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Vat Savitri Vrat 2025: सावित्री अमावस्या : पति के लंबी आयु के लिए व्रत पूजा
Vat Savitri Vrat 2025: ज्येष्ठ मास के अमावस्या मनाया जाता है वट सावित्री व्रत ,इस व्रत को वरगदाई के नाम से भी जाना जाता है। आइये जानते हैं क्या है इस व्रत का महत्त्व।
Vat Savitri Vrat 2025 (Image Credit-Social Media)
Vat Savitri Vrat 2025: हमारे देश में जितने प्रदेश उतनी भाषाएं, बोलियां, उतने समाज और लोग। इसलिए भारत को विविधता में एकता का प्रतीक माना जाता है। यहां हर वर्ग, समुदाय, धर्म के अपने पर्व त्योहार हैं। कोई त्यौहार परिवार के साथ मनाया जाता है तो कोई अपने परिवार के खास सदस्य जैसे पति, बच्चे आदि के लिए। हमारे देश में हिंदू धर्म में पति को भगवान और पत्नी को देवी का दर्जा देकर पूज्य माना गया है। हर राज्य में विवाहित हिंदू स्त्रियां अपने प्रदेश के हिसाब से पति की लंबी आयु के लिए उपवास रखती और पूजा करती हैं। जैसे पंजाब, दिल्ली, उत्तरप्रदेश और अन्य कई प्रदेशों में दशहरे के बाद करवा चौथ का व्रत। लेकिन आज के दौर में यह व्रत फैशन के तौर पर किसी भी प्रदेश की महिला अपने ग्रुप या दोस्तों के साथ उल्लास के साथ मनाती नज़र आएगी। इस त्यौहार को मशहूर बनाने में बॉलीवुड का बड़ा योगदान है।
वहीं उत्तर भारत के बिहार, उत्तरप्रदेश के कुछ हिस्सों में तीज का त्यौहार जिसे कई जगह जैसे महाराष्ट्र में हरितालिका के नाम से मनाया जाता है। वहीं ओडिशा में इसे बाली तृतीया के नाम से मनाया जाता है। इस त्यौहार में भाद्रपद तृतीया यानि गणेश पूजा, जिसे गणेश चतुर्थी के नाम से जानते हैं, एक दिन पहले उपवास रखा जाता है। इसमें सुहागिन स्त्रियां निर्जला उपवास रखती हैं। राजस्थान और उत्तर भारत के कई हिस्सों में श्रावण महीने में तीज का त्योहार मनाया जाता है।
ऐसा ही एक उपवास और पूजा देश के कई हिस्सों में ज्येष्ठ मास के अमावस्या को वट सावित्री या सावित्री अमावस्या के नाम से मनाया जाता है। इस व्रत को वरगदाई के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए दिन भर का उपवास रख कर वट वृक्ष की पूजा करती है। दरअसल पेड़ों में वट वृक्ष की आयु सबसे ज्यादा होती है। उत्तर भारत में इस दिन वट के वृक्ष में शादी शुदा हिन्दू महिलाएं कच्चा धागा बांध कर अपने पति को दीर्घायु बनाने की कामना करती हैं। वहीं ओडिशा जैसे प्रांत में शालिग्राम की पूजा कर व्रत कथा सुनते हैं। इस दिन फलाहार रहकर व्रत किया जाता है। इस मौसम में मिलने वाले खास फल जैसे आम, कटहल, जामुन आदि के भोग लगाए जाते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन सावित्री नामक एक महिला ने वट वृक्ष के नीचे अपने पति सत्यवान की अल्पायु में मृत्य के बाद यमराज से उसके प्राण वापस लाए थे। तब से प्रथा अनुसार सतीत्व, श्रद्धा और शक्ति का प्रतीक पतिव्रता स्त्रियां अपने पति के दीर्घायु के लिए यह व्रत करती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत से पति की आयु लंबी होती है और वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि आती है। साथ ही योग्य संतान की भी प्राप्ति होती है।
हिंदू शास्त्रों में वट वृक्ष को बेहद पूजनीय माना गया है, ऐसा कहा जाता है कि इस वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश- तीनों देवों का वास होता है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने वाली स्त्रियों को भगवान शिव का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होती है। इसी कारण पूरे भारतवर्ष में यह व्रत श्रद्धा से सुहागिन स्त्रियां मनाती हैं। इस दिन स्त्रियों के सोलह श्रृंगार कर, नए वस्त्र धारण करने की भी प्रथा है।
महाराष्ट्र में यह त्यौहार ज्येष्ठ पूर्णिमा को वट पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। इसका भी संबंध सावित्री और सत्यवान के कथा से है। इसमें सुहागिन मराठी महिलाएं मिलकर वट वृक्ष की पूजा करती हैं और पेड़ के चारों ओर धागा बांधकर अपने पति की लंबी आयु का वरदान मांगती हैं।
इस साल यह वट सावित्री व्रत सोमवार को पड़ रहा है जिसे सोमवती अमावस्या का योग कहते हैं। इस संयोग को हिंदू धर्म में अत्यंत दुर्लभ और सौभाग्यशाली माना जाता है। इस दिन चंद्रमा अपनी उच्च राशि वृषभ में संचार करेगा जिसे ज्योतिष शास्त्र में शुभ संकेत माना जाता है।
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