Bhimavva Doddabalappa Shilekyathara: यह चित्र नहीं, यह एक संवेदना का घोष है। यह दृश्य नहीं, यह भारत की आत्मा का उत्थान है

Bhimavva Doddabalappa Shilekyathara: कठपुतलियों की उंगलियों से संस्कृति की नब्ज़ पकड़ने वाली वह स्त्री, आज इस देश की आत्मा की नायिका है। क्या आपने 2014 से पहले ऐसी तस्वीरें देखी थीं?

Dr Aman Kumar
Published on: 1 Jun 2025 10:01 PM IST
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Bhimavva Doddabalappa Shilekyathara: किसी राष्ट्र की आत्मा तब रोती है, जब उसके सच्चे रक्षक गुमनाम रह जाते हैं। और वह मुस्कुराती है, जब देर से ही सही, उन्हें गले लगाकर कहा जाता है – भारत को तुम पर गर्व है।

यह तस्वीर एक घोषणापत्र है – उस नये भारत का, जहाँ सत्ता के सिंहासन से कोई घोष नहीं होता, बल्कि झुर्रियों से भरे हाथों को चूमकर इतिहास गढ़ा जाता है।

भीमाव्वा डोड्डाबलप्पा शिलेक्याथारा — एक 96 वर्षीय तपस्विनी, जिन्होंने कठपुतलियों में रामायण और महाभारत को जीवित रखा — न मीडिया की गूंज में रहीं, न बौद्धिक गलियारों की चर्चाओं में। लेकिन अब, मोदी युग में, उन्हें वह सम्मान मिला है जो दशकों से अधूरी आत्मा को पूर्णता देता है — पद्मश्री।

कठपुतलियों की उंगलियों से संस्कृति की नब्ज़ पकड़ने वाली वह स्त्री, आज इस देश की आत्मा की नायिका है।

क्या आपने 2014 से पहले ऐसी तस्वीरें देखी थीं?

एक झुकी हुई पीठ को सहारा देकर राष्ट्रपति भवन तक लाया जाना – यह केवल सम्मान नहीं, यह भारत माता के घावों पर मरहम है।

कांग्रेस युग में पुरस्कार अक्सर चमकते चेहरों और टीवी फ्रेंडली नामों तक सीमित थे। परछाइयों में काम करने वाले, गाँवों और जंगलों में हमारी संस्कृति को सहेजते हुए जीवन की बलि देने वाले कलाकार, कभी दरबारों तक बुलाए ही नहीं गए।

मोदी सरकार में हुआ वह चमत्कार, जो पहले कल्पना थी।

2014 के बाद पद्म पुरस्कारों की पूरी परंपरा बदल गई। अब वो वंचित, उपेक्षित, चुप साधु, गुमनाम संत, गाँव के विज्ञान शिक्षक, लोकगीतों के अंतिम गायक, सभी को राष्ट्र ने पहचान कर गले लगाया।

कुछ ऐसे ही रत्नों की सूची (कुछ उदाहरण):

भीमाव्वा शिलेक्याथारा टोगलु गोंबेयाटा (चमड़े की कठपुतली)2024

हिराभाई लखाभाई दाढ़ी लोक चिकित्सा 2023

करियप्पा हुलीप्पा बेल्लाल जैविक खेती 2022

राम सैनी पर्यावरण संरक्षण 2021

डॉ. के. यशवंत आदिवासी साहित्य 2020

पारासुराम खिरे ग्रामीण विज्ञान नवाचार 2019

मेकाथोटी शिवा दलित मानवाधिकार 2018

मोहम्मद शरीफ (लखनऊ) अज्ञात शवों का अंतिम संस्कार 2019

(ऐसी 100 से अधिक कहानियाँ हैं – हर एक, भारत की नई आत्मकथा का अध्याय।)

यह नया भारत है – जहाँ पुरस्कार अब चरित्रवानों को मिलते हैं।

यह मोदी युग है – जहाँ पुरस्कार नहीं बाँटे जाते, इतिहास सँवारा जाता है।

यह वही भारत है – जहाँ भीमाव्वा जैसी माताएं जो कठपुतलियों में रामायण गाती थीं, अब स्वयं भारत की नायिका बन गई हैं।

समाप्ति नहीं, आरंभ:

जब एक झुर्रीदार हथेली पुरस्कार थामती है, तो पूरी सभ्यता झुकती है – यह सम्मान नहीं, यह ऋण चुकाना है।

भारत माता की उन बेटियों और बेटों को अब मंच मिल रहा है – जो बोलते नहीं थे, पर जो दिखा रहे थे कि संस्कृति शोर से नहीं, संकल्प से जिंदा रहती है।

पुरस्कारों की राजनीति अब संस्कृति के ऋषियों तक पहुँची है।

यह तस्वीरें नहीं हैं – यह भारत की आत्मा की पुनर्प्राप्ति है।

जिस दिन भारत ने अपने गुमनाम नायकों को पहचाना, उस दिन से वह फिर विश्वगुरु बनने चला।

( सोशल मीडिया से साभार ।)

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