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अब दिवाली पर नहीं बढ़ेगा प्रदूषण, जानिए क्या हैं ये पर्यावरण-अनुकूल ग्रीन पटाखे और सुप्रीम कोर्ट की
इस दिवाली प्रदूषण नहीं बढ़ेगा, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने सीमित समय में ग्रीन पटाखों की अनुमति दी है। जानिए क्या हैं पर्यावरण-अनुकूल ग्रीन पटाखे, कैसे बनते हैं, पारंपरिक पटाखों से कैसे अलग हैं और सुप्रीम कोर्ट की क्या शर्तें हैं।
Supreme Court Diwali Order (Image Credit-Social Media)
Supreme Court Diwali Order: पर्यावरण संरक्षण की दिशा में किए जा रहे प्रयासों में पिछले कई वर्षों से आतिशबाजी पर प्रतिबंध लागू है। लेकिन इसके बावजूद भी खासकर दिवाली जैसे त्योहारों पर लोग नियम को अनदेखा कर आतिशबाजी जरूर जलाते हैं। जिससे पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचता है। इस समस्या का तोड़ बनकर अब ग्रीन पटाखे चलन में लाए जाने की तैयारियां की जा रहीं हैं। यही वजह है कि दिल्ली-एनसीआर में इस बार दिवाली का जश्न थोड़ा अलग होगा। सुप्रीम कोर्ट ने त्योहार की खुशियों और पर्यावरण की चिंता के बीच संतुलन बनाते हुए ग्रीन पटाखे चलाने की अनुमति दे दी है। कोर्ट के आदेश के अनुसार, लोग 18 से 21 अक्टूबर तक सुबह 6 से 7 बजे और रात 8 से 10 बजे तक ग्रीन पटाखे फोड़ सकेंगे। हर साल दिवाली के बाद दिल्ली-एनसीआर की हवा जहरीली हो जाती है। AQI खतरनाक स्तर तक पहुंच जाता है और सांस लेने तक में परेशानी होने लगती है। स्मॉग, धुआं और राख शहर के ऊपर मोटी परत बना लेते हैं। ऐसे में ग्रीन पटाखे एक बेहतर विकल्प हैं, क्योंकि ये प्रदूषण के स्तर को 25-30 प्रतिशत तक कम कर सकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर लोग तय समय पर और सीमित मात्रा में ग्रीन पटाखों का उपयोग करें तो त्योहार की खुशियां भी बरकरार रहेंगी और वायु गुणवत्ता पर भी ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।लेकिन सवाल यह है कि आखिर ये ग्रीन पटाखे हैं क्या, कैसे बनते हैं और पारंपरिक पटाखों से कैसे अलग हैं? आइए जानते हैं -
क्या होते हैं ग्रीन पटाखे
ग्रीन पटाखे ऐसे पटाखे हैं, जो जलने पर पारंपरिक पटाखों की तुलना में कम धुआं और जहरीली गैसें छोड़ते हैं। इनका निर्माण राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (NEERI) ने किया है। इन पटाखों में एल्युमिनियम, पोटेशियम नाइट्रेट और सल्फर जैसे हानिकारक रसायनों की मात्रा बेहद कम होती है या कई मामलों में ये पूरी तरह अनुपस्थित रहते हैं।
NEERI के अनुसार, ग्रीन पटाखे जलने पर लगभग 40 से 50 प्रतिशत तक कम प्रदूषक गैसें छोड़ते हैं। यही वजह है कि इन्हें पर्यावरण के लिए अपेक्षाकृत सुरक्षित माना जाता है।
क्या है ग्रीन पटाखों का वैज्ञानिक आधार
पारंपरिक पटाखों में बेरियम नाइट्रेट का उपयोग किया जाता है, जो जलने पर भारी मात्रा में नाइट्रोजन और सल्फर ऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसें पैदा करता है। यह गैसें वायु गुणवत्ता को बेहद खराब कर देती हैं। इसके विपरीत, ग्रीन पटाखों में बेरियम का उपयोग नहीं किया जाता।
NEERI ने इन पटाखों के लिए चार वैज्ञानिक फॉर्मूले तैयार किए हैं एक ऐसा फॉर्मूला जो जलने पर थोड़ी मात्रा में जलवाष्प छोड़ता है ताकि धूल और प्रदूषण कम हो, दूसरा जो कम एल्युमिनियम का इस्तेमाल करता है जिससे धुआं घटता है, तीसरा जो कम जहरीली गैसें उत्सर्जित करता है। चौथा जो जलने के बाद हल्की खुशबू फैलाता है ताकि आंखों और सांस में जलन न हो।
पारंपरिक पटाखों से कैसे अलग हैं ग्रीन पटाखे
सामान्य पटाखों और ग्रीन पटाखों के बीच अंतर की बात करें तो सामान्य पटाखे मुख्य रूप से काले पाउडर, क्लोरेट्स और परक्लोरेट्स जैसे केमिकल से बनाए जाते हैं, जबकि ग्रीन पटाखे इन हानिकारक पदार्थों से लगभग मुक्त होते हैं। शोर के मामले में भी ग्रीन पटाखे कानफोडू न होकर बेहद शांत हैं। पारंपरिक पटाखे जहां 160 डेसीबल तक शोर पैदा करते हैं, वहीं ग्रीन पटाखों की आवाज 110 से 125 डेसीबल के बीच रहती है। इसका मतलब है कि ये न केवल हवा को कम प्रदूषित करते हैं बल्कि ध्वनि प्रदूषण भी कम करते हैं। इनकी पहचान भी आसान है। ग्रीन पटाखों की पैकिंग पर ‘Green Cracker’ लेबल, CSIR-NEERI का सर्टिफिकेट और एक QR कोड होता है, जिससे असली और नकली उत्पाद की पहचान की जा सकती है। ये पटाखे केवल प्रमाणित विक्रेताओं के पास ही उपलब्ध होंगे।
ग्रीन पटाखे बनाने वाली फैक्ट्रियों की नियमित जांच के साथ होंगी ये शर्तें
सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीन पटाखों के उपयोग पर कुछ शर्तें भी तय की हैं ताकि इस फैसले का दुरुपयोग न हो। कोर्ट ने निर्देश दिया है कि ग्रीन पटाखे बनाने वाली फैक्ट्रियों की नियमित जांच की जाएगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई निर्माता पुराने, प्रदूषण फैलाने वाले पटाखे न बनाए।
दिल्ली-एनसीआर में बाहरी राज्यों से पटाखे लाने पर रोक होगी। अगर किसी के पास नकली या बिना अनुमति वाले पटाखे पाए गए, तो उसका लाइसेंस तुरंत रद्द कर दिया जाएगा।
साथ ही, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) 18 अक्टूबर से वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) की निगरानी शुरू करेंगे। कोर्ट ने यह भी कहा है कि हवा और पानी के नमूने लिए जाएंगे ताकि त्योहार के दौरान प्रदूषण के प्रभावों का वैज्ञानिक मूल्यांकन किया जा सके।
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