Nautapa 2025: नौतपा ...ताप और तप और दानपुण्य का प्रतीक, प्रकृति के साथ तालमेल का विशेष समय

Nautapa 2025: इस साल नौतपा 25 मई से शुरू होकर 2 जून तक चलेगा। भारतीय जनजीवन में इन नौ दिनों का न केवल ज्योतिषीय और धार्मिक महत्व है...

Jyotsana Singh
Published on: 23 May 2025 10:01 PM IST
Nautapa 2025 Start and End Date
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Nautapa 2025 Start and End Date 

Nautapa 2025: जब भगवान भास्कर अपने पूर्ण ओज पर होते हैं जिसके प्रभाव से धरती तपने लगती है। तब समझ लीजिए कि नौतपा की शुरुआत हो चुकी है। यह ज्येष्ठ मास के वे नौ दिन होते हैं। जब सूर्य देव रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करते हैं और धरती का तापमान अपने चरम पर होता है। इस साल नौतपा 25 मई से शुरू होकर 2 जून तक चलेगा। भारतीय जनजीवन में इन नौ दिनों का न केवल ज्योतिषीय और धार्मिक महत्व है, बल्कि ये प्रकृति के साथ हमारे गहरे संबंध और मानसून के पूर्वानुमान से भी जुड़े हैं। यह वह समय है जब हम प्रकृति के संकेतों को समझते हैं। उसके साथ तालमेल बिठाते हैं। और आने वाले समय की तैयारियों में जुट जाते हैं। यह सिर्फ गर्मी के दिन नहीं बल्कि जीवन चक्र को समझने का एक महत्वपूर्ण अवसर है।

भारतीय लोकसंस्कृति में नौतपा से जुड़ी कहावतें और उनके गहरे अर्थ अपना महत्व रखते हैं। जिनके माध्यम से सदियों से हमारे पूर्वजों ने प्रकृति के इस चक्र को करीब से देखा और समझा है। उनके अनुभवों से निकली कहावतें आज भी हमें नौतपा के महत्व और उसके प्रभावों से अवगत कराती हैं। लोक मान्यता और ग्रामीण मौसम विज्ञान कहता है कि जितना अधिक तपन इन नौ दिनों में होगा, उतनी ही अच्छी वर्षा मानसून में होगी। कारण यह है कि तीव्र गर्मी के कारण समुद्र और भूमि से वाष्पन तेज़ी से होता है। जो बादलों के निर्माण में सहायक होता है।


इससे जुड़ी एक मारवाड़ी कहावत बेहद प्रचलित हैं। यह कहावत केवल मौखिक परंपरा नहीं, बल्कि मौसम विज्ञान, कृषि और स्वास्थ्य के लिए गहरी समझ को दर्शाती है-

‘दोए मूसा, दोए कातरा, दोए तिड्डी, दोए ताव। दोयां रा बादी जळ हरै, दोए बिसर, दोए बाव।'

यह मारवाड़ी कहावत नौतपा के दौरान चलने वाली हवा (लू) के महत्व को बखूबी समझाती है। इसका अर्थ है: पहले दो दिन हवा (लू) न चले तो चूहे अधिक होंगे। यदि नौतपा के शुरुआती दो दिनों में तेज हवा नहीं चलती, तो यह चूहों के अधिक होने का संकेत है। तेज गर्मी और लू चूहों के प्रजनन चक्र को प्रभावित करती है, जिससे उनकी संख्या नियंत्रित रहती है।


यदि दूसरे दो दिन हवा न चले तो कातरे (फसलों को नष्ट करने वाले कीट) बहुत होंगे। तेज गर्मी इन कीटों के अंडों को नष्ट करने में सहायक होती है। तीसरे दो दिन हवा न चले तो टिड्डी दल के हमले की आशंका बढ़ जाती है। टिड्डी दल किसानों के लिए एक बड़ा संकट होता है। चौथे दिन हवा न चले तो बुखार आदि रोगों का प्रकोप रहता है। गर्मी के इस प्रकोप में यदि लू न चले तो यह बीमारियों, विशेषकर बुखार आदि के फैलने का कारण बन सकता है।

पांचवे दो दिन हवा न चले, तो अल्प वर्षा यदि इस अवधि में भी हवा का अभाव रहे, तो यह आने वाले मानसून में कम बारिश का संकेत होता है। छठे दो दिन लू न चले तो जहरीले जीव-जन्तुओं (सांप-बिच्छू आदि) की बहुतायत यानी इस दौरान लू न चलने पर सांप और बिच्छू जैसे जहरीले जीवों की संख्या बढ़ने की संभावना रहती है।

सातवें दो दिन यदि हवा न चले, तो भविष्य में तेज आंधी-तूफान आने की संभावना रहती है। सरल शब्दों में कहें तो, यह कहावत इस बात पर जोर देती है कि नौतपा में जितनी अधिक गर्मी पड़ेगी, चूहों, कीटों और अन्य जहरीले जीव-जंतुओं के अंडे उतने ही अधिक नष्ट होंगे, क्योंकि यह उनका प्रजनन काल होता है। तेज गर्मी प्रकृति में एक संतुलन बनाए रखने में मदद करती है।

