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Premanand Ji Maharaj Satsang: सत्संग, सेवा, साधना के सहारे हर कठिनाई और दुःख की पराजय निश्चित- प्रेमानंद महाराज का अमृतमयी संदेश
Premanand Ji Maharaj Satsang: प्रेमानंद महाराज अपने संदेशों और सत्संग से लोगों को प्रभावित करते हैं आइये जानते हैं उन्होंने नाम-जप, सत्संग और आत्म-विश्वास के माध्यम से जीवन को दिव्य बनाने का क्या मार्ग बताया।
Premanand Ji Maharaj (Image Credit-Social Media)
Premanand Ji Maharaj: वृंदावन के राधा केली कुंज आश्रम में प्रवचन के दौरान पूज्य प्रेमानंद महाराज ने भक्तों को एक अत्यंत प्रेरक संदेश दिया। उनका यह संदेश जीवन में व्याप्त दुःख, चिंता, रोग और मानसिक अशांति से मुक्ति पाने की राह दिखाता है। उन्होंने बताया कि कैसे नाम-जप, सत्संग और आत्म-विश्वास के माध्यम से जीवन को दिव्य बनाया जा सकता है। प्रवचन न केवल श्रोताओं के मन को छू गया, बल्कि उन्हें एक नई दिशा भी प्रदान की।
दुःख है, लेकिन उनसे विजय संभव है
प्रेमानंद महाराज ने सबसे पहले इस तथ्य को स्वीकार किया कि जीवन में दुःख और संकट आते ही हैं। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि दुःख जीवन की परीक्षा हैं, और इनसे घबराने की बजाय उनसे लड़ना सीखना चाहिए। उन्होंने कहा, 'जिस प्रकार परीक्षा के बिना विद्यार्थी आगे नहीं बढ़ता, उसी प्रकार जीवन की कठिनाइया ही आत्मा को मजबूत बनाती हैं।' उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि श्रीराम और श्रीकृष्ण जैसे ईश्वरीय अवतारों ने भी मानव रूप में कठोर संघर्षों का सामना किया। यदि ईश्वर भी आने वाली कठिनाइयों से नहीं बचे, तो हम साधारण जीव कैसे बच सकते हैं? लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि हम पराजय स्वीकार करें। सत्संग, सेवा और साधना के सहारे हर दुःख को पराजित किया जा सकता है।
एक उपाय जिससे हर दुःख और रोग से छुटकारा
महाराज ने भक्तों को एक अत्यंत सरल और प्रभावी उपाय बताया, जिसे कोई भी अपनाकर जीवन के दुःख, रोग और मानसिक तनाव से मुक्ति पा सकता है। उन्होंने कहा कि प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर भगवान के नाम का जप करना और मौन साधना करना, हमारे भीतर ऐसी शक्ति जगाता है जो असंभव को भी संभव बना देती है। महाराज ने कहा कि सिर्फ शरीर की नहीं, आत्मा की भी चिकित्सा ज़रूरी है और यह चिकित्सा साधना द्वारा होती है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि यह उपाय तभी काम करता है जब इसे नित्य नियम से, श्रद्धा और विश्वास के साथ किया जाए।
बंद भाग्य के दरवाज़े खोलती है श्रद्धा
महाराज ने कहा कि श्रद्धा वह कुंजी है जो बंद भाग्य के दरवाज़े खोलती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि बिना श्रद्धा के कोई भी साधना फलदायी नहीं हो सकती। जैसे बीज को भूमि, जल और सूर्य की आवश्यकता होती है, वैसे ही साधना को श्रद्धा, विश्वास और नियमितता चाहिए। उन्होंने भक्तों से पूछा 'क्या तुम भगवान को अपना मानते हो? यदि हां, तो फिर चिंता क्यों?' यह प्रश्न पूरे प्रवचन का सार बन गया। उन्होंने समझाया कि यदि श्रद्धा अडिग है, तो जीवन की कोई भी परिस्थिति हमें विचलित नहीं कर सकती।
नाम-जप सबसे सरल, लेकिन सबसे प्रभावकारी साधन
नाम-जप को महाराज ने आज के युग का सबसे श्रेष्ठ साधन बताया। उन्होंने कहा कि यह युग ‘कलियुग’ है, जहां न शरीर में ताक़त है, न मन में एकाग्रता और न जीवन में धैर्य। ऐसे समय में नाम-जप ही वह सहारा है जो छोटे से छोटे साधक को भी परमात्मा से जोड़ सकता है। उन्होंने भक्तों से आग्रह किया कि 'कम से कम रोज़ 10 मिनट भी अगर तुम पूरे समर्पण से नाम-जप कर लो, तो उसका प्रभाव चमत्कारी होगा।' उन्होंने यह भी जोड़ा कि नाम-जप केवल शब्द नहीं, बल्कि एक ऊर्जा है जो भीतर के अंधकार को दूर करती है।
साधना की सबसे बड़ी शत्रु है मन की चंचलता
