World Failed Megaprojects: दुनिया भर के ऐसे मेगा प्रोजेक्ट जिसमें अरबों खर्च होने के बाद भी नहीं आए किसी काम, आइए जाने क्या रहे कारण

World Failed Megaprojects History: आज हम आपको कुछ ऐसी परियोजनाओं के बारे में बताएंगें जो अत्यधिक लागत, खराब योजना और अपर्याप्त उपयोगिता के कारण विफल हो गई हैं। आइये नज़र डालते हैं इस लिस्ट पर।

Akshita Pidiha
Published on: 19 May 2025 12:48 PM IST
World Failed Megaprojects History
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World Failed Megaprojects History

World Failed Megaprojects History: विश्व भर में कई मेगाप्रोजेक्ट्स को आर्थिक विकास, तकनीकी प्रगति और आधुनिकता के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। हालांकि, इनमें से कई परियोजनाएँ अत्यधिक लागत, खराब योजना और अपर्याप्त उपयोगिता के कारण विफल हो गई हैं। नीचे कुछ प्रमुख मेगाप्रोजेक्ट्स का विवरण दिया गया है जो अपने उद्देश्यों को पूरा करने में असफल रहे और जिन्हें अब "बेकार" या "अप्रभावी" माना जाता है।

फॉरेस्ट सिटी, मलेशिया: एक $100 बिलियन का भूतिया शहर

फॉरेस्ट सिटी को मलेशिया के जोहोर राज्य में एक अत्याधुनिक स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित किया गया था, जिसमें 700,000 निवासियों के लिए आवास की योजना थी।


हालांकि, राजनीतिक अस्थिरता, विदेशी निवेशकों की कमी और COVID-19 महामारी के प्रभाव के कारण यह परियोजना अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं कर सकी। 2020 तक, केवल 500 लोग ही वहाँ रह रहे थे, और अधिकांश इमारतें खाली पड़ी थीं। इसके अलावा, पर्यावरणीय चिंताओं और स्थानीय विरोध ने भी परियोजना की प्रगति में बाधा डाली।

नायपीडॉ, म्यांमार: एक सुनसान राजधानी


2005 में, म्यांमार की सैन्य सरकार ने एक नई राजधानी, नायपीडॉ, की स्थापना की। यह शहर अत्याधुनिक बुनियादी ढांचे, चौड़ी सड़कों और सरकारी भवनों से सुसज्जित है। हालांकि, इसकी विशालता के बावजूद, यह शहर अधिकांशतः खाली है। सरकारी कर्मचारी और नागरिक यांगून जैसे पुराने शहरों में रहना पसंद करते हैं, जिससे नायपीडॉ एक "भूतिया शहर" बन गया है।

सियूदाद रियल सेंट्रल एयरपोर्ट, स्पेन: एक निष्क्रिय हवाई अड्डा


स्पेन में स्थित सियूदाद रियल सेंट्रल एयरपोर्ट को एक प्रमुख विमानन केंद्र बनाने की योजना थी। हालांकि, यह परियोजना केवल तीन वर्षों में ही विफल हो गई। 2009 में उद्घाटन के बाद, यह हवाई अड्डा पर्याप्त यात्रियों और एयरलाइनों को आकर्षित नहीं कर सका। 2012 में इसे बंद कर दिया गया, और बाद में इसे मात्र €10,000 में बेच दिया गया, जिससे यह यूरोप की सबसे बड़ी बुनियादी ढांचा विफलताओं में से एक बन गया।

इंटरस्टेट H-3, हवाई: एक विवादास्पद राजमार्ग


हवाई में इंटरस्टेट H-3 राजमार्ग को सैन्य ठिकानों को जोड़ने के लिए बनाया गया था। हालांकि, इसके निर्माण में 37 वर्षों का समय लगा और इसकी लागत $1.3 बिलियन तक पहुँच गई। स्थानीय निवासियों और पर्यावरणविदों ने इसे पवित्र स्थलों के विनाश और पर्यावरणीय क्षति के कारण विरोध किया। आज भी, कई स्थानीय लोग इसे "शापित" मानते हैं और इसका उपयोग नहीं करते।

