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महावीर निर्वाण दिवस - दिवाली पर आत्मज्ञान और मोक्ष का दीप जलाने का पर्व
महावीर निर्वाण दिवस 2025, जैन धर्म का प्रमुख पर्व है जो दिवाली के दिन मनाया जाता है। यह वह दिन है जब भगवान महावीर स्वामी ने पावापुरी में मोक्ष प्राप्त किया था। जानिए इस दिन का इतिहास, महत्व और पूजा-विधि, जब आत्मज्ञान और संयम का दीप प्रज्ज्वलित किया जाता है।
Mahavir Nirvana Day 2025 (Image Credit-Social Media)
Mahavir Nirvana Day 2025: भारत में दिवाली का त्योहार जैन धर्म के अनुयायियों के लिए गहन आध्यात्मिक अर्थ रखता है। जहां आमतौर पर दीपावली को धन और समृद्धि का पर्व माना जाता है, वहीं जैन समुदाय के लिए यह महावीर निर्वाण दिवस के रूप में श्रद्धा, संयम और मोक्ष का प्रतीक है। यह वही दिन है जब भगवान महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर ने पावापुरी (बिहार) में अपना देह त्यागकर मोक्ष प्राप्त किया था। वर्ष 2025 में यह पावन दिवस 21 अक्टूबर, मंगलवार को मनाया जाएगा।
कौन थे भगवान महावीर स्वामी?
भगवान महावीर स्वामी का जन्म 599 ईसा पूर्व वैशाली (बिहार) के कुंडलपुर में हुआ था। वे जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे, जिन्होंने मानवता को पांच महान व्रतों में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का संदेश दिया। उन्होंने संसारिक बंधनों से मुक्त होकर आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग दिखाया। उनका पूरा जीवन करुणा, तपस्या और आत्मसंयम का उदाहरण था।
जैन धर्म में निर्वाण का अर्थ और महत्व
जैन दर्शन में ‘निर्वाण’ का अर्थ है, जन्म-मरण के चक्र से पूर्ण मुक्ति, जहाँ आत्मा अनंत ज्ञान, आनंद और शांति की अवस्था को प्राप्त करती है। पावापुरी की पवित्र भूमि पर जब भगवान महावीर ने कार्तिक अमावस्या की रात निर्वाण प्राप्त किया, तब वह दिन समस्त जैन अनुयायियों के लिए शाश्वत स्मरण का प्रतीक बन गया। इसी घटना की स्मृति में दीप जलाए गए, जो आज दीपावली के रूप में मनाए जाते हैं।
जैन धर्म में दीपावली का इतिहास
भगवान महावीर के मोक्ष प्राप्त करने के समय, 18 राजाओं सहित अनेक गण-प्रमुखों और देवताओं ने पावापुरी में दीप जलाए थे। उन्होंने कहा कि आज ज्ञान का सूर्य अस्त हो गया, अतः हम उस प्रकाश की स्मृति में दीप जलाएंगे।
तभी से दीपावली जैन धर्मावलंबियों के लिए केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि ज्ञान और मोक्ष का प्रतीक पर्व बन गया। जैन परंपरा में दीपक जलाना केवल रोशनी का नहीं, बल्कि आत्मज्ञान के उजाले का प्रतीक है।
कैसे मिला गौतम स्वामी को कैवल्य ज्ञान?
दीपावली की अगली सुबह कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा, जिसे हिंदू धर्म में गोवर्धन पूजा कहा जाता है। जैन परंपरा में विशेष महत्व रखती है। इस दिन भगवान महावीर के प्रधान शिष्य गौतम गणधर स्वामी को कैवल्य ज्ञान या पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इस प्रकार, दिवाली जैन धर्म में दोहरी आध्यात्मिक घटना का प्रतीक है। पहला भगवान महावीर का निर्वाण और दूसरा गौतम स्वामी का ज्ञानोदय।
जैन मंदिरों में रहता है विशेष पूजा-अर्चना का माहौल
जैन मंदिरों में इस दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। भगवान महावीर को निर्वाण लाडू चढ़ाया जाता है। गोल आकार का यह लाडू मोक्ष की अनंतता और पूर्णता का प्रतीक होता है। मंदिरों में सैकड़ों दीप जलाए जाते हैं और भगवान महावीर के उपदेशों का पाठ किया जाता है। महावीर निर्वाण दिवस केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और तपस्या का दिन है। इस दिन जैन अनुयायी उपवास रखते हैं, ध्यान करते हैं और भगवान महावीर के उपदेशों पर मनन करते हैं। उनका उद्देश्य होता है कि बाहर की रोशनी नहीं, भीतर के अंधकार को मिटाना।
जैन व्यापारी करते हैं नए वर्ष और व्यापार का आरंभ
जैन व्यापारी समुदाय के लिए दीपावली का दिन नए लेखा-वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है। शाम के समय वे अपने नए बही-खातों (लेखा पुस्तकों) का शुभ मुहूर्त करते हैं, जिसे चोपड़ पूजन कहा जाता है। यह केवल व्यापारिक परंपरा नहीं, बल्कि सत्कर्म और ईमानदारी से नए आरंभ का प्रतीक माना जाता है। इस दिन भक्त विशेष मंत्रों का जाप करते हैं, जैसे- ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं महावीर जिनेन्द्राय नमः, ॐ श्री महावीराय नमः।
इन मंत्रों का उच्चारण आत्मिक शांति, ध्यान और मोक्ष मार्ग की प्रेरणा देता है।
महावीर निर्वाण दिवस यह सिखाता है कि असली ‘दीपावली’ तब होती है, जब हम भीतर के अज्ञान के अंधकार को मिटाकर आत्मज्ञान का दीप जलाते हैं।
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