क्या हुआ महिलाओं के होंठों को! डरावनी और अनोखी परंपरा, जानिए इस प्रथा के बारे में सब कुछ

Mursi Janjati Ki Anokhi Pratha: मुर्सी जनजाति की होंठ की डिस्क परंपरा न केवल एक सामाजिक परंपरा है, बल्कि यह इस जनजाति की सांस्कृतिक आत्मा से जुड़ी हुई है।

Shivani Jawanjal
Published on: 2 Jun 2025 3:12 PM IST
क्या हुआ महिलाओं के होंठों को! डरावनी और अनोखी परंपरा, जानिए इस प्रथा के बारे में सब कुछ
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Unique Tradition Of Mursi Tribe: दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में बसी जनजातियाँ आज भी अपनी अनोखी परंपराओं और जीवनशैली के जरिए वैश्विक सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध बना रही हैं। अफ्रीका के पूर्वी हिस्से में स्थित इथियोपिया की ओमो घाटी, ऐसे ही एक रंग-बिरंगे सांस्कृतिक संसार की झलक देती है। यहां निवास करने वाली मुर्सी जनजाति (Mursi Tribe) न केवल अपने पारंपरिक जीवन जीने के ढंग के लिए जानी जाती है, बल्कि अपनी विशिष्ट और चौंकाने वाली एक परंपरा के लिए दुनियाभर में चर्चा का विषय बनी हुई है महिलाओं के निचले होंठ में बड़ी डिस्क या प्लेट पहनने की परंपरा।

यह प्रथा, जो देखने में जितनी असामान्य लगती है, उतनी ही गहराई से जुड़ी हुई है मुर्सी समाज की सांस्कृतिक पहचान, सुंदरता की अवधारणा और सामाजिक प्रतिष्ठा से। इस लेख में हम इसी अनोखी परंपरा की परत-दर-परत पड़ताल करेंगे, जानेंगे कि इसकी शुरुआत कैसे हुई, इसका सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व क्या है, यह परंपरा कैसे निभाई जाती है, और आधुनिक समय में इसके क्या मायने रह गए हैं।

मुर्सी जनजाति का परिचय


इथियोपिया के सुदूर दक्षिण-पश्चिम में फैली हरी-भरी और रहस्यमयी ओमो घाटी (Omo Valley) न केवल प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है, बल्कि सांस्कृतिक विविधता की एक अनमोल मिसाल भी है। यही वह इलाका है जिसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी है - और यहीं निवास करती है मुर्सी जनजाति, जो अपनी विशिष्ट परंपराओं और जीवनशैली के लिए जानी जाती है। लगभग 10,000 से 12,000 की जनसंख्या वाली यह जनजाति एक अर्ध-घुमंतू जीवन जीती है, जहां जीवन का आधार है पशुपालन और सीमित स्तर की कृषि। आधुनिकता से दूर, इनका हर दिन प्रकृति की लय और अपने पूर्वजों की परंपराओं के अनुसार चलता है। मुर्सी लोग अपनी मातृभाषा "मुर्सी" बोलते हैं, जो निलो-सहारा भाषा परिवार की एक शाखा है । एक भाषा जो न सिर्फ संवाद का माध्यम है, बल्कि एक पूरी सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखने का जरिया भी है।

होंठ में डिस्क पहनने की परंपरा क्या है?


मुर्सी जनजाति की महिलाओं के लिए निचले होंठ में डिस्क पहनना केवल एक पारंपरिक प्रथा नहीं, बल्कि उनकी गहरी सांस्कृतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक पहचान का प्रतीक है। यह प्रक्रिया आमतौर पर किशोरावस्था में, 15-16 वर्ष की उम्र में शुरू होती है, जब लड़की की मां या परिवार की बुजुर्ग महिलाएं होंठ को चीरकर उसमें पहले एक छोटा लकड़ी का टुकड़ा डालती हैं। समय के साथ उस स्थान को फैलाकर मिट्टी की बड़ी डिस्क डाली जाती है, जो करीब 12 सेंटीमीटर तक बड़ी हो सकती है। यह प्रक्रिया निश्चित रूप से दर्दनाक और जोखिमपूर्ण होती है, लेकिन मुर्सी महिलाएं इसे गर्व और आत्मसम्मान से अपनाती हैं। समाज में बड़ी डिस्क को नारी सौंदर्य, परिपक्वता और सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है। यह न केवल व्यक्तिगत पहचान का हिस्सा है, बल्कि यह महिलाओं की सामाजिक स्थिति को भी दर्शाता है। ऐतिहासिक रूप से माना जाता है कि यह परंपरा गुलामी से बचने के उद्देश्य से शुरू की गई थी, ताकि महिलाएं कम आकर्षक दिखें और उन्हें गुलाम न बनाया जाए। हालांकि इस मान्यता को लेकर विशेषज्ञों में मतभेद हैं, फिर भी यह सोच मुर्सी समाज में गहराई से रची-बसी है। आज भी यह परंपरा, तमाम आधुनिक बदलावों के बावजूद, मुर्सी संस्कृति की एक जीवंत और विशिष्ट पहचान बनी हुई है, जो दुनियाभर के पर्यटकों और मानवशास्त्रियों के लिए आकर्षण का केंद्र है।

