Marwar Queen History: जानिए क्यों मारवाड़ की रानी जीवनभर राजा से रूठी रही

Rajasthan Marwar Queen History: रानी उमादे को राजस्थान के इतिहास में रूठी रानी के नाम से अमर हो गई ।

Shivani Jawanjal
Published on: 13 Sept 2025 8:12 PM IST
Rajasthan Marwar Queen History
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Rajasthan Marwar Queen History (Photo - Social Media)

Rajasthan Marwar Queen History: राजस्थान का इतिहास साहस, त्याग और आत्मसम्मान की कहानियों से भरा पड़ा है। यहाँ के किलों, हवेलियों और लोकगीतों में आज भी राणा, राव और रानियों के शौर्य के किस्से गाए जाते हैं। इन्हीं में से एक दिलचस्प कहानी है मारवाड़ के वीर शासक राव मालदेव और उनकी पत्नी रानी उमादे की जिन्हें 'रूठी रानी' कहा जाता है। राव मालदेव ने अपने साहस और रणनीति से मारवाड़ का विस्तार किया और शेरशाह सूरी जैसे ताकतवर शासक को चुनौती दी। वहीं रानी उमादे ने अपने स्वाभिमान को सबसे ऊपर रखा और अपने फैसलों से इतिहास में एक खास जगह बना ली। आइए विस्तार से जानते हैं इस अनोखी कथा को।

राव मालदेव - मारवाड़ का शेर

राव मालदेव मारवाड़ के एक महान योद्धा और शक्तिशाली शासक थे। उनका जन्म 5 दिसंबर 1511 को हुआ था। वे राठौड़ वंश के नेता राव गंगा के पुत्र थे और 5 जून 1532 1532 में मारवाड़ की गद्दी पर बैठे। राव मालदेव ने अपने शासनकाल के दौरान मारवाड़ की सीमा का व्यापक विस्तार किया और इसे एक सशक्त साम्राज्य बनाया। उनके समय में मारवाड़ के अधीन करीब 58 परगने और कई बड़े क्षेत्र थे।राव मालदेव ने अपने साहस और रणनीति से नागौर, बीकानेर, अजमेर, सिरोही, जैसलमेर (भाटी इलाका सहित), जोधपुर और आसपास के कई कस्बों को अपने राज्य में मिला लिया। उनकी उपलब्धियों के कारण मारवाड़ का क्षेत्र लगभग दोगुना हो गया और इसमें आज के राजस्थान के करीब 40 जिले और हरियाणा व दिल्ली के आस-पास के कुछ इलाके भी शामिल हो गए।

राव मालदेव को उनकी अद्भुत वीरता, रणनीति और प्रशासनिक कौशल के लिए जाना जाता है। उन्होंने शेरशाह सूरी जैसे शक्तिशाली शासकों के साथ भी साहसपूर्वक मुकाबला किया। उनके शासनकाल को मारवाड़ का 'शौर्य युग' कहा जाता है। वे न केवल एक महान योद्धा थे, बल्कि एक कुशल प्रशासक भी थे, जिन्होंने किलों का निर्माण करवाया, कृषि और व्यापार को बढ़ावा दिया और न्याय व्यवस्था को मजबूत किया।

शेरशाह सूरी से संघर्ष

भारतीय इतिहास में राव मालदेव का नाम सबसे ज्यादा सुमेलगिरि या गिरी-सुमेल के युद्ध से जुड़ा है जो 1544 में लड़ा गया था (कुछ इतिहासकार इसे 1543 भी बताते हैं)। इस युद्ध में राव मालदेव की सेना लगभग 50,000 सैनिकों की थी, लेकिन असली लड़ाई राठौड़ सेनापति जैता और कूपा के नेतृत्व में करीब 8,000 वीर सैनिकों ने लड़ी। शेरशाह सूरी की सेना इससे कहीं बड़ी, लगभग 80,000 सैनिकों की थी। राव मालदेव ने इस विशाल सेना को कड़ी टक्कर दी और शेरशाह को भारी नुकसान उठाना पड़ा। यहां तक कि शेरशाह ने कहा था "अगर आज मैं हार जाता, तो हिंदुस्तान में मेरा नाम लेने वाला कोई नहीं बचता।" यह राव मालदेव की वीरता का सबसे बड़ा प्रमाण माना जाता है। हालांकि, युद्ध के बीच शेरशाह ने छल से नकली पत्र भेजे, जिससे राव मालदेव को अपने ही सरदारों पर शक हो गया और वे मुख्य सेना के साथ पीछे हट गए। इसके बावजूद जैता और कूपा ने अपने 8,000 सैनिकों के साथ अकेले युद्ध लड़ा और वीरगति को प्राप्त हुए।

