आईआईटी कानपुर की खोज: अब दवाओं के असर को रियल टाइम में समझेगा नया बायोसेंसर

Kanpur News: आईआईटी कानपुर ने दवाओं की रियल टाइम निगरानी के लिए बायोसेंसर बनाया

Avanish Kumar
Published on: 12 Sept 2025 2:49 PM IST
आईआईटी कानपुर की खोज: अब दवाओं के असर को रियल टाइम में समझेगा नया बायोसेंसर
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IIT Kanpur

Kanpur News: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर के शोधकर्ताओं ने चिकित्सा और फार्मा अनुसंधान क्षेत्र में एक बड़ी सफलता हासिल की है। प्रोफेसर अरुण के. शुक्ला के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की टीम ने एक नया एंटीबॉडी आधारित बायोसेंसर विकसित किया है, जो जीवित कोशिकाओं में जी प्रोटीन-कपल्ड रिसेप्टर्स (GPCRs) की सक्रियता की वास्तविक समय (रियल टाइम) में निगरानी कर सकता है।

गौरतलब है कि GPCRs मानव कोशिकाओं में सबसे बड़ी रिसेप्टर प्रोटीन फैमिली हैं और लगभग एक-तिहाई क्लिनिकल दवाएं इन्हीं को लक्षित करती हैं। इनके सही ढंग से कार्य करने की क्षमता सीधे-सीधे शरीर की विभिन्न गतिविधियों और रोगों से जुड़ी होती है। अब तक इन रिसेप्टर्स की सक्रियता को जीवित कोशिकाओं में ट्रैक करना वैज्ञानिकों के लिए कठिन चुनौती रही थी।

शोधकर्ताओं ने इस समस्या का समाधान खोजते हुए एक विशेष नैनोबॉडी सेंसर तैयार किया है। यह केवल उसी समय रिसेप्टर्स से जुड़ता है जब वे सक्रिय होते हैं और अरेस्टिन नामक प्रोटीन के साथ संपर्क करते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान एक एंजाइम प्रतिक्रिया ट्रिगर होती है, जो प्रकाशीय संकेत (luminescence) उत्पन्न करती है। इन संकेतों को मापा जा सकता है और इसी के आधार पर रिसेप्टर्स की गतिविधियों को समझा जा सकता है।

प्रोफेसर अरुण शुक्ला ने बताया, “इस बायोसेंसर की सबसे खास बात यह है कि इसमें GPCRs को किसी भी प्रकार से संशोधित (modify) करने की आवश्यकता नहीं होती। इसके जरिए हम बिना किसी बदलाव के रिसेप्टर्स की वास्तविक स्थिति और उनकी सक्रियता की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।”

आईआईटी कानपुर की पीएचडी शोधार्थी अनु दलाल, जो इस अध्ययन की प्रमुख लेखकों में से एक हैं, का कहना है, “यह सेंसर हमें अलग-अलग कोशिकीय हिस्सों में GPCRs की स्थिति समझने का अवसर देता है। इससे उनके सिग्नलिंग तंत्र की गहराई से जानकारी मिलती है, जो नई दवाओं और उपचार विकसित करने में सहायक होगी।”

यह शोध कार्य भारत और चेक गणराज्य के बीच संयुक्त अनुसंधान पहल का हिस्सा है। इसमें प्राग स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ ऑर्गेनिक केमिस्ट्री एंड बायोकैमिस्ट्री के प्रोफेसर जोसेफ लाजर की प्रयोगशाला ने सहयोग दिया। परियोजना को भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) का वित्तीय सहयोग प्राप्त हुआ।

यह उपलब्धि प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (PNAS), यूएसए जैसे प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशित हुई है, जो इसकी वैश्विक मान्यता का प्रमाण है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह शोध न केवल दवा विकास प्रक्रिया को तेज और अधिक सटीक बनाएगा, बल्कि गंभीर बीमारियों के लिए नए चिकित्सीय विकल्पों का मार्ग भी प्रशस्त करेगा।आईआईटी कानपुर की टीम के अन्य प्रमुख सदस्य—परिश्मिता शर्मा, मनीष यादव, सुधा मिश्रा, नशराह जैदी, दिव्यांशु तिवारी और नबरून रॉय—भी इस खोज में शामिल रहे।

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