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Premanand Ji Maharaj Guru: प्रेमानंद जी महाराज के गुरु कौन हैं? जानिए श्री हित मोहित मराल जी व गौरांगी शरण महाराज से जुड़ी रोचक गाथा

Premanand Ji Maharaj Guru: प्रेमानंद जी महाराज अपने प्रवचनों, भजन-सत्संग और राधा नाम की मधुर महिमा के लिए प्रसिद्ध हैं।

Jyotsna Singh
Published on: 18 July 2025 7:00 AM IST (Updated on: 18 July 2025 7:00 AM IST)
Premanand Ji Maharaj
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Premanand Ji Maharaj (Image Credit-Social Media)

Premanand Ji Maharaj Guru: वृंदावन की पावन धरा पर अनेक संत, महात्माओं और भक्तों ने जन्म लिया है, जिन्होंने राधा-कृष्ण भक्ति की गंगा बहाई है। इन्हीं में से एक हैं श्री प्रेमानंद जी महाराज। जिनका नाम आज सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों तक भक्तों की श्रद्धा का प्रतीक बन चुका है। प्रेमानंद जी महाराज अपने प्रवचनों, भजन-सत्संग और राधा नाम की मधुर महिमा के लिए प्रसिद्ध हैं। लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि इस आध्यात्मिक यात्रा में उन्हें जिन गुरुजनों का सान्निध्य मिला, वही उनके जीवन की दिशा बदलने वाले रहे। आइए जानते हैं प्रेमानंद जी महाराज के गुरु कौन हैं और उनसे उनकी मुलाकात कैसे हुई।

बचपन से ही था अध्यात्म के प्रति गहरा जुड़ाव

श्री प्रेमानंद जी महाराज का जन्म वाराणसी (काशी) में हुआ था। बचपन से ही उनका मन आध्यात्म में रमने लगा था। दुनिया की चकाचौंध से दूर, उनका हृदय राधा रानी की भक्ति में तल्लीन हो गया। एक समय ऐसा भी आया जब वह अपना सब कुछ छोड़कर वृंदावन आ गए। वृंदावन में उनकी दिनचर्या बेहद साधारण और भक्ति से परिपूर्ण थी । सुबह उठते, यमुना स्नान करते, वृंदावन की परिक्रमा करते और राधा-कृष्ण के दर्शन करते। धीरे-धीरे उनकी भक्ति में ऐसी लगन और शक्ति आ गई कि उनके सत्संग सुनने लोग दूर-दूर से आने लगे।


कौन हैं श्री हित मोहित मराल जी महाराज?

श्री हित मोहित मराल जी महाराज वृंदावन के राधावल्लभ मंदिर के तिलकायत (धार्मिक अधिकारी) हैं। राधावल्लभ सम्प्रदाय की परंपरा में तिलकायत का पद अत्यंत सम्मानित माना जाता है। इस पद का कार्य सिर्फ मंदिर प्रबंधन तक सीमित नहीं होता, बल्कि सम्प्रदाय की शिक्षाओं और राधा-कृष्ण भक्ति मार्ग का प्रचार-प्रसार भी इसमें सम्मिलित होता है।

मोहित मराल जी महाराज को वृंदावन में बड़े गुरुजी भी कहा जाता है। उनके ज्ञान, सरल स्वभाव और भक्ति मार्ग पर चलने की प्रेरणा से असंख्य लोग प्रभावित हुए हैं।

प्रेमानंद महाराज जी की मोहित मराल महाराज जी से पहली मुलाकात और एक रोचक प्रसंग

जब प्रेमानंद महाराज पहली बार वृंदावन आए थे, वे हर दिन सुबह उठकर वृंदावन की परिक्रमा करते थे और श्री बांके बिहारी जी के दर्शन करते थे। इसी दौरान एक दिन उन्होंने एक महिला को संस्कृत में कोई श्लोक गाते हुए सुना। संयोगवश, प्रेमानंद जी को संस्कृत का अच्छा ज्ञान था, लेकिन फिर भी वह श्लोक उन्हें समझ नहीं आया। उन्होंने उस महिला से श्लोक का अर्थ पूछा। महिला ने कहा, 'यदि तुम इस श्लोक को समझना चाहते हो, तो तुम्हें राधावल्लभी बनना होगा।'

इस वाक्य ने प्रेमानंद जी के हृदय को झकझोर दिया। वे सीधे राधावल्लभ मंदिर पहुंचे और वहीं उनकी पहली भेंट श्री हित मोहित मराल जी महाराज से हुई।