इसी तरह की एक और कहावत लोकोक्तियों में बेहद प्रचलित है -


‘पैली रोहण जळ हरै, बीजी बोवोतर खायै। तीजी रोहण तिण खाये, चौथी समदर जायै।'

यह कहावत रोहिणी नक्षत्र में होने वाली संभावित वर्षा और उसके प्रभावों का वर्णन करती है।

इसके अनुसार रोहिणी नक्षत्र के पहले हिस्से में वर्षा हो तो अकाल की सम्भावना रहती है। यदि रोहिणी नक्षत्र के शुरुआती दिनों में बारिश हो जाती है। तो इसे शुभ नहीं माना जाता। यह अकाल या कम वर्षा का संकेत हो सकता है। यदि दूसरे हिस्से में बारिश हो, तो बहुत दिनों में बूंदें पड़ती है। यदि दूसरे हिस्से में बारिश होती है, तो इसका अर्थ है कि पहली वर्षा के बाद दूसरी वर्षा होने में काफी समय लगेगा, जिसे 'जांजळी' पड़ना कहते हैं।

इसी प्रकार यदि तीसरे हिस्से में बारिश हो तो घास का अभाव रहता है। इस अवधि में बारिश होने पर घास की कमी हो सकती है जिससे पशुओं के लिए चारे की समस्या उत्पन्न होती है।

और चौथे हिस्से में बादल बरसें तो अच्छी वर्षा की उम्मीद रखनी चाहिए। यदि रोहिणी नक्षत्र के अंतिम चरण में बारिश होती है तो यह आने वाले मानसून के लिए एक शुभ संकेत है और अच्छी वर्षा की उम्मीद जगाती है।

इस कड़ी में एक और प्रचलित कहावत के बारे में जानते हैं -

‘रोहण तपै, मिरग बाजै। आदर अणचिंत्या गाजै'

यह कहावत मानसून की भविष्यवाणी को लेकर एक और महत्वपूर्ण संकेत देती है - यदि रोहिणी नक्षत्र में गर्मी अधिक हो तथा मृग नक्षत्र में खूब आंधी चले तो इसका अर्थ है कि यदि नौतपा के दौरान प्रचंड गर्मी पड़ती है और उसके बाद मृगशिरा नक्षत्र में तेज आंधी-तूफान आते हैं। यह एक विशेष संयोजन है।


इस प्रकार आर्द्रा नक्षत्र के लगते ही बादलों की गरज के साथ वर्षा होने की संभावना बन सकती है। यानी यह संयोजन आर्द्रा नक्षत्र के आते ही जोरदार बारिश और बादलों की गरज के साथ मानसून के आगमन का संकेत देता है।

इन कहावतों से स्पष्ट होता है कि हमारे पूर्वजों ने नौतपा को केवल गर्मी के रूप में नहीं बल्कि आने वाले मानसून के संकेतों को समझने के एक महत्वपूर्ण समय के रूप में देखा है। यदि अच्छी वर्षा चाहिए तो हमें इस तापमान को सहन करने की आवश्यकता है। लेकिन साथ ही लू से अपना बचाव करना और पर्याप्त मात्रा में पानी पीते रहना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

नौतपा का धार्मिक, ज्योतिषीय और वैज्ञानिक महत्व

नौतपा केवल गर्मी के नौ दिन नहीं हैं, बल्कि इनका गहरा ज्योतिषीय, धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी है। यह समय सूर्य देव की उपासना, दान-पुण्य और प्रकृति के चक्र को समझने का एक महत्वपूर्ण अवसर है।

पृथ्वी और सूर्य की निकटता: वैज्ञानिक दृष्टिकोण

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मई के अंत और जून की शुरुआत में पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी अपेक्षाकृत कम होती है।


जिससे पृथ्वी पर सूर्य की किरणें सीधी और तीव्र पड़ती हैं। यही कारण है कि इन दिनों में भीषण गर्मी महसूस होती है। यह खगोलीय घटना नौतपा को वैज्ञानिक आधार प्रदान करती है।

सूर्य का रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश ज्योतिषीय पहलू

नौतपा उस समय शुरू होता है जब सूर्य रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करता है। रोहिणी नक्षत्र का स्वामी चंद्रमा है, जो शीतलता का प्रतीक है। हालांकि, सूर्य का इस नक्षत्र में आना पृथ्वी पर उसकी किरणों की सीधी और तीव्र गर्मी लाता है। जिससे तापमान में वृद्धि होती है। ज्योतिष शास्त्र में इसे ग्रहों के गोचर का एक महत्वपूर्ण चरण माना जाता है, जिसके प्रभाव से धरती का ताप बढ़ता है।

मानसून का पूर्वानुमान एक प्राकृतिक संकेत

यह एक स्थापित मान्यता है कि नौतपा के शुरुआती 9 दिनों में जितनी अधिक गर्मी पड़ती है। मानसून या बारिश भी उतनी ही अच्छी होती है।


