Dr. K. Vikram Rao: हम न मरब मरिहैं संसारा

Dr. K. Vikram Rao: सत्तासी साल की उम्र में भी राव साहब हर रोज बिना नागा कुछ न कुछ लिखते रहे हैं, कुछ न कुछ रचते रहे हैं। उनके विचारों, उनकी लेखनी से कोई असहमत हो सकता है लेकिन उसे खारिज नहीं कर सकता है।

Ratibhan Tripathi
Published on: 12 May 2025 7:29 PM IST (Updated on: 12 May 2025 7:30 PM IST)
Dr K Vikram Rao
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Dr K Vikram Rao  (photo: social media )

Dr. K. Vikram Rao: फ़ना का होश आना ज़िंदगी का दर्द-ए-सर जाना।

अजल क्या है खुमार-ए-बादा-ए-हस्ती उतर जाना।।

पंडित ब्रज नारायन चकबस्त का यह शेर अपनी जगह दुरुस्त है लेकिन इसके बरक्स डॉ. के. विक्रम राव की हस्ती बरकरार है। शब्द ब्रह्म होता है और अक्षर अजर अमर अविनाशी। के. विक्रम राव साहब ने अक्षर-अक्षर शब्द रचे हैं। वह अक्षर वह शब्द कभी मिटेंगे नहीं। भौतिक शरीर तो एक न एक दिन छूटता ही है लेकिन किसी ने जो रचा होता है, वही उसकी कीर्ति बनकर उसे अमरता प्रदान करता है। इसीलिए तो युगदृष्टा कबीर ने कहा है - हम न मरब मरिहैं संसारा...।

सत्तासी साल की उम्र में भी राव साहब हर रोज बिना नागा कुछ न कुछ लिखते रहे हैं, कुछ न कुछ रचते रहे हैं। उनके विचारों, उनकी लेखनी से कोई असहमत हो सकता है लेकिन उसे खारिज नहीं कर सकता है। राव साहब इस उम्र में लखनऊ के इकलौते पत्रकार रहे हैं जो हर रोज लिखते रहे हैं। उनके लेखन में धार रहती रही है, दिशा और दृष्टि भी।

विरासत में मिली थी पत्रकारिता

पत्रकारिता उन्हें विरासत में मिली थी। उनके पिता के. रामाराव नेशनल हेराल्ड के संस्थापक संपादक रहे हैं। तेलुगूभाषी दक्षिण भारतीय ब्राह्मण थे राव साहब लेकिन पत्रकार और लेखक के रूप में उन्होंने मुख्य रूप से अंग्रेजी और हिंदी में अपनी कलम का जौहर दिखाया है। इधर हिंदी में वह हर रोज आलेख लिखते थे तो पढ़ने का चाव होता रहा है। वाक्य विन्यास और शब्द प्रयोग की चाशनी में लिपटे उनके आलेख किसी भी पाठक को सम्मोहित करते थे। अंग्रेजी के अनेक शब्द उन्होंने हिंदी में ऐसे अनूदित किए मानो वह मूल शब्द हो। जैसे हम अक्सर बोलचाल में 'बाॅडी लैंग्वेज' कहते हैं लेकिन राव साहब ने इसे हिंदी में हमेशा 'अंग भाषा' लिखा। उनकी रचनात्मक लेखनी में ऐसे हीअनेक गुण समाहित हैं।

राव साहब पत्रकार थे, पत्रकार नेता थे, लेखक थे और राजनेताओं के बीच अपनी लेखनी की बदौलत लोकप्रिय रहे हैं। उनके परिवार में उनके दो पुत्र एक पुत्री और पत्नी डॉ. सुधा राव हैं। साधन संपन्नता के बावजूद वह अपने को सदा श्रमजीवी मानते रहे हैं और वैसा ही व्यवहार करते रहे हैं। उनके पिता संपादक के साथ साथ सांसद भी रहे हैं। उनके भाई और परिवार के सदस्य खासे ओहदेदार रहे हैं लेकिन राव साहब में ऐसा कोई गुमान नहीं था। वह जूनियर मोस्ट पत्रकारों को भी 'जी' लगाकर संबोधित करते थे। ऐसी थी उनकी विनम्रता।