द वर्ल्ड आइलैंड्स, दुबई: एक डूबता हुआ सपना


दुबई में द वर्ल्ड आइलैंड्स परियोजना के तहत 300 कृत्रिम द्वीपों का निर्माण किया गया था, जो विश्व के नक्शे की आकृति में थे। हालांकि, 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी के बाद यह परियोजना ठप हो गई। $14 बिलियन की लागत से बनी इस परियोजना में अधिकांश द्वीप अब भी अविकसित हैं, और कुछ रिपोर्टों के अनुसार, ये द्वीप समुद्र में डूब रहे हैं।

कांगबाशी, चीन: एक और भूतिया शहर


चीन के कांगबाशी शहर को एक मिलियन लोगों के लिए बसाया जाना था। हालांकि, आर्थिक गतिविधियों की कमी और लोगों की अनिच्छा के कारण, वर्तमान में वहाँ केवल 100,000 लोग ही रहते हैं। शहर की अधिकांश सड़कें और इमारतें खाली हैं, जिससे यह एक और "भूतिया शहर" बन गया है।

युक्का माउंटेन न्यूक्लियर वेस्ट रिपॉजिटरी, अमेरिका: एक अधूरा समाधान


अमेरिका में युक्का माउंटेन परियोजना को परमाणु कचरे के सुरक्षित भंडारण के लिए शुरू किया गया था। 1980 के दशक में शुरू हुई इस परियोजना पर $12 बिलियन खर्च किए गए, लेकिन 2010 में इसे अव्यवहारिक घोषित कर दिया गया और फंडिंग रोक दी गई। आज भी यह सुविधा उपयोग में नहीं है, और अमेरिका में परमाणु कचरे का भंडारण एक समस्या बनी हुई है।

मोनजू फास्ट ब्रीडर रिएक्टर, जापान: एक विफल परमाणु परियोजना


जापान के मोनजू रिएक्टर को 1983 में शुरू किया गया था, लेकिन यह केवल एक घंटे के लिए ही बिजली उत्पन्न कर सका। 1995 में एक आग लगने की घटना और अन्य तकनीकी समस्याओं के कारण यह परियोजना विफल हो गई। 2016 में इसे बंद कर दिया गया, लेकिन इसके विघटन में अभी भी $3.4 बिलियन की लागत और कई दशक लगेंगे।

रयुगयोंग होटल, उत्तर कोरिया: एक अधूरा गगनचुंबी इमारत


प्योंगयांग में स्थित रयुगयोंग होटल को 1987 में शुरू किया गया था और यह 1,080 फीट ऊँचा है। हालांकि, यह होटल कभी भी पूरी तरह से नहीं बन पाया और आज भी खाली पड़ा है। यह उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था की कमजोरी और परियोजना प्रबंधन की विफलता का प्रतीक बन गया है।

हैम्बनटोटा पोर्ट, श्रीलंका: एक रणनीतिक विफलता


श्रीलंका के हैम्बनटोटा पोर्ट को चीन के सहयोग से $1 बिलियन की लागत से बनाया गया था। हालांकि, यह पोर्ट अपेक्षित जहाजों को आकर्षित नहीं कर सका और 2018 में इसे 99 वर्षों के लिए चीन की एक कंपनी को पट्टे पर दे दिया गया। यह सौदा श्रीलंका की संप्रभुता और आर्थिक स्वतंत्रता पर प्रश्नचिह्न लगाता है।

रूस्की ब्रिज, रूस: एक अनावश्यक पुल

रूस के व्लादिवोस्तोक में स्थित रूस्की ब्रिज को 2012 में $1.1 बिलियन की लागत से बनाया गया था। यह पुल रूस्की द्वीप को मुख्य भूमि से जोड़ता है, जहाँ केवल 5,300 लोग रहते हैं। पुल की क्षमता 50,000 वाहनों की है, लेकिन इसका उपयोग बहुत कम होता है, जिससे यह एक "ब्रिज टू नोव्हेयर" बन गया है।