इस परंपरा के पीछे का इतिहास और उद्देश्य


सौंदर्य की परिभाषा - मुर्सी जनजाति में सौंदर्य की परिभाषा बिल्कुल अलग और अनोखी है, जो पश्चिमी मानकों से कहीं ज्यादा सांस्कृतिक गहराई से जुड़ी हुई है। यहां महिलाओं के निचले होंठ में पहनी गई मिट्टी की डिस्क को केवल एक सजावटी वस्तु नहीं, बल्कि सौंदर्य, परिपक्वता और सामाजिक सम्मान का प्रतीक माना जाता है। माना जाता है कि जितना बड़ा होंठ और जितनी बड़ी डिस्क, उतनी ही ज्यादा महिला की प्रतिष्ठा और आकर्षण होता है।

विवाह और दहेज प्रणाली - यह अवधारणा विवाह व्यवस्था से भी जुड़ी हुई है जब लड़की की शादी होती है, तो उसके परिवार को दहेज में मवेशी दिए जाते हैं, और कई बार यह भी माना जाता है कि बड़ी डिस्क वाली लड़कियों को अधिक मवेशी मिल सकते हैं। हालांकि यह कोई सख्त नियम नहीं, पर यह धारणा मुर्सी संस्कृति में प्रचलित है।

उपनिवेशवाद से रक्षा - वहीं, एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण यह भी सामने आता है कि यह परंपरा महिलाओं को गुलामी से बचाने के लिए शुरू की गई थी, ताकि वे कम आकर्षक दिखें और उपनिवेशकाल में गुलाम न बनाई जाएं। हालांकि इस विचार को लेकर मानवशास्त्रियों में मतभेद हैं, और कई शोध यह भी दर्शाते हैं कि होंठ डिस्क की यह परंपरा उपनिवेशवाद से पहले से ही सौंदर्य और सामाजिक पहचान से जुड़ी रही है। चाहे वजह कोई भी रही हो, यह परंपरा आज भी मुर्सी समाज में गौरव, पहचान और सुंदरता का प्रतीक बनी हुई है।

डिस्क पहनने की प्रक्रिया कैसे की जाती है?

डिस्क पहनने की प्रक्रिया चरणबद्ध होती है और कई सप्ताहों तक चलती है। आमतौर पर लड़की की मां या किसी अनुभवी महिला द्वारा निचले होंठ में एक छोटा चीरा लगाया जाता है, जिससे यह अनूठी परंपरा शुरू होती है। इसके बाद उस कटे हुए हिस्से में एक छोटी लकड़ी की डिस्क या कील डाली जाती है, ताकि घाव खुला रहे और धीरे-धीरे फैल सके। जैसे-जैसे समय बीतता है और घाव भरता है, डिस्क का आकार धीरे-धीरे बढ़ाया जाता है। प्रामाणिक स्रोतों के अनुसार, डिस्क का व्यास आमतौर पर 8 से 12 सेंटीमीटर, यानी लगभग 3 से 5 इंच तक होता है, हालांकि कुछ मामलों में यह 12-15 सेंटीमीटर (5-6 इंच) तक भी पहुंच सकता है - इससे अधिक आकार असामान्य माना जाता है। जब होंठ पूरी तरह फैल जाता है, तो उसमें सजावटी मिट्टी की डिस्क डाली जाती है, जिसमें अक्सर कलात्मक नक्काशी होती है और जिसे महिलाएं विवाह, उत्सव या खास सामाजिक अवसरों पर गर्व से पहनती हैं। यह प्रक्रिया जितनी जटिल है, उतनी ही गहराई से जुड़ी हुई है उस पहचान से जिसे मुर्सी महिलाएं पूरे गर्व और आत्मसम्मान के साथ अपने साथ लेकर चलती हैं।

आधुनिक प्रभाव और बदलाव

आज के बदलते दौर में, मुर्सी जनजाति की होंठ डिस्क पहनने की परंपरा संक्रमण काल से गुजर रही है। ग्लोबलाइजेशन, शिक्षा और इंटरनेट के प्रभाव ने नई पीढ़ी को परंपरा और आधुनिकता के बीच खड़ा कर दिया है। अब कई युवा महिलाएं इस परंपरा को या तो पूरी तरह त्याग रही हैं या केवल सांकेतिक रूप में निभा रही हैं, जिससे एक नया सामाजिक संवाद जन्म ले रहा है। दूसरी ओर, इथियोपिया सरकार और सामाजिक संस्थाएं इस प्रथा को शारीरिक क्षति मानती हैं और इसके खिलाफ जागरूकता अभियान चला रही हैं इनका उद्देश्य महिलाओं के स्वास्थ्य और अधिकारों की रक्षा करना है। लेकिन इस सांस्कृतिक विरासत का एक और पहलू भी सामने आया है पर्यटन। मुर्सी गांवों में पर्यटक आते हैं, महिलाओं के साथ तस्वीरें खिंचवाते हैं और इसके बदले पैसे देते हैं। इसने परंपरा को कहीं न कहीं एक आर्थिक संसाधन और 'संस्कृति की प्रदर्शनी' में बदल दिया है। ऐसे में यह परंपरा अब न सिर्फ सांस्कृतिक और सामाजिक विमर्श, बल्कि आर्थिक और नैतिक सवालों के घेरे में भी आ गई है।

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