Havoc Of Rising Heat: क्या बढ़ती गर्मी आपको भी बना रही है हिंसक? यहां जानें देश के हर घर का कड़वा सच और चौंकाने वाली रिपोर्ट!

Havoc Of Rising Heat: बढ़ती गर्मी बीच बढ़ रहा घरेलू हिंसा का मामला, जानें घर-घर का कड़वा सच और चौंकाने वाली रिपोर्ट

Newstrack          -         Network
Published on: 6 May 2025 6:34 PM IST
Havoc Of Rising Heat
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Havoc Of Rising Heat (Photo - Social Media)

Havoc Of Rising Heat: आज देशभर में बढ़ते हुए तापमान से हर कोई परेशान है। गर्मी के कारण कहीं पानी की समस्या है तो कहीं पर बिजली की भारी कटौती। कहीं पर हीटस्ट्रोक के कारण लोग अस्पताल का चक्कर काट रहे हैं तो कहीं पर लोग शमशान घाट का। लेकिन, क्या आपको सच में लगता है कि देश भर में लोग केवल बढ़ते तापमान के कारण सिर्फ बिजली और पानी की समस्या परेशान हैं? इस मुद्दे पर आपको एक बार फिर गहनता से सोचने की ज़रूरत है, क्योंकि इन सबके बीच एक बड़ी सच्चाई है जो आपके पसीने और परेशानी के बीच कहीं दबी हुई है।

गर्मी-घरेलू हिंसा के बीच है खतरनाक रिश्ता


देशभर में हर साल तापमान बढ़ रहा है और इससे जुड़ी कई समस्याएं भी सामने आती रहती हैं, जिनपर सभी खुलकर बात करते हैं ताकि समाधान हो सके। जैसे कि हर साल हीटवेव की चेतावनियों के बीच लोग बिजली की भारी कटौती, जल संकट और तमाम बीमारियों की बात करते हैं। लेकिन आपके इर्द-गिर्द एक और बड़ा संकट है जो की शांति से घर की चारदीवारी के अंदर पनप रहा है — हिंसा, तनाव और टूटते रिश्ते। देश में जब-जब मौसम का तापमान बढ़ता है, तब-तब देश भर में घरेलू हिंसा भी बढ़ जाता है। बढ़ती गर्मी और घरेलू हिंसा के बीच एक बेहद खतरनाक रिश्ता बनता जा रहा है जिसे हर कोई अनदेखा करके आगे बढ़ रहा है और ये कोई अटकल नहीं, बल्कि इस धुंधले सच की गवाही एक 'अंतरराष्ट्रीय रिसर्च और डेटा' देता है।

दक्षिण एशिया में हिंसा का उबाल

साल 2023 में प्रसिद्ध मेडिकल जर्नल JAMA Psychiatry में एक रिसर्च हुई थी जिसने दुनिया को हैरत में डाल दिया था। इस अध्ययन में भारत, पाकिस्तान और नेपाल जैसे दक्षिण एशियाई देशों में साल 2010 से लेकर 2018 तक के डेटा को एकत्रित कर खंगाला गया और जो परिणाम सामने आया उसने सभी को हैरान कर दिया था। डाटा के मुताबिक, इन देशों में हर 1°C पारा बढ़ने पर घरेलू हिंसा के मामलों में तकरीबन औसतन 6.3% की बढ़ोतरी दर्ज की गई।

लेकिन भारत में यह आंकड़ा और भी हैरान करने वाला था:

- शारीरिक हिंसा में लगभग 8% की बढ़ोतरी दर्ज

- यौन हिंसा में भी लगभग 7.3% की वृद्धि दर्ज

यानि यह साफ़ होता जा रहा है कि मौसम का बढ़ता तापमान केवल एक पर्यावरणीय समस्या नहीं, बल्कि यह हमारी सामाजिक संरचना को भी बुरी झकझोर रहा है।

गर्मी से बढ़ता गुस्सा


क्यों बढ़ती गर्मी से लोग बनते जा रहे हैं हिंसक? इस सवाल का जवाब आपके पास ही है। जी हाँ, क्यूंकि तापमान बढ़ने से हमारे शरीर पर केवल थकान नहीं आती, बल्कि मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन (Chemical Imbalance In The Brain) भी बढ़ने लगता है। गर्मी में नींद की गुणवत्ता को गिर जाती है, जिससे चिड़चिड़ापन और तनाव उत्पन्न हो जाता है और बढ़ते तापमान के साथ हावी होने लगता है।

CAWC (Canadian Association of Women’s Centres) की एक रिपोर्ट के मुताबिक:

- ज्यादा गर्मी में व्यक्ति का धैर्य कम जाता है

- नींद पूरी नहीं होती, जिससे मानसिक संतुलन बिगड़ता है

- छोटा मुद्दा लगने लगता है गंभीर

इसके अलावा जब किसी घर में पहले से आर्थिक या सामाजिक दबाव बना हुआ हो तो गर्मी की बेचैनी एक चिंगारी की तरह काम करती है, जिससे घर-घर में घरेलू हिंसा की संभावना कई गुना तक बढ़ जाती है।