बर्लिन ब्रांडेनबर्ग एयरपोर्ट, जर्मनी: एक विलंबित परियोजना


बर्लिन ब्रांडेनबर्ग एयरपोर्ट की योजना 1989 में बनाई गई थी, लेकिन यह 2020 में जाकर खुला। इस परियोजना में विभिन्न तकनीकी और प्रबंधन संबंधी समस्याओं के कारण लागत $7.4 बिलियन से अधिक हो गई। COVID-19 महामारी के कारण इसकी टर्मिनल 2 का उद्घाटन भी 2022 तक विलंबित हुआ।

ब्रिज टू नोव्हेयर, रोमानिया: एक अधूरी कड़ी


बुखारेस्ट में स्थित यह पुल A1 हाईवे से जोड़ने के लिए बनाया गया था, लेकिन संबंधित सड़क का निर्माण नहीं हुआ। इसलिए, यह पुल केवल एक मोड़ के रूप में कार्य करता है और ट्रैफिक समस्या का समाधान नहीं करता। इस परियोजना पर 400 मिलियन लेई खर्च हुए, लेकिन यह अपनी उद्देश्यपूर्ति में असफल रही।

लीबिया की ग्रेट मैन-मेड रिवर परियोजना – महत्वाकांक्षा की रेत में दबी उम्मीदें


कर्नल मुअम्मर गद्दाफी की 'महान मानव निर्मित नदी परियोजना' का उद्देश्य लीबिया के सूखे रेगिस्तानी इलाकों को भूमिगत जल संसाधनों के ज़रिए हरा-भरा बनाना था। यह परियोजना अपनी कल्पना और पैमाने में अवश्य ही विशाल थी, लेकिन व्यावहारिकता और टिकाऊपन के स्तर पर यह उतनी ही अस्थिर साबित हुई। गद्दाफी की मृत्यु के बाद उत्पन्न हुई आंतरिक अशांति ने इस परियोजना की रीढ़ को तोड़ दिया, जिससे अरबों डॉलर और वर्षों की मेहनत आज व्यर्थ होकर रेगिस्तान में गुमनाम पड़ी है।

मेगाप्रोजेक्ट क्यों असफल हो जाते हैं?राजनीतिक वैनिटी परियोजनाएं

मेगाप्रोजेक्ट अक्सर राजनेताओं की विरासत निर्माण की महत्वाकांक्षा का परिणाम होते हैं। ये परियोजनाएं उस आकांक्षा का प्रतीक होती हैं जो उन्हें इतिहास में एक अमिट छवि के रूप में दर्ज कराना चाहती हैं। लेकिन जब यह आकांक्षा व्यावहारिकता और ज़मीनी सच्चाई से ऊपर उठ जाती है, तो नतीजा अक्सर बर्बादी होता है। नेता भव्यता को प्राथमिकता देते हैं, और परियोजनाएं दीर्घकालिक उपयोगिता के बजाय आकर्षक दिखावे का साधन बन जाती हैं। ऐसे में आने वाली पीढ़ियों को न केवल अधूरी परियोजनाएं मिलती हैं, बल्कि भारी आर्थिक बोझ भी विरासत में मिलता है।

खराब योजना और अवास्तविक पूर्वानुमान

अक्सर परियोजना को आगे बढ़ाने वाले लोग ज़मीनी सच्चाई की अनदेखी करते हैं और अत्यधिक आशावादी पूर्वानुमानों पर निर्भर रहते हैं। जब वास्तविकताएं इन गुलाबी दावों से मेल नहीं खातीं, तो परियोजना संकट में पड़ जाती है। एक बार जब समय और धन की सीमा टूटती है, तो इसे संभालना बेहद कठिन हो जाता है।

भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन की समस्या

बड़ी परियोजनाएं अक्सर भारी पूंजी से जुड़ी होती हैं, और जहाँ पैसा होता है, वहाँ प्रलोभन भी होता है। नतीजतन, इन परियोजनाओं में भ्रष्टाचार, गबन, ठेकेदारी में पक्षपात और अनियमितताएं आम हो जाती हैं। योजनाएं कागज़ पर जितनी प्रभावशाली दिखती हैं, ज़मीनी स्तर पर उनका कार्यान्वयन उतना ही अव्यवस्थित होता है। परिणामस्वरूप निर्माण की गुणवत्ता गिर जाती है, समय-सीमा का उल्लंघन होता है और लागत कई गुना बढ़ जाती है।

पर्यावरणीय हानि और पारिस्थितिकीय असंतुलन

जब मेगाप्रोजेक्ट बिना उचित पर्यावरणीय आकलन के शुरू किए जाते हैं, तो वे प्रकृति पर गंभीर प्रभाव डालते हैं। इन परियोजनाओं के कारण अक्सर वनों की कटाई होती है, जैवविविधता नष्ट होती है, जल स्रोत दूषित होते हैं और स्वदेशी समुदायों को विस्थापन का सामना करना पड़ता है। यहाँ तक कि जब परियोजनाएं रद्द हो जाती हैं या अधूरी रह जाती हैं, तब भी पर्यावरण को होने वाली क्षति बनी रहती है और इकोसिस्टम को उबरने में वर्षों लग सकते हैं।

आर्थिक क्षति और अरबों का नुकसान

एक असफल मेगाप्रोजेक्ट सिर्फ़ एक निर्माण की नाकामी नहीं है; यह एक राष्ट्र की अर्थव्यवस्था पर गंभीर बोझ बन सकता है। सरकारों को लिए गए कर्ज़ चुकाने पड़ते हैं, निवेशकों को भारी घाटा होता है और जनता के टैक्स का पैसा व्यर्थ चला जाता है। आवश्यक सेवाओं – जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, और बुनियादी ढांचे – में निवेश घट जाता है क्योंकि सरकार की प्राथमिकता इन अपूर्ण और महंगी परियोजनाओं को संभालने में लग जाती है।

दुनिया की सबसे बेकार परियोजनाओं से मिले सबक

मेगाप्रोजेक्ट की योजना बनाते समय दृष्टिकोण को केवल कल्पनाओं पर नहीं, बल्कि ज़मीनी सच्चाई और प्रमाणित मांगों पर आधारित करना चाहिए। बजट में सबसे खराब स्थिति को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। इसके साथ ही परियोजनाओं को पारदर्शिता के साथ चलाना चाहिए और राजनैतिक हस्तक्षेप से बचाना चाहिए। पर्यावरण और परियोजना क्षेत्र के प्रभावित समुदायों की रक्षा करना भी अत्यंत आवश्यक है। अतीत की विफलताओं से सीख लेना केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि आवश्यक शर्त बन गई है, ताकि हम भविष्य में दोबारा वही गलतियाँ न दोहराएँ।

मेगाप्रोजेक्ट में वह शक्ति होती है जो किसी क्षेत्र की तस्वीर, उसकी आर्थिक दिशा और वहाँ रहने वाले लोगों के जीवन को पूरी तरह बदल सकती है। लेकिन जब यह शक्ति असंतुलित महत्वाकांक्षा और बिना योजना के प्रयोग में लाई जाती है, तो परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं। ये परियोजनाएं तब “विकास” का प्रतीक बनने के बजाय “मानव मूर्खता” का स्मारक बन जाती हैं। हमें ऐसी सोच विकसित करने की आवश्यकता है जिसमें बड़े विचारों को व्यावहारिक योजना, पारदर्शिता और समावेशी दृष्टिकोण के साथ लागू किया जाए।

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