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Lakadong Haldi History: लकाडॉन्ग हल्दी में क्या है ऐसा खास, जो इसे बनाता है मेघालय की पहचान, आइए जानें इसके बारे में

Meghalaya Lakadong Haldi History: मेघालय की हल्दी, जिसे स्थानीय भाषा में "लकाडॉन्ग हल्दी" के नाम से जाना जाता है, अपनी गहरी सुनहरी रंगत और तीखी सुगंध के लिए मशहूर है।

Akshita Pidiha
Published on: 6 July 2025 7:29 PM IST
Meghalaya Lakadong Haldi History
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Meghalaya Lakadong Haldi History: मेघालय की हल्दी, जिसे स्थानीय भाषा में "लकाडॉन्ग हल्दी" के नाम से जाना जाता है, अपनी गहरी सुनहरी रंगत और तीखी सुगंध के लिए मशहूर है। इस हल्दी में करक्यूमिन (curcumin) की मात्रा 7-12% तक होती है, जो सामान्य हल्दी से कहीं ज्यादा है। करक्यूमिन वो जादुई तत्व है, जो हल्दी को उसका औषधीय गुण देता है। मेघालय की लकाडॉन्ग हल्दी को दुनिया की सबसे बेहतरीन हल्दी में से एक माना जाता है और इसका स्वाद व सुगंध इसे खास बनाते हैं।

मेघालय का जयन्तिया हिल्स (Jaintia Hills) इलाका इस हल्दी का मुख्य उत्पादन केंद्र है। यहाँ की मिट्टी, जो खनिजों से भरपूर है और बारिश से भरा मौसम, हल्दी की खेती के लिए आदर्श स्थिति बनाता है। लेकिन इस हल्दी की कहानी सिर्फ मिट्टी और मौसम तक सीमित नहीं है। इसके पीछे है स्थानीय खासी और जयन्तिया समुदायों की मेहनत, उनकी परंपराएँ और प्रकृति के साथ उनका गहरा रिश्ता।

हल्दी की खेती: प्रकृति और मेहनत का संगम


मेघालय में हल्दी की खेती कोई नई बात नहीं है। यहाँ के आदिवासी समुदाय सदियों से हल्दी उगा रहे हैं। खासकर जयन्तिया हिल्स के लकाडॉन्ग, लास्केन और शांगपुंग गाँवों में हल्दी की खेती एक परंपरा है। यहाँ के किसान जैविक खेती (organic farming) करते हैं, यानी बिना किसी रासायनिक खाद या कीटनाशक के।

हल्दी की खेती की प्रक्रिया कुछ इस तरह होती है:

रोपण: हल्दी की खेती मार्च-अप्रैल में शुरू होती है। किसान हल्दी के rhizomes (जड़ों) को चुनते हैं और उन्हें खेतों में बोते हैं। मेघालय की लाल-दोमट मिट्टी और भारी बारिश इस फसल को पनपने में मदद करती है।

देखभाल: हल्दी को बढ़ने में 7-9 महीने लगते हैं। इस दौरान किसान खेतों की निराई-गुड़ाई करते हैं और प्राकृतिक खाद का इस्तेमाल करते हैं। मेघालय में बारिश इतनी होती है कि सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती।

कटाई: नवंबर-दिसंबर में जब हल्दी की पत्तियाँ सूखने लगती हैं, तब जड़ों को खोदकर निकाला जाता है। ये जड़ें ही असली हल्दी होती हैं।

प्रसंस्करण: कटाई के बाद हल्दी को धोया जाता है, उबाला जाता है, सुखाया जाता है और फिर पीसकर पाउडर बनाया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में रासायनिक हस्तक्षेप शून्य होता है, जिससे हल्दी की शुद्धता बनी रहती है।

यह प्रक्रिया आसान लगती है, लेकिन इसमें मेहनत बहुत लगती है। मेघालय के किसान, खासकर महिलाएँ, इस काम में सबसे ज्यादा योगदान देती हैं। गाँव की महिलाएँ सुबह से शाम तक खेतों में काम करती हैं और उनकी मेहनत इस हल्दी को वो खासियत देती है।

लकाडॉन्ग हल्दी की खासियत


लकाडॉन्ग हल्दी को दुनिया भर में क्यों पसंद किया जाता है? इसके पीछे कई कारण हैं:

उच्च करक्यूमिन सामग्री: सामान्य हल्दी में करक्यूमिन 2-5% होता है, लेकिन लकाडॉन्ग हल्दी में ये 7-12% तक होता है। ये इसे औषधीय गुणों में बेजोड़ बनाता है।

जैविक खेती: मेघालय की हल्दी पूरी तरह जैविक होती है। इसमें कोई रासायनिक खाद या कीटनाशक नहीं होता, जिससे ये स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित है।

स्वाद और सुगंध: इस हल्दी का स्वाद तीखा और सुगंध गहरी होती है। ये खाने में सिर्फ रंग ही नहीं, बल्कि एक अनोखा जायका भी जोड़ती है।

सांस्कृतिक महत्व: मेघालय के खासी और जयन्तिया समुदायों में हल्दी का इस्तेमाल सिर्फ खाने में नहीं, बल्कि पूजा-पाठ, शादी-विवाह और औषधीय उपचार में भी होता है।