मानसिक स्वास्थ्य का बढ़ता ताप

गर्मी का सीधा असर मनुष्य के मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) पर भी पड़ता है। जिसके कारण चिचिड़ापन बढ़ता जाता है। Time Magazine में प्रकाशित एक लेख बताता है कि ज्यादा गर्मी से मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है:

- चिंता और अवसाद (anxiety & depression) के मामलों में वृद्धि

- आत्महत्या (suicide) की घटनाओं में इज़ाफ़ा

- नींद की गुणवत्ता में कमी (Decline in sleep quality)

यहां तक की कुछ अध्ययनों से पता चला कि अगर पारा बढ़े, विशेषकर गर्मी के दौरान, तो आत्महत्या की दर में वृद्धि से जुड़ी हो सकती है, 1°F तापमान बढ़ने पर आत्महत्या की दर में 1% तक की बढ़ोतरी देखी जा सकती है। असल में, मानव मस्तिष्क (Human Brain) एक तापमान सीमा में सही तरीके से काम करता है। लेकिन जब यह सीमा टूटती है, तो मानसिक संतुलन खुद ब खुद बिगड़ जाता है और फिर वही व्यक्ति जो सामान्य परिस्थितियों में संयमित रहता है, वो अचानक हिंसक रूप ले लेता है।

घरेलू हिंसा के शिकार


अक्सर घरेलू हिंसा का मामला सामने आता रहता है। क्या आपने कभी सोचा है कि इसका शिकार सबसे ज्यादा कौन लोग होते हैं ? तो आपको बता दे, घर या समाज में जिसकी आवाज़ सबसे कम सुनी जाती है अक्सर वही घरेलू हिंसा के होते हैं, जैसे कि :

1. महिलाएं--- जो अक्सर ही घर में रहकर शारीरिक, मानसिक और आर्थिक मार सहती हैं

2. बच्चे--- जो हिंसा के बीच अपना बचपन जीते हैं जिसके कारण बच्चों के मन पर इसका गहरा असर पड़ता है

3. वरिष्ठ नागरिक--- जिन्हें कई बार अपने ही घर में उपेक्षा, अपमान सहने के साथ गाली-गलौज सुनना पड़ता है

बढ़ते तापमान का घरेलू हिंसा से जुड़ाव

हम अक्सर जलवायु परिवर्तन को केवल पेड़-पौधों, बर्फबारी और समुद्रों के स्तर से जोड़कर देखते हुए आये हैं। लेकिन अब हमें ये बात गंभीरता से समझने की ज़रूरत है कि इसे एक सामाजिक स्तर और मानसिक स्वास्थ्य संकट की तरह भी देखा जाए। इसे समझना इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि जलवायु परिवर्तन का सीधा असर देश में रहने वाले गरीब और वंचित वर्गों पर सबसे पहले और सबसे अधिक पड़ता है। जब भी संसाधनों की कमी होती है जैसे कि- बिजली, पानी, ठंडी राहत भरी जगह, तब सबसे पहले गुस्सा कमजोर लोगों पर ही निकलता है।

क्या है मीडिया और प्रशासन की भूमिका ?

इन समस्याओं के सामने आने बाद ये बेहद आवश्यक हो गया है कि अब मीडिया और प्रशासन इस विषय को गंभीरता से लें। मीडिया को अब मजबूती से आगे आकर गर्मी और घरेलू हिंसा के बीच छिपे इस अत्याचार को उजागर करना चाहिए। गर्मी के मौसम में विशेष हॉटलाइन, सुरक्षा केंद्र और परामर्श सेवाएं शुरू करनी चाहिए। साथ ही स्थानीय प्रशासन को उन जगहों की पहचान करनी चाहिए जहां ज्यादा गर्मी के साथ-साथ घरेलू हिंसा के मामले भी अधिक हैं।

क्या है इसका समाधान ?


देशभर में मौसम के बढ़ते हुए तापमान से हर कोई परेशान है। हर साल बढ़ते तापमान के साथ बिजली की कटौती, पानी की भारी किल्लत और हीटवेव बढ़ता जा रहा है। बारिश भी न्यूनतम हो रही जिसकी वजह से खेतों की फसलें ख़राब हो रही हैं, देश के किसान परेशान हैं। वहीं, भीषण गर्मी के कारण अस्पताल में मरीज़ों की लाइन लम्बी होती जा रही। देश में लगातार गर्मी के कारण होने वाली मौतों में इजाफ़ा हो रहा है। वहीं, 2025 में आईएमडी ने पहले ही अप्रैल से जून तक ज़्यादातर क्षेत्रों में दिन और रात सामान्य से ज़्यादा गर्म होने अलर्ट जारी कर दिया है। समस्या गंभीर है, लेकिन इसका समाधान भी है-

1. सामाजिक जागरूकता अभियान (social awareness campaign):