प्रेमानंद महाराज ने बताया कि साधना का सबसे बड़ा शत्रु है चंचल मन। उन्होंने उदाहरण दिया कि, जैसे अशुद्ध पानी को पीने से शरीर बीमार होता है, वैसे ही अशुद्ध विचारों से आत्मा और मन बीमार हो जाता है। मन को काबू में लाने के लिए महाराज ने ध्यान, मौन और सत्संग को आवश्यक बताया। उन्होंने कहा कि मन को हर समय भगवान के स्मरण में लगाना चाहिए। यदि विचार बार-बार भटकते हैं, तो भी बार-बार उसे परमात्मा की ओर मोड़ते रहो। यह प्रक्रिया ही साधना है।
आशावाद और मानसिक स्थिरता
महाराज ने कहा कि आशावादी व्यक्ति कभी पराजित नहीं होता। उन्होंने कहा कि 'मन में यदि निराशा बैठ गई, तो बाहरी परिस्थिति चाहे कितनी भी अच्छी हो, व्यक्ति खुश नहीं रह सकता।' इसलिए साधक को नकारात्मकता से दूर रहकर सकारात्मकता को अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हर दिन को एक नया अवसर समझो – सेवा करने का, साधना का और सीखने का। उन्होंने बताया कि जब हमारा मन स्थिर होता है, तब ही जीवन की छोटी-छोटी बातों से हम विचलित नहीं होते। मानसिक स्थिरता ही आत्मिक उन्नति की पहली सीढ़ी है।
जीवन में चमत्कार ला सकती है आदर्श दिनचर्या
प्रेमानंद महाराज ने एक आदर्श दिनचर्या सुझाई, जिसे कोई भी भक्त अपना सकता है। उन्होंने कहा कि ब्रह्ममुहूर्त में उठना, स्नान करके शांत मन से नाम-जप करना, दिन भर में कम से कम एक सत्संग में भाग लेना और रात्रि में ईश्वर का स्मरण करते हुए सोना। यह दिनचर्या जीवन में चमत्कार ला सकती है। उन्होंने यह भी बताया कि संयमित भोजन, संयमित वाणी और संयमित दृष्टि भी साधना के अंग हैं। उन्होंने आग्रह किया कि 'एक दिन के लिए टीवी, मोबाइल, गप्पें छोड़कर सिर्फ आत्मा से बात करो। तुम स्वयं ईश्वर से मिल जाओगे।'
एकांत से जुड़ा है आत्मा का विकास
प्रेमानंद महाराज ने ‘वीर एकांतिक’ की परिभाषा देते हुए कहा कि ऐसा साधक जो अकेला हो तो भी विचलित न हो, वही सच्चा साधक है। उन्होंने कहा कि कई बार हमें अपनी साधना में अकेलापन लगता है, लेकिन यही एकांत आत्मा का विकास करता है। 'जो साधक दुख-सुख हर परिस्थिति में भगवान से जुड़ा रहे चाहे दुनिया उसका साथ दे या न दे, वही वीर है।' यह प्रेरणादायक बात उन्होंने बार-बार दोहराई कि 'भीड़ के साथ चलना आसान है, लेकिन अकेले ईश्वर की ओर बढ़ना ही सच्चा पराक्रम है।'
आध्यात्मिक जागरूकता और मृत्यु से भय की मुक्ति
महाराज ने प्रवचन के अंतर्गत जीवन और मृत्यु की गहराइयों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि मृत्यु एक सच्चाई है जिसे कोई भी टाल नहीं सकता। लेकिन भय को टाला जा सकता है। उन्होंने कहा कि 'जो मृत्यु से डरता है, वह जीवित रहते हुए भी जीवित नहीं है।' उन्होंने समझाया कि जो साधक आत्मा को पहचान लेता है, उसके लिए मृत्यु एक यात्रा बन जाती है न कि अंत। उन्होंने संतों के दृष्टांतों से समझाया कि मृत्यु केवल शरीर का परिवर्तन है, आत्मा का नहीं। जो भक्त सत्संग और साधना में लीन होता है, उसे मृत्यु का भय नहीं होता।
नियमित साधना और गुरु-कृपा में विश्वास– जीवन की अमृत वाणी
प्रवचन के अंतिम भाग में महाराज ने जीवन को अमूल्य बताते हुए कहा कि 'यह शरीर साधना के लिए मिला है, इसे मोह, लोभ, आलस्य में न गवाओ।' उन्होंने सभी भक्तों से आग्रह किया कि वे आज से ही साधना को प्राथमिकता दें। उन्होंने दो मुख्य सूत्र दिए – 'नियमित साधना' और 'गुरु-कृपा में विश्वास।' उन्होंने कहा कि अगर तुम्हारे जीवन में गुरु हैं और तुम साधना कर रहे हो, तो चिंता की कोई आवश्यकता नहीं। ईश्वर स्वयं तुम्हारे जीवन को सवार देंगे। उन्होंने प्रवचन का समापन अत्यंत मार्मिक पंक्तियों से किया –'हर दुःख से पार पा सकते हो, अगर तुम ईश्वर को अपना बना लो।'
प्रेमानंद महाराज का प्रवचन केवल एक सत्संग नहीं, बल्कि आत्मा का जागरण था। उनके शब्दों ने न केवल श्रोताओं को आश्वस्त किया, बल्कि यह भी बताया कि आत्मिक शांति कैसे प्राप्त की जा सकती है। यह प्रवचन उन सभी के लिए प्रेरणा है जो जीवन के संघर्षों से जूझ रहे हैं। महाराज ने बताया कि हर दुःख से मुक्ति संभव है, अगर हम नाम-जप, श्रद्धा और गुरु-कृपा की शरण में रहें।
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