रानी उमादे - स्वाभिमान की प्रतिमूर्ति

रानी उमादे या उमादे भटियाणी मारवाड़ के प्रसिद्ध राठौड़ शासक राव मालदेव की पत्नी थीं। वे जैसलमेर के राजा रावल लूणकरण की पुत्री थीं।उनका विवाह राव मालदेव से एक राजनीतिक और राजकीय कारणों से हुआ था, जिससे दोनों राज्यों के बीच संबंध मजबूत हुए। लेकिन शादी की पहली रात ही एक घटना ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। कहा जाता है कि राव मालदेव गलती से अपनी दुल्हन के पास जाने के बजाय उनकी दासी भारमली के पास चले गए। यह घटना रानी उमादे के लिए बेहद अपमानजनक थी और उन्होंने इसे अपने आत्मसम्मान का सवाल बना लिया। वे जीवनभर राव मालदेव से रूठी रहीं और इसलिए उन्हें "रूठी रानी" कहा जाने लगा। राव मालदेव ने कई बार उन्हें मनाने की कोशिश की, लेकिन रानी उमादे ने पति से दूरी बनाए रखी। वे अपने cc यह कहानी राजस्थान के इतिहास में सम्मान और स्वाभिमान की मिसाल के रूप में आज भी याद की जाती है।

विवाह के बाद राव मालदेव का जीवन

राव मालदेव के निजी जीवन में भले ही रानी उमादे से दूरियाँ रहीं, लेकिन इससे उनके राजनीतिक और सैन्य जीवन पर कोई असर नहीं पड़ा। उन्होंने विवाह के बाद भी मारवाड़ की सीमाओं का विस्तार जारी रखा और राज्य को और मजबूत बनाया। 1544 के सुमेलगिरि युद्ध में शेरशाह सूरी से हारने के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और मारवाड़ को आर्थिक रूप से समृद्ध और सुरक्षित बनाया। उन्होंने कई किलों को मजबूत कराया, जिनमें जोधपुर का प्रसिद्ध मेहरानगढ़ किला भी शामिल है, जिसे उन्होंने और भव्य बनाया। राव मालदेव को उनकी बहादुरी के कारण 'मारवाड़ का शेर' कहा जाता था और उनका शासनकाल मारवाड़ का 'शौर्य युग' माना जाता है। हालांकि 7 नवंबर 1562 को उनका निधन हो गया।

रूठी रानी का स्वाभिमान और अंत

रानी उमादे जो जीवनभर अपने पति राव मालदेव से रूठी रहीं, वे उनके प्रति अपने कर्तव्य और सम्मान को कभी नहीं भूलीं। जब 7 दिसंबर 1562 को राव मालदेव का निधन हुआ, तो रानी उमादे ने पति के प्रति अपनी निष्ठा का अंतिम प्रमाण देते हुए सती प्रथा का पालन किया।

यह निर्णय उस समय के राजपूत समाज में स्त्री-सम्मान और वैवाहिक निष्ठा का अद्वितीय आदर्श बन गया। रानी उमादे की यह कथा राजस्थान की लोककथाओं, गीतों और दंतकथाओं में अमर हो गई है। उनकी इस सती होकर प्राण त्यागने की घटना को सम्मान और श्रद्धा के साथ याद किया जाता है, जो स्वाभिमान और निष्ठा की मिसाल बन गई।

राजस्थान के लोकजीवन में रूठी रानी की गाथा

रानी उमादे की कहानी आज भी राजस्थान के लोकगीतों और कहावतों में जीवित है। गाँवों में विवाह या सुहाग के अवसर पर महिलाएँ उनके स्वाभिमान और सम्मान की गाथा गाती हैं। रानी उमादे को एक ऐसी स्त्री के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने अपने आत्मसम्मान को सबसे ऊपर रखा और किसी भी कीमत पर समझौता नहीं किया। आज भी राजस्थान में 'रूठी रानी' शब्द का इस्तेमाल उस स्त्री के लिए किया जाता है जो अपने सम्मान के लिए अडिग रहे और किसी के सामने न झुके।

राव मालदेव और रूठी रानी की विरासत

राव मालदेव और रानी उमादे की कहानी सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि मानवीय मूल्यों की भी प्रेरक मिसाल है। राव मालदेव मारवाड़ के एक वीर और दूरदर्शी शासक थे, जिन्होंने 1532 से 1562 तक राज्य किया और मारवाड़ को मजबूत और बड़ा बनाया। वे अपनी युद्ध-कला, अच्छे प्रशासन और समझदारी के लिए जाने जाते थे। रानी उमादे उनकी पत्नी थीं और उन्हें राजस्थान की कथाओं में स्त्री-शक्ति और आत्मसम्मान का प्रतीक माना जाता है। उनकी कहानी आज भी राजस्थान की लोक कथाओं और संस्कृति का अहम हिस्सा है।

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