हल्दी का औषधीय महत्व

हल्दी को भारत में "गोल्डन स्पाइस" कहा जाता है और मेघालय की हल्दी इस नाम को पूरी तरह सही ठहराती है। आयुर्वेद में हल्दी को एक चमत्कारी औषधि माना जाता है। मेघालय की हल्दी के कुछ खास फायदे हैं:

एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण: करक्यूमिन में सूजन कम करने की शक्ति होती है। ये गठिया, जोड़ों के दर्द और मांसपेशियों की सूजन में राहत देता है।

एंटी-ऑक्सीडेंट: ये शरीर से हानिकारक फ्री रेडिकल्स को हटाता है, जिससे कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा कम होता है।

प्रतिरक्षा बढ़ाने में मदद: हल्दी दूध (हल्दी वाला दूध) सर्दी-खाँसी और इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए मशहूर है। मेघालय की हल्दी इस मामले में और भी प्रभावी है।

पाचन में सुधार: हल्दी पाचन तंत्र को मजबूत करती है और पेट की समस्याओं को दूर करती है।

त्वचा के लिए फायदेमंद: मेघालय की हल्दी का इस्तेमाल फेस मास्क और स्किनकेयर में भी होता है। ये त्वचा को चमक देता है और मुहाँसों को कम करता है।

मेघालय के लोग हल्दी को न सिर्फ खाने में, बल्कि पारंपरिक चिकित्सा में भी इस्तेमाल करते हैं। जैसे कि जयन्तिया समुदाय में, हल्दी को शहद के साथ मिलाकर घाव भरने के लिए लगाया जाता है।

सांस्कृतिक महत्व और परंपराएँ


मेघालय की हल्दी सिर्फ एक मसाला या औषधि नहीं है, बल्कि ये यहाँ की संस्कृति का हिस्सा है। खासी और जयन्तिया समुदायों में हल्दी का इस्तेमाल कई रीति-रिवाजों में होता है:

शादी-विवाह: शादी में दूल्हा-दुल्हन को हल्दी लगाने की रस्म मेघालय में भी प्रचलित है। ये न सिर्फ त्वचा को निखारता है, बल्कि बुरी नजर से बचाने का प्रतीक भी माना जाता है।

पूजा-पाठ: हल्दी को पवित्र माना जाता है। इसे पूजा में चढ़ाया जाता है और कई धार्मिक अनुष्ठानों में इस्तेमाल किया जाता है।

पारंपरिक नृत्य और उत्सव: मेघालय के प्रसिद्ध नोंगक्रेम नृत्य उत्सव में हल्दी का इस्तेमाल सजावट और भोजन में होता है।

आर्थिक और सामाजिक प्रभाव

मेघालय की हल्दी ने स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूत किया है। लकाडॉन्ग हल्दी को 2015 में GI टैग (Geographical Indication) मिला, जिसने इसे वैश्विक बाजार में एक खास पहचान दी। आज ये हल्दी अमेरिका, यूरोप और जापान जैसे देशों में निर्यात की जाती है।

किसानों की आय: हल्दी की खेती ने जयन्तिया हिल्स के किसानों की आय बढ़ाई है। कई गाँवों में हल्दी अब मुख्य नकदी फसल बन गई है।

महिलाओं का योगदान: मेघालय में हल्दी की खेती और प्रसंस्करण में महिलाएँ अहम भूमिका निभाती हैं। इससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हुई है।

सहकारी समितियाँ: कई सहकारी समितियाँ, जैसे लकाडॉन्ग टर्मेरिक फार्मर्स कोऑपरेटिव, किसानों को बेहतर कीमत और बाजार तक पहुँच दिलाने में मदद करती हैं।

चुनौतियाँ और भविष्य

हालाँकि मेघालय की हल्दी की मांग बढ़ रही है, लेकिन कुछ चुनौतियाँ भी हैं:

बाजार तक पहुँच: कई गाँवों में सड़क और परिवहन की सुविधाएँ सीमित हैं, जिससे हल्दी को बड़े बाजारों तक ले जाना मुश्किल होता है।

जलवायु परिवर्तन: अनियमित बारिश और मौसम में बदलाव हल्दी की खेती को प्रभावित कर सकते हैं।

जागरूकता की कमी: कई लोग अभी भी लकाडॉन्ग हल्दी की खासियत से अनजान हैं। इसके प्रचार-प्रसार की जरूरत है।

भविष्य में, मेघालय की सरकार और NGO मिलकर हल्दी के उत्पादन और मार्केटिंग को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के जरिए इस हल्दी को अब सीधे उपभोक्ताओं तक पहुँचाया जा रहा है।

मेघालय की हल्दी सिर्फ एक मसाला नहीं, बल्कि एक कहानी है - प्रकृति की देन, किसानों की मेहनत और संस्कृति की विरासत। इसका सुनहरा रंग और तीखी सुगंध न सिर्फ खाने को स्वाद देती है, बल्कि स्वास्थ्य को बेहतर बनाती है और मेघालय की पहचान को दुनिया तक ले जाती है। अगली बार जब आप अपनी रसोई में हल्दी डालें, तो एक बार मेघालय की लकाडॉन्ग हल्दी को जरूर आजमाएँ। ये न सिर्फ आपके खाने को स्वाद देगी, बल्कि आपको बादलों के उस राज्य की कहानी भी सुनाएगी, जहाँ प्रकृति और इंसान मिलकर कुछ अनमोल रचते हैं।

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