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Premanand Ji Maharaj Satsang: खुद पर ध्यान दो, दूसरों पर नहीं नामस्मरण, आत्म-निरीक्षण और कर्मभूमि के तीन सिद्धांतों से जीवन को मिलेगी नई दिशा
Premanand Ji Maharaj Gyan: प्रेमानंद महाराज जी ने अपने आश्रम में हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में जो प्रवचन दिया...
Premanand Ji Maharaj Satsang Motivation
Premanand Ji Maharaj Motivation: प्रेमानंद महाराज जी ने अपने आश्रम में हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में जो प्रवचन दिया, उसने न सिर्फ भक्तों के अंतर्मन को झकझोरा बल्कि जीवन की दिशा भी दर्शाई। इस प्रवचन की सबसे बड़ी विशेषता रही महाराज जी द्वारा तीन सरल लेकिन गूढ़ सिद्धांतों को साझा करना, जिनके सहारे कोई भी व्यक्ति अपने जीवन को शांतिपूर्ण, धार्मिक और आध्यात्मिक बना सकता है। प्रवचन का मूल संदेश था- 'खुद पर ध्यान दो, दूसरों पर नहीं। ये तीन बातें जीवन में उतार लो, फिर देखो सब कैसे बदलता है।'
आत्म-निरीक्षण से ही आत्म-शुद्धि संभव है
प्रेमानंद महाराज जी ने कहा कि, आज का इंसान हर बात में दूसरों की आलोचना करता है लेकिन अपने भीतर झांकने की हिम्मत नहीं करता। उन्होंने श्रोताओं से पूछा, 'कभी आपने खुद से पूछा है कि आपके विचार कितने पवित्र हैं? आपकी वाणी कितनी निर्मल है? और आपके कर्म कितने धर्मसंगत हैं?'
महाराज जी ने जोर देते हुए कहा कि जब तक हम अपने अंदर नहीं झांकेंगे, तब तक कोई भी आध्यात्मिक यात्रा आगे नहीं बढ़ सकती। आत्म-निरीक्षण ही वह पहला कदम है जो मनुष्य को अपने दोषों का बोध कराता है और सुधार की ओर ले जाता है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है नामजप
अपने प्रवचन में प्रेमानंद महाराज जी ने ‘नामस्मरण’ को सबसे सरल, प्रभावशाली और सर्वसुलभ साधना बताया। उन्होंने कहा कि 'ऐसे नाम जपो, जिससे हर दुःख, चिंता और रोग दूर हो जाएं।' उन्होंने स्पष्ट किया कि नाम कोई भी हो राम, कृष्ण, शिव, या अपने ईष्ट का नाम लेकिन उसमें श्रद्धा और निरंतरता जरूरी है।
उन्होंने बताया कि नामजप से न केवल मानसिक शांति मिलती है बल्कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। 'जब मन ईश्वर के नाम में रमता है, तब संसार के कष्ट असर नहीं करते,' उन्होंने कहा। महाराज जी ने श्रद्धालुओं से यह वचन लेने को कहा कि वे प्रतिदिन कम से कम 15 मिनट नामस्मरण के लिए अवश्य निकालें।
यह जीवन एक कर्मभूमि है, इसे व्यर्थ न जाने दें
प्रवचन के तीसरे चरण में प्रेमानंद महाराज जी ने जीवन को 'कर्मभूमि' बताया। उन्होंने कहा कि मनुष्य का जन्म केवल भोग के लिए नहीं हुआ है, बल्कि यह एक साधना है, एक जिम्मेदारी है। उन्होंने स्पष्ट किया, 'हर एक कार्य का हिसाब है। अच्छा करोगे तो अच्छा मिलेगा, बुरा करोगे तो भुगतना पड़ेगा।'
उन्होंने भाग्य पर निर्भर न रहकर कर्मशील बनने का संदेश दिया। महाराज जी ने भगवद गीता का उदाहरण देते हुए कहा कि जैसा कर्म करोगे, वैसा ही फल मिलेगा। उन्होंने यह भी कहा कि जो व्यक्ति अपने कार्य को ईश्वर की सेवा मानकर करता है, उसका जीवन कभी व्यर्थ नहीं जाता।
तीन वचनों का सार ही है सच्चा धर्म
प्रेमानंद महाराज जी ने प्रवचन में इन तीन प्रमुख बिंदुओं को ही धर्म का सार बताया। आत्मनिरीक्षण, नामस्मरण और कर्म की पवित्रता यही तीन मुख्य आधार हैं जिन पर जीवन की सही दिशा तय की जा सकती है। उन्होंने कहा कि यह जरूरी नहीं कि आप बड़े-बड़े यज्ञ करें या तीर्थ यात्राओं पर जाएं। जरूरी यह है कि आप अपने भीतर झांकें, ईश्वर का स्मरण करें और अपने हर कर्म को पवित्र भावना से करें। उन्होंने कहा कि जो इन तीन बातों को अपनाएगा, उसका जीवन रूपांतरित हो जाएगा। न उसे चिंता सताएगी, न रोग डराएगा और न मन भटकेगा। यह प्रवचन प्रेमानंद महाराज जी के उन प्रवचनों में से था जो केवल श्रोताओं को भावनात्मक रूप से नहीं छूता बल्कि उनके जीवन को दिशा भी देता है। आत्मनिरीक्षण, नामस्मरण और कर्मयोग इन तीन सिद्धांतों पर आधारित उनका यह प्रवचन आज के भटके हुए जीवन को फिर से साधना के पथ पर लाने का स्पष्ट प्रयास है।
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