India Pakistan War: क्या है सिंधु जल पर भारत की रणनीति ? जानें किस तरह पाकिस्तान को लग रहा झटका!

India Pakistan War: पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने नदियों के जल को पाकिस्तान को देने की पुरानी संधि पर विराम लगा दिया। भारत सरकार के इस फ़ैसले के बाद कुछ लोग यह सवाल उठाने लगे कि आखिर भारत इन नदियों के पानी को रोकेगा कैसे?

Newstrack          -         Network
Published on: 8 May 2025 2:51 PM IST (Updated on: 8 May 2025 3:25 PM IST)
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India Pakistan War: पानी... जिसपर हर मनुष्य का जीवन निर्भर है। पानी जीवन का वो मूल तत्व है जिसके बिना एक दिन भी रहना असंभव है। लेकिन अब पानी देश का बेहद गंभीर मुद्दा बन गया है और रणनीतिक हथियार बनने की ओर तेजी से बढ़ रहा है। इस रणनीति की नींव रखी गई है भारत और पाकिस्तान के बीच बहने वाली नदियों पर। पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने नदियों के जल को पाकिस्तान को देने की पुरानी संधि पर विराम लगा दिया। भारत सरकार के इस फ़ैसले के बाद कुछ लोग यह सवाल उठाने लगे कि आखिर भारत इन नदियों के पानी को रोकेगा कैसे? पाकिस्तान को पानी देना भारत की मजबूरी बन जायेगी?

इन सवालों के बीच यह जानना ज़रूरी हो जाता है कि आज भारत पाकिस्तानक को सबक सीखने के लिए सिंधु नदी प्रणाली के जल पर नियंत्रण के लिए कौन सी रणनीतियों को अपना रहा है और किस प्रकार प्रभावशाली दबाव दे रहा है... जांनने के लिए ये लेख पूरा पढ़ें :

1- जलविद्युत परियोजनाएं

भारत ने अपने इस निर्णय को बड़ा रूप देने के लिए जम्मू-कश्मीर में पाकल डुल (1000 मेगावाट), किरु (624 मेगावाट), क्वार (540 मेगावाट), रातले (850 मेगावाट) परियोजनाओं को रफ्तार दी। ये सभी परियोजनाएं चिनाब नदी पर पूर्ण रूप से आधारित हैं, जिससे पाकिस्तान को पानी मिलता है। इनका मुख्य उद्देश्य केवल ऊर्जा का उत्पादन नहीं, बल्कि जल प्रवाह को रणनीतिक ढंग से नियंत्रित करना है ताकि पाकिस्तान पर जल संकट का दबाव बनाया जा सके।

2-नदियों की धारा बदलने की रणनीति

भारत सिंधु जल संधि के तहत पश्चिमी नदियों पर कुछ सीमित मात्रा में ही जल संग्रहण लगभग 3.6 मिलियन एकड़ फीट तक की अनुमति है। अनुमान ये है कि अब भारत इन सीमाओं का पूर्ण उपयोग करेगा, जिससे पाकिस्तान को मिलने वाले जल में अस्थायी रूप से लेकिन रणनीतिक कटौती संभव हो सकती है।साथ ही, भारत पूर्वी नदियों की धारा को पाकिस्तान में जाने से रोकने पर भी विचार करना शुरू कर दिया है। यदि रावी या ब्यास की धारा को मोड़ा जाता है, तो पाकिस्तान की पंजाब क्षेत्र की कृषि पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।

3-सिंधु जल संधि समझौता

साल 1960 में भारत-पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि को लेकर समझौता हुआ था। उस समय भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान थे जिनके बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में यह संधि हस्ताक्षरित हुई थी। इसके तहत भारत को तीन पूर्वी नदियों - रावी, ब्यास और सतलुज का पूर्ण रूप से संचालन सौंपा गया। इसके साथ ही पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों का भी अधिकार प्राप्त हुआ और भारत को पश्चिमी नदियों के जल का सीमित उपयोग जैसे कि सिंचाई करने, घरेलू उपयोग और जलविद्युत परियोजनाएं की अनुमति प्रदान की गई। बता दे, कई सालों तक यह संधि शांति पूर्वक चलती रही लेकिन समय के साथ बदलती भूराजनीतिक परिस्थितियों और सीमा पार तैनात आतंकवाद ने इसकी नींव को हिला दिया।