पत्रकार हितों के लिए वह आजीवन लड़ते रहे

वह आईएफडब्ल्यूजे के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में देश विदेश में प्रख्यात रहे हैं। जुझारू, संघर्षशील जैसे शब्द उन बिल्कुल फिट होते हैं। पत्रकार हितों के लिए वह आजीवन लड़ते रहे, उनकी चिंता करते रहे हैं।

उनसे मेरा जुड़ाव तो बीस पच्चीस बरसों से ही रहा है लेकिन लखनऊ की पत्रकारिता में राव साहब लगभग साठ पैंसठ बरस से अपरिहार्य रहे हैं। पिछले वर्षों में मैं जब हेमवती नंदन बहुगुणा नामक ग्रंथ का संपादन कर रहा था तो राव साहब से आलेख मांगा। बहुगुणा जी पर उन्होंने ऐसा आलेख लिखा जो केवल वही लिख सकते थे। राव साहब जब अधिक अस्वस्थ रहने लगे तो मैं सिर्फ टेलीफोन पर उनसे बातें करता था। उम्रदराज होने के बावजूद जिज्ञासा प्रति जिज्ञासा उनमें रची बसी लगती थी। अस्वस्थता की स्थिति में भी उनकी हंसी में ऐसी खनक होती थी मानो उन्हें कुछ हुआ ही न हो। यह उनके आत्मविश्वास और आत्मबल का प्रमाण है।

राव साहब का व्यक्तित्व और व्यवहार ऐसा था कि बड़े-बड़े राजनेता राव साहब से संपर्क रखते हुए अपने को धन्य मानते थे। न जाने कितने प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और राज्यपाल उनकी लेखनी के प्रशंसक रहे हैं। मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी राव साहब का बहुत सम्मान करते हैं।

लंबे समय से अस्वस्थ

राव साहब लंबे समय से अस्वस्थ थे। उन्हें किडनी में समस्या थी। हफ्ते में दो दिन डायलिसिस हो रही थी लेकिन जिजीविषा ऐसी कि काल को मात देते हुए वह न केवल निरंतर लिखते रहे बल्कि कार्यक्रमों में शामिल होते रहे, और तो और कार्यक्रम आयोजित करते रहे हैं। अभी छह महीने पहले पत्रकारों का एक राष्ट्रीय कार्यक्रम वृंदावन में हुआ था तो राव साहब दो दिन लगातार इतने सक्रिय रहे, मानो कोई युवा हो। उनकी सक्रियता का आलम यह था कि अभी परसों ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलने गए थे। अपनी दो पुस्तकें भी उन्हें भेंट की थीं। उनकी 13 पुस्तकों का विमोचन प्रस्तावित था।

लेकिन ईश्वर की नियति कुछ और ही थी। आज सुबह उनकी तबियत बहुत बिगड़ गई। उनके सुपुत्र के. विश्वदेव राव अस्पताल ले गए लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका। के. विक्रम राव का जाना भारतीय पत्रकारिता की अपूरणीय क्षति है। पत्रकार समुदाय ही नहीं, उनके लेखों के लाखों पाठक भी उनके निधन से मर्माहत हैं। अभी कल उनका आलेख आया। मैंने प्रतिप्रश्न करते हुए कुछ जिज्ञासाओं को शांत करने का आलेख लिखने की उनसे अपेक्षा की थी। काश! नियति ने उन्हें कुछ समय और दिया होता तो शायद वह उन जिज्ञासाओं का समाधान भी दे पाते। श्रमजीवी पत्रकारों के लिए आजीवन संघर्ष करने वाले महायोद्धा के. विक्रम राव भले ही सशरीर हमारे बीच अब नहीं रहे लेकिन उनकी लेखनी, उनके विचार और उनका व्यक्तित्व हम सबके लिए सदैव प्रेरणादाई और मार्गदर्शक रहेगा। इन्हीं चंद शब्दों के साथ मैं अपने प्रिय लेखक, अग्रज, मनीषी और ऋषितुल्य राव साहब को अश्रुपूरित नेत्रों से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।

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Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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