सियासत की शतरंज में पुराना खिलाड़ी पर नई चाल! अखिलेश और आज़म की जोड़ी पास या फेल?

23 महीने की जेल के बाद आज़म खान ने राजनीति में वापसी की। समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव के साथ उनके संबंध, बसपा में शामिल होने की अफवाहें और उनके विवादित बयानों ने उत्तर प्रदेश की सियासत में हलचल मचा दी है।

Snigdha Singh
Published on: 24 Sept 2025 5:11 PM IST
सियासत की शतरंज में पुराना खिलाड़ी पर नई चाल! अखिलेश और आज़म की जोड़ी पास या फेल?
X

Azam Khan-Akhilesh Yadav: करीब 23 महीने की राजनीतिक साधना यानी जेलवास के बाद समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता आज़म खान एक बार फिर जनता के सामने हैं। चेहरे पर वही पुराना आत्मविश्वास, जुबान पर वही चुटीला अंदाज़ और शब्दों में वो धार, जो विरोधियों के लिए कभी खतरे की घंटी मानी जाती थी। इस बार भी उन्होंने वही किया जो वो सबसे अच्छे से करते हैं कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह जाना।मैं चरित्र वाला आदमी हूं, बेवकूफ हूं... पर इतना भी नहीं। बसपा में शामिल होने के सवाल पर जब आज़म खान ने कहा कि मैं चरित्र वाला आदमी हूं, बेवकूफ हूं, लेकिन इतना भी नहीं, तो जैसे उन्होंने एक ही लाइन में न केवल संभावित राजनीतिक अफवाहों को कुचल दिया, बल्कि विरोधियों को भी आइना दिखा दिया। यानि अगर राजनीति एक जुआ है, तो आज़म खान उस खिलाड़ी हैं जो पत्ते फेंकते नहीं, फेंटते हैं।

समाजवादी पार्टी से नाराज़गी? या सियासी संयम की नई परिभाषा?

जब उनसे पूछा गया कि जेल से रिहा होने पर समाजवादी पार्टी का कोई बड़ा नेता उन्हें लेने क्यों नहीं आया, तो जवाब आया मैं बड़ा आदमी नहीं, बड़ा खादिम हूं। क्या यह नम्रता थी या तंज़, यह समझना उतना ही मुश्किल है जितना कि नेताजी और अखिलेश के रिश्तों की गहराई। उनका कहना कि मुझे सोचने का वक़्त नहीं मिला कि मैं आया हूं या नहीं। ऐसा लगा जैसे जेल से कोई छुट्टी पर नहीं, ऑफिस से लंच ब्रेक पर निकला हो। अखिलेश यादव के लिए बयान शुक्रगुज़ारी में लिपटा संकेत अखिलेश बड़े नेता हैं, बड़ी पार्टी के नेता हैं। यह बयान सुनते ही राजनीतिक पंडितों के कान खड़े हो गए। क्योंकि जब कोई नेता दूसरे को बड़ा कहने लगे, तो समझ लीजिए या तो वो खुद छोटा हो गया है... या किसी और को छोटा साबित करना चाहता है। पर साथ ही यह कह देना कि अखिलेश मेरे उतने ही करीब हैं, जितने नेताजी थे इसमें या तो दिल की गहराई छिपी है या राजनीति की रणनीति। जो भी हो, आज़म खान के लहज़े में 'राजनीतिक व्याकरण' की कक्षा जरूर झलक रही थी।

टेक्नोलॉजी से दूरी और असलियत से नज़दीकी

पांच साल जेल में रहा, मोबाइल चलाना भूल गया, अब सिर्फ अपनी पत्नी का नंबर याद है। यह वाक्य जितना मासूम दिखता है, उतना ही व्यंग्यपूर्ण है। एक जमाना था जब आज़म खान 'रामपुर के स्मार्ट नेता' माने जाते थे। अब कह रहे हैं कि टेक्नोलॉजी भूल चुके हैं यानी या तो जेल में बहुत आत्ममंथन किया या फिर बाहर की सियासत अब उतनी स्मार्ट नहीं रही कि मोबाइल का उपयोग जरूरी हो।

किसी का इंतज़ार नहीं कर सकता, इंतज़ार अब किसका है?

मैं अब किसी का इंतज़ार नहीं कर सकता, ये वाक्य किसी प्रेम कहानी से निकला हुआ डायलॉग नहीं, बल्कि राजनीति के उस मोड़ की निशानी है जहां नेता दिल में दुविधा और जुबान पर दृढ़ता लेकर चलते हैं। यह संकेत है कि अब आज़म खान अपनी राह खुद तय करेंगे चाहे वो अखिलेश के साथ हो, उनसे अलग या राजनीति से पूरी तरह विरक्त। एक पंक्ति में खुद का पोस्टर बना दिया अब केस रद्द करने की ज़रूरत नहीं, इंसाफ मुझे सुप्रीम कोर्ट से मिलेगा। ये लाइन सुनते ही न्यायपालिका की भी भावनाएं मुस्कुरा गई होंगी। जब आज़म खान को अपने केसों की चिंता नहीं और उनका भरोसा संविधान में अडिग है, तो फिर उनके विरोधियों को चिंता जरूर होनी चाहिए। आजम खान बाहर जरूर आए हैं, लेकिन अभी भी वो अंदर की बातें कर रहे हैं। उनकी ज़ुबान वही पुरानी है थोड़ी सी मीठी, थोड़ी सी तीखी, और बहुत कुछ कहने से चूकी हुई।

1 / 1
Your Score0/ 1
Harsh Srivastava

Harsh Srivastava

Mail ID - [email protected]

Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

Next Story

AI Assistant

Online

👋 Welcome!

I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!