शरणागत मंत्र और दीक्षा

मोहित मराल महाराज जी ने प्रेमानंद जी का आदरपूर्वक स्वागत किया और उन्हें शरणागत मंत्र के साथ दीक्षा प्रदान की। उसी क्षण से प्रेमानंद महाराज जी ने राधावल्लभ सम्प्रदाय की भक्ति धारा को स्वीकार कर लिया और मोहित मराल जी को अपने गुरु के रूप में स्वीकार कर लिया। आज भी जब प्रेमानंद जी महाराज अपने गुरु से मिलते हैं, तो वे उन्हें साष्टांग प्रणाम करते हैं, उनके चरण स्पर्श करते हैं और उनका आशीर्वाद ग्रहण करते हैं। सोशल मीडिया पर भी ऐसे कई वीडियो वायरल हैं, जिनमें प्रेमानंद जी अपने गुरु के प्रति विनम्रता और श्रद्धा व्यक्त करते हुए नजर आते हैं।

वृंदावन के बड़े गुरुजी के नाम से विख्यात हैं मोहित मराल महाराज जी


श्री मोहित मराल जी महाराज केवल प्रेमानंद जी के ही नहीं, बल्कि वृंदावन और सम्पूर्ण राधावल्लभ सम्प्रदाय के लिए बड़े गुरुजी माने जाते हैं। इन्हें 'श्रीहित मोहित मराल महाराज' के नाम से भी जाना जाता है। वे न केवल एक आध्यात्मिक गुरु हैं, बल्कि राधा रानी के दिव्य रसोपासना मार्ग के एक सच्चे साधक भी हैं। उनकी शिक्षाएं साधकों को यह समझाती हैं कि भक्ति मार्ग में विनम्रता, समर्पण और सेवा का कितना महत्व है।

कौन हैं गौरांगी शरण महाराज?

प्रेमानंद महाराज के अन्य गुरुजी

गौरांगी शरण जी महाराज, जिन्हें भक्त दादा गुरु के नाम से जानते हैं, वृंदावन के एक प्रसिद्ध संत हैं। जहां श्री मोहित मराल जी ने प्रेमानंद महाराज को राधावल्लभ सम्प्रदाय में दीक्षित किया, वहीं गौरांगी शरण महाराज ने भी उनके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कहा जाता है कि वृंदावन आने के बाद जब प्रेमानंद जी को रसोपासना (राधा-कृष्ण लीला की अंतरंग भक्ति) की समझ नहीं आ रही थी, तब वे एक दिन मायूस होकर गौरांगी शरण महाराज के पास पहुंचे।

गौरांगी शरण महाराज ने उनके हाथ पर तीन उंगलियों से फेरते हुए कहा, 'सब ठीक हो जाएगा।'

इस आशीर्वचन का असर ऐसा हुआ कि प्रेमानंद महाराज के जीवन में भक्ति रस की धारा बहने लगी और वह रसोपासना का मर्म समझने लगे। इसके बाद तो उनकी ख्याति बढ़ती ही चली गई।



गुरु-शिष्य परंपरा का महत्व

भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य परंपरा का विशेष महत्व है। गुरु ही शिष्य को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। प्रेमानंद जी महाराज ने अपने जीवन में इसका पूर्ण अनुसरण किया है। उन्होंने हमेशा अपने गुरुओं को सर्वोच्च सम्मान दिया और यह भी सिखाया कि किसी भी आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए गुरु का आशीर्वाद सबसे बड़ा संबल है। आज प्रेमानंद जी महाराज के सत्संग, कथा और भजन सुनने के लिए लाखों लोग उमड़ते हैं। वे अपने सत्संगों में राधा रानी के नाम की महिमा का प्रचार करते हैं और अपने गुरुजनों की शिक्षाओं को भी साझा करते हैं। उनके प्रवचनों में जो प्रभाव और मधुरता है, वह उनके गुरुओं के आशीर्वाद और उनके समर्पित साधना का ही परिणाम है।

श्री प्रेमानंद जी महाराज की आध्यात्मिक यात्रा का मूल स्तंभ उनके गुरुओं श्री हित मोहित मराल जी महाराज और गौरांगी शरण महाराज हैं। इन्हीं की कृपा से प्रेमानंद जी ने राधावल्लभ सम्प्रदाय में दीक्षा ली, भक्ति रस को समझा और संसार में भक्ति का संदेश फैलाया।

यह साधना सिर्फ एक साधक की नहीं, बल्कि यह दर्शाती है कि सच्चे गुरु और समर्पित शिष्य के बीच कितना गहरा और पवित्र संबंध होता है। आज प्रेमानंद जी महाराज भले ही करोड़ों भक्तों के हृदय में बसे हों, लेकिन वे कभी भी अपने गुरुओं को नहीं भूले और यही भावना नई पीढ़ी को प्रेरित करने के साथ ही उन्हें महान बनाती है।

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