हाल ही में कई अंतरराष्ट्रीय रिसर्च और रिपोर्ट्स से यह साफ हुआ है कि जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, वैसे-वैसे घरेलू हिंसा, मानसिक तनाव, और आक्रामकता के मामले भी बढ़ जाते हैं। यह एक ऐसा विषय है जिस पर अब खुलकर चर्चा करने की ज़रूरत है, क्योंकि यह न केवल जलवायु परिवर्तन का सामाजिक असर दिखाता है, बल्कि महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा से भी जुड़ा है। अब इस मुद्दे को लेकर लोगों को बताना अति आवश्यक हो गया कि देश का बदलता मौसम हमारे व्यवहार को किस तरह से प्रभावित कर रहा है और इससे बचने के लिए क्या उपाय किया जाना चाहिए।

2. मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं (mental health services):

गर्मी के मौसम में शारीरिक गतिविशि के साथ-साथ दिमागी संतुलन बनाये रखना बेहद ज़रूरी है। ताकि घरेलू हिंसा के बढ़ते मामले पर काबू पाया जा सके। इसके लिए सरकार को लोगों के लिए मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं शुरू करनी चाहिए। जिसके लिए सरकार मानसिक स्वास्थ्य काउंसलिंग, मोबाइल हेल्प यूनिट और ऑनलाइन सपोर्ट का प्रोत्साहन कर सकती ही।

3. महिला सहायता केंद्रों की बढ़ोतरी (Increase in women help centers):

देश में घरेलू हिंसा के बढ़ते मामले को देखते हुए सरकार को महिला सहायता केंद्रों में वृद्धि करना चाहिए ताकि पीड़ितों की समय पर मदद किया जा सके। रिपोर्ट्स के मुताबिक, घरेलू हिंसा के मामले गर्मी के मौसम में बढ़ जाते है और इसका सबसे बड़ा कारण देश में बढ़ता हुआ तापमान है।

4. कूलिंग सेंटर्स का निर्माण (Construction of cooling centers):

देशभर में लोग भीषण गर्मी की मार झेल रहे है। जिसमे गांव से ज्यादा शहरों में रहने वाले लोग अधिक परेशान हैं। तपती धूप में बिना AC के गाड़ी चलाना असंभव हो गया है। तेज़ धूप और भीषण गर्मी से बचने के लिए अब शहरी और ग्रामीण इलाकों में ऐसे स्थान बनाये जाना चाहिए जहां लोग कुछ समय ठंडी जगह पर बिता सकें। इसके लिए सरकार जगह-जगह पर कूलिंग सेंटर्स का निर्माण कराना चाहिए।

5. मानसिक संतुलन का शिक्षा पर प्रभाव (The effect of mental balance on education):

ज्यादा गर्मी का असर बच्चों की शिक्षा पर भी गहरा प्रभाव डालता है। इसीलिए तो मई-जून के महीने में सभी बच्चों के विद्यालयों की गर्मी की छुट्टी की जाती है ताकि भीषण गर्मी में बच्चों की मानसिक स्थिति में कोई दबाव ना बने। स्कूल खुलने तक तेज गर्मी का असर कम हो जाता है जिससे बच्चे अपनी पढ़ाई पर ठीक तरीके से ध्यान दे पाते हैं। इसके साथ ही बच्चों को बचपन से ये सिखाया जाना आवश्यक है कि उनको अपना गुस्सा, चिड़चिड़ापन, तनाव और दबाव में खुद कैसे संभालना चाहिए।

देश का बढ़ता तापमान- एक चेतावनी


देश भर में गर्मी का मौसम ने सबकी हालत और हालात दोनों नाज़ुक बना दिए हैं। लेकिन बढ़ता हुआ तापमान और गर्मी एकमात्र मुद्दा नहीं है, मुद्दा है- देशभर में हो रहे हिंसक बर्ताव, तनाव, आक्रोश, डिप्रेशन, बच्चों की शिक्षा ... जो की गर्मी के कारण ये समस्या घर-घर में पनप रही है। कई रिसर्च में ये पहले ही साफ हो गया है कि तापमान बढ़ने के साथ देश में घरेलू हिंसा के मामले बढ़ रहे हैं और इस गंभीर मुद्दे पर परदा डालना, पीड़ितों की तकलीफों को अनदेखा करना होगा। अब वो दिन दूर नहीं है जब लगभग हर घरों में आपको घरेलू हिंसा के मामले देखने को मिलेंगे और हो सकता है कि भविष्य में आप खुद इसका शिकार बन जाएं। तो समय रहते सतर्क हो जाइये। वक्त आ गया है कि हम ‘गर्मी’ को केवल एक सीजनल मौसम न समझें, बल्कि इसे एक सामाजिक चेतावनी मानें और समाधान करें। यदि हमने समय रहते इसपर ध्यान नहीं दिया, तो वो दिन दूर नहीं है जब यह समस्या एक सामाजिक महामारी का रूप ले लेगी।

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