इसके पीछे का वैज्ञानिक तर्क यह है कि तेज गर्मी से समुद्र और भूमि से नमी तेजी से वाष्पित होती है। जो मानसून के बादलों के निर्माण में सहायक होती है। यह वाष्पीकरण जितनी अधिक मात्रा में होगा उतनी ही घनी वर्षा होने की संभावना होती है। इसलिए नौतपा को आने वाले वर्षाकाल का एक प्राकृतिक सूचक माना जाता है।

सूर्य देव की उपासना और दान-पुण्य

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नौतपा के दौरान भगवान सूर्य देव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। उन्हें जल चढ़ाना, उनके मंत्रों का जाप करना और दान करना इस अवधि में अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इससे सूर्य देव प्रसन्न होते हैं और शुभ फल प्रदान करते हैं। यह समय आध्यात्मिक शुद्धि और दान के माध्यम से पुण्य कमाने का भी होता है।

नौतपा में दान और पुण्य का महत्व

नौतपा के नौ दिनों में दान करना अत्यंत पुण्यकारी माना गया है। इस दौरान दान करने से ग्रहों की शांति होती है और कष्टों से मुक्ति मिलती है।

जल का दान

गर्मी में सबसे महत्वपूर्ण दान जल का है। राहगीरों को पानी पिलाना, प्याऊ लगवाना, या किसी भी रूप में जल उपलब्ध कराना अत्यंत पुण्यकारी माना गया है।

मौसमी फल और सत्तू का दान

गर्मी से राहत देने वाले मौसमी फल जैसे तरबूज, खरबूजा, खीरा आदि का दान करना शुभ होता है।

सूती वस्त्र और शीतल पदार्थ का दान

हल्के रंग के सूती वस्त्र, मटका, हाथ का पंखा, छाता और शीतल पदार्थों जैसे दही, शरबत, नींबू पानी का दान करना भी बहुत पुण्यकारी माना जाता है।

अन्न दान

अन्न दान सदैव ही महादान माना गया है। नौतपा के दौरान जरूरतमंदों को अन्न दान करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि ऐसा करने से जन्मकुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत होती है और व्यक्ति को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

नौतपा में खानपान और जीवनशैली कैसी हो

नौतपा की तेज गर्मी का प्रभाव न केवल मौसम पर बल्कि लोगों के स्वास्थ्य और मन पर भी पड़ता है। इसलिए इस दौरान अपने शरीर और मन को शांत रखने के लिए विशेष ध्यान देने की सलाह दी जाती है।

हल्का भोजन और शीतल पदार्थों का सेवन

इस दौरान भारी, तैलीय और मसालेदार भोजन से बचना चाहिए। हल्का और सुपाच्य भोजन हल्का, सुपाच्य भोजन जैसे दाल-चावल, खिचड़ी ग्रहण करें।

शीतल पेय

बेल का शरबत, जलजीरा, नींबू पानी, नारियल पानी, गुलाब शरबत, लस्सी, फलों का रस आदि का सेवन करना चाहिए।

जल का सेवन

शरीर को हाइड्रेटेड रखने के लिए दिन भर पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं।

तामसिक चीजों से बचें

इन दिनों में लहसुन, प्याज आदि तामसिक चीजों के सेवन से बचना चाहिए।

सूती वस्त्र और घरों में रहना

नौतपा के दौरान हल्के रंग के सूती वस्त्र धारण करें। जो गर्मी को कम अवशोषित करते हैं और शरीर को ठंडक प्रदान करते हैं। साथ ही तेज धूप के दौरान अनावश्यक रूप से घरों से बाहर निकलने से बचें। विशेषकर दोपहर 12 बजे से शाम 4 बजे तक घर के अंदर ही रहें।

शरीर पर चंदन का लेप

शरीर पर चंदन का लेप लगाना या चंदन का तिलक लगाना भी गर्मी से राहत दिलाता है और मन को शांत रखता है।

शुभ कार्यों से बचाव की मान्यता

कुछ मान्यताएं यह भी कहती हैं कि नौतपा के दौरान कुछ शुभ कार्य जैसे विवाह, मुंडन आदि नहीं किए जाने चाहिए। क्योंकि इस समय मौसम की तीव्रता अप्रत्याशित हो सकती है। हालांकि, यह एक पारंपरिक मान्यता है और लोग अपनी सुविधानुसार इसका पालन करते हैं।

नौतपा सिर्फ गर्मी के नौ दिन नहीं हैं, बल्कि यह प्रकृति के साथ हमारे तालमेल को समझने, सूर्य देव की उपासना करने और दान-पुण्य के माध्यम से स्वयं को शुद्ध करने का एक महत्वपूर्ण समय है। यह हमें सिखाता है कि कैसे हम प्रकृति के संकेतों को समझकर अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं और आने वाली चुनौतियों का सामना कर सकते हैं। नौतपा भारतीय परंपरा का वह अध्याय है, जिसमें विज्ञान, ज्योतिष, कृषि, धर्म और जीवनशैली का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है।

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