारी नौकरी पाने वाले या आईएएस आईपीएस ही गुणगान योग्य हैं? क्या नौकरी और पैकेज पाना ही राष्ट्रनिर्माण में योगदान की निशानी है?

यही रैंकर्स जब हर गलत काम करेंगे, सैकड़ों हजारों करोड़ कमाएंगे, तब भी क्या कोई सवाल पूछेगा?

UPSC Result (Image Credit-Social Media)

सरकारी नौकरी वो भी सिविल सेवा, क्या है सेलेक्शन का पैमाना? रट्टा मार कर इम्तिहान पास करना? क्या कोई क्रिटिकल थिंकिंग है? किसी भी समस्या के समाधान के लिए कोई प्लान है? एक परीक्षा में पास और पशुधन से लेकर पंचायती राज, सड़क निर्माण, सूचना, नगर विकार, राजस्व, निवेश, कार्मिक ... जहां भेज दो वहां फिट।

कब तक हम हाकिमों के चरणवंदन करते रहेंगे? सेलेक्ट होते ही हम सब उसी में लग गए। ये लोग उसी दिन से हाकिमी तेवर का चोला पहन लेते हैं, अपने को सबसे सुपीरियर मान लेते हैं। वो खुद ऐसे नहीं बनते,हम आम जनता,मीडिया उन्हें उस पायदान पर बिठा देता है और शीश नवा देता है। सेलेक्ट होते ही सिर पर चढ़ा लिए ये मालूम होते हुए भी कि वे अब सिर पर ही सवार रहेंगे।

अभी तक जिन गांव वालों ने अपने होनहार के आईएएस बनने पर दिवाली मनाई उनमें से कितने गांव बदल गए? कितने गांव शानदार हो गए, गांव वालों की जिंदगी स्वर्ग हो गई? है कोई गिनती? यहां सांसद गोद लिए गांव न बदल सके, आईएएस की कौन कहे।

अंग्रेजी हुकूमत ने 1857 के विद्रोह के बाद भारत की जनता को कंट्रोल करने के लिए इंडियन सिविल सर्विस बनाई थी। इसे शुरू में इंपीरियल सिविल सेवा के रूप में जाना जाता रहा। 1858 से 1947 के बीच यही सर्विस ब्रिटिश शासन का सबसे बड़ा औजार रही। इसमें उच्च वर्ग के लोग ही रखे जाते थे और एक एक ‘सिविलियन’ यानी प्रत्येक आईसीएस अफसर औसतन 3,00,000 प्रजा के जीवन के हर कोने में पैठ रखता था।

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हम गुलामी के काले पन्नों की यादों को मिटाना चाहते हैं, ब्रिटिश और मुगल नामों, कानूनों, व्यवस्थाओं को बदलने की बड़ी बड़ी बातें करते हैं । लेकिन अंग्रेजी हुकूमत की सबसे बड़ी रवायत को छूना नहीं चाहते। क्यों? क्योंकि यही रैयत को कंट्रोल करने और राज करने का टाइम टेस्टेड फार्मूला है।

सवाल कई हैं। क्या 1858 के पहले जब आईसीएस जैसी चीज नहीं थी तो क्या अराजकता थी? मुगल या उससे भी पहले जब भारत सोने की चिड़िया था, तब क्या सिस्टम था? तो क्या 1858 के बाद हम सोने की चिड़िया बन गए? हम तो न बन पाए लेकिन सिविल सर्वेंट जरूर बनते गए - सोने की चिड़िया।

सवाल ये भी - आईएएस बनने के लिए क्या क्वालिफिकेशन चाहिए? सिर्फ ग्रेजुएट। सरकारी क्लर्क बनने की भी यही क्वालिफिकेशन। तो फिर आईएएस में इंजीनियर, डॉक्टर, पीएचडी जैसों की क्या जरूरत? अगर ऐसी डिग्री वाले एग्जाम में बैठें तो क्यों नहीं ये शर्त हो कि उनको सेलेक्ट होने पर वही काम दिया जाएगा? बायोकेमिस्ट्री वाले को रिटायर होने तक उसी साइंस वाले काम में लगाओ। इंजीनियर को इंजीनियरिंग का ही काम दो। डॉक्टर को डॉक्टरी वाला ही महकमा दो। डीएम बनाने की शर्त कानून और फाइनेंस की शिक्षा हो।

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एक प्रयोग लेटरल एंट्री का भी चला। प्राइवेट सेक्टर के प्रोफेशनल्स को सीधे जॉइंट सेक्रेटरी बनाने का प्रयोग। लेकिन यहां भी वही समस्या। प्राइवेट सेक्टर में बरसों बरस टीवी फ्रिज बेचने वाले प्रोफेशनल भला डिफेंस, कृषि या नगर विकास में क्या योगदान करेंगे? क्या इसकी प्रोफेशनल योग्यता है? या फिर यहां भी एक दवा हर मर्ज की? प्राइवेट सेक्टर में तो ऐसा नहीं होता। डॉक्टर तक एक एक अंग, एक एक बीमारी के स्पेशलिस्ट हो गए हैं । लेकिन शासन प्रशासन में वही सिविल सर्वेंट हर मर्ज की दवा बना बैठा है।

सफलता का जश्न जरूर मनाया जाए । लेकिन सवाल ये भी तो है कि किस चीज की सफलता? जिंदगी में सफलता का मतलब सिर्फ सरकारी नौकर बनना ही रह गया है क्या? जो नहीं सफल हुए या जो वहां जाना ही नहीं चाहते, उनका क्या? उनका शोक मनाया जाए? क्या वे इस महान देश के नागरिक, राष्ट्र निर्माण के सहयोगी नहीं हैं? उनका जश्न कौन मनाएगा?

जश्न मने, जरूर मने। लेकिन असल उपलब्धियों का मने। नौकरी पाने का न मने। लूटतंत्र का न मने। सच्चाई का मने। इनोवेशन का मने। विज्ञान की खोज का मने। प्रकृति के संरक्षण का मने। इंसानियत का मने। अपना खुद का मने। जीवन हर क्षण एक परीक्षा है, उसको पास करने का मने।

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