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जब महिलाएं पहन लेती थी 'ब्लाउज'... तो फाड़ देते थे कपड़े.... भारत में 'स्तन' ढकने की थी सख्त मनाही
Women Rights Controversy: तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी द्वारा महिला पत्रकारों पर लगाए गए बैन ने नई बहस छेड़ दी है। इसी बीच भारत के इतिहास में नंगेली जैसी महिलाओं की कहानियां याद आती हैं, जिन्होंने अपने अधिकारों के लिए जान दे दी थी।
Women Rights Controversy: भारत में तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी ने जब अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों के प्रवेश पर बैन लगा दिया तो एक नई बहस शुरू हो गई। प्रियंका गांधी से लेकर कई बड़े नेता और आम जनता ने इसका जमकर विरोध किया। इसके बाद मुत्ताकी ने एक और प्रेस कॉन्फ्रेस की, जिसमें उन्होंने महिला पत्रकारों को बुलाया। महिलाओं के अधिकारों और पर्दे की आड़ में महिलाओं को पीछे दकेलने की इस जंग के बीच अगर आप भारत के इतिहास के पन्नों को पलटेंगे तो रोंगटे खड़े कर देने वाले रिवाज पाएंगे।
19वीं सदी का दक्षिण भारत, जहां आज की आजादी, सम्मान और समानता की कल्पना करना नामुमकिन था। उस दौर में दलित महिलाओं के लिए अपने शरीर पर कपड़ा डालना भी अपराध माना जाता था। सोचिए, सिर्फ इसलिए कि वे ऊंची जाति की नहीं थीं, उन्हें अपने शरीर को ढकने का अधिकार तक नहीं था।
जब ‘इज्जत’ पर भी लगता था टैक्स
साल 1729 में दक्षिण भारत के त्रावणकोर साम्राज्य में राजा मार्थंड वर्मा का शासन था। राज्य बना तो कानून भी बने, लेकिन इन कानूनों में एक ऐसा नियम था जो इंसानियत को शर्मसार कर देता है। यह था ‘मूलाक्करम’ यानी ब्रेस्ट टैक्स। दलित और ओबीसी वर्ग की महिलाओं को अपने स्तनों को ढकने के लिए टैक्स देना पड़ता था। और यह टैक्स किसी तय रकम का नहीं था, बल्कि महिलाओं के शरीर के हिसाब से तय होता था। जिसका शरीर थोड़ा भरा हुआ, उसका टैक्स ज्यादा। ये कैसा समाज था, जहां इंसान की गरिमा को मापने का पैमाना उसकी छाती का आकार था।
जब कपड़ा पहनना विद्रोह माना गया
त्रावणकोर में निचली जाति की महिलाओं को कमर से ऊपर कपड़ा पहनने की मनाही थी। अगर उन्होंने गलती से भी कपड़ा ओढ़ लिया, तो सजा तय थी। गांव के पुरोहित के हाथ में एक लंबी लाठी रहती थी, जिसके सिरे पर चाकू बंधा होता था। अगर कोई महिला कमर के ऊपर कपड़ा पहन लेती थी तो वह उन महिलाओं के कपड़े को चाकू से फाड़ देता था और उस कपड़े को पेड़ पर टांग देता था, ताकि दूसरों को “सबक” मिल सके।
हालांकि, ऐसे नियम सिर्फ महिलाओं के लिए नहीं, बल्कि पुरुषों को भी सिर ढकने की अनुमति नहीं थी। जो ढकना चाहे, उसे भी अलग टैक्स देना पड़ता था। समाज में समानता का नामोनिशान नहीं था। ऊंची जातियों के लिए सब कुछ और नीची जातियों के लिए अपमान ही जीवन का हिस्सा था।
नंगेली: जिसने परंपराओं के खिलाफ आग जलाई
कहते हैं न कि हर अन्याय का अंत होता है। और इस अमानवीय परंपरा को चुनौती देने के लिए सामने आई नंगेली। चेरथला की एक दलित महिला, जिसने ठान लिया कि अब और नहीं। वह अपने शरीर को ढकना चाहती थी, लेकिन टैक्स देने से मना कर दिया।
जब अफसर टैक्स वसूलने उसके घर पहुंचे, तो पूरा गांव इकट्ठा हो गया। सबकी आंखों में डर था, लेकिन नंगेली की आंखों में आग। अफसरों ने कहा, “टैक्स दो, वरना सजा मिलेगी।” नंगेली ने शांत आवाज में कहा, “रुकिए, लाती हूं टैक्स।”
एक केले के पत्ते पर रखी गई क्रांति की कीमत
नंगेली झोपड़ी में गई और कुछ देर बाद बाहर आई... हाथ में एक केले का पत्ता था। अफसरों ने जब उस पत्ते की ओर देखा, तो उनके चेहरे सफेद पड़ गए। उस पत्ते पर नंगेली का कटा हुआ स्तन रखा था। खून से भीगा, लेकिन साहस से भरा हुआ। वह बोली, “ले जाओ अपना टैक्स।” यह कहकर वह वहीं गिर पड़ी। खून बहता रहा और नंगेली ने वहीं दम तोड़ दिया।
नंगेली की मौत ने पूरे गांव को हिला दिया। उसके पति चिरकंदन ने जब यह देखा, तो वह भी उसकी चिता में कूद गया। इतिहास में यह अकेली घटना है जब किसी पुरुष ने अपनी पत्नी की चिता में कूदकर जान दी। सच्चे प्रेम और विरोध का ऐसा उदाहरण आज भी दुर्लभ है।
जब जनता के आक्रोश से झुका राजा
नंगेली की शहादत ने पूरे त्रावणकोर को झकझोर दिया। महिलाओं ने बगावत कर दी। उन्होंने पूरे शरीर पर कपड़ा पहनना शुरू कर दिया। जगह-जगह हिंसा भड़क उठी। मद्रास के ब्रिटिश कमिश्नर ने जब राजा से कहा, “अब जनता को रोका नहीं जा सकता,” तब राजा को झुकना पड़ा। राजा ने एलान किया, “अब नादर जाति की महिलाएं बिना टैक्स के अपने शरीर को ढक सकती हैं।”
नंगेली की कहानी सिर्फ इतिहास नहीं, एक प्रतीक है। उस औरत की, जिसने अपने शरीर की कीमत पर समाज को उसकी आत्मा दिखाई। ऐसे में आज जब महिलाएं बराबरी की बात करती हैं, तो हमें याद रखना चाहिए कि यह बराबरी सहज नहीं आई, बल्कि किसी ने इसके लिए अपना खून बहाया था।
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