4- संधि संशोधन की प्रक्रिया


साल 2023 जनवरी में भारत ने पाकिस्तान को अनुच्छेद XII(3) के तहत संधि के संशोधन का नोटिस जारी किया था जिसमें भारत का साफ़ कहना है कि देश में हो रहे जलवायु परिवर्तन, बढ़ते आतंकवाद और जनसंख्या को देखते हुए साल 1960 में तय की गई शर्तें अब वर्तमान परिस्थितियों के अनुकूल नहीं हैं। अब इस कदम से भारत सिंधु जल पर अपने नियंत्रण के लिए नए रास्तों पर विचार कर सकता है।

5-पाकिस्तान पर प्रभाव

भारत की इस रणनीति का पाकिस्तान पर कई तरह से प्रभाव पड़ सकता है:

- कृषि उत्पादन पर संकट- पाकिस्तान की लगभग 90% सिंचाई सिंधु नदी की व्यवस्था पर पूर्ण रूप से निर्भर है लेकिन जल प्रवाह में कमी आने से ये सीधे कृषि उत्पादन को गंभीर रूप से प्रभावित करेगी।

- पानी पर संकट: पाकिस्तान के कई शहर पहले से पानी के लिए सिंधु प्रणाली पर निर्भर है।

- बढ़ेगी राजनीतिक अस्थिरता: इस रणनीति से देशभर में अशांति बढ़ सकती है, जिससे पाक सरकार पर अधिक दबाव बढ़ेगा।

- अंतरराष्ट्रीय मंच पर झटका: भारत का मानना है कि पाकिस्तान की आतंकवादी गतिविधियाँ संधि के शांति बनाए रखने वाले मूल उद्देश्य का उल्लंघन हैं। इससे पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय छवि और केस कमजोर हो सकता है।

6- जल को रणनीतिक हथियार बनाना:?

अब यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या जल जैसे संसाधन का उपयोग किसी देश को रणनीतिक रूप से कमजोर करने के लिए किया जाना सही है? तो, भारत का इस पर साफ़ कहना है कि यह ‘रक्षा’ है, ‘आक्रमण’ नहीं। साथ ही भारत का तर्क यह है कि वह संधि की शर्तों के साथ-साथ कार्य कर रहा है। पाकिस्तान द्वारा लगातार आतंकवाद को समर्थन देते रहना संधि की भावना के सख्त खिलाफ है और जल नियंत्रण की ये कोशिश सिर्फ एक कूटनीतिक दबाव की रणनीति है, युद्ध नहीं।

7-क्या भविष्य में होगा समाधान ?

भारत-पाक जल विवाद को सुलझाने के लिए कुछ सकारात्मक रास्ते संभव हो सकते हैं जैसे कि जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि और तकनीकी विकास को प्राथमिकता देते हुए दोनों देशों को एक बार नए समझौते पर विचार करना चाहिए। साथ ही दोनों देशों के बीच इस जल विवाद को अवसर में तब्दील किया जा सकता है । यदि दोनों देश मिलकर जल संसाधनों प्रबंधन करें और विवाद को सुलझाने में विश्व बैंक (world bank) या संयुक्त राष्ट्र (UN) जैसे संस्थानों की बड़ी भूमिका भविष्य में आवश्यक हो सकती है।

बता दे, सिंधु जल पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए भारत ने राजनयिक, तकनीकी और भौगोलिक रणनीति अपनाया है। यह कदम पाकिस्तान के खिलाफ सीधा युद्ध नहीं, बल्कि जल कूटनीति का एक हिस्सा है। लेकिन इस रणनीति की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि क्या भारत अंतरराष्ट्रीय नियमों की मर्यादा में रहकर अपने लक्ष्यों को प्राप्त करेगा है या नहीं।

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