सस्ते लोन बांटकर अपनी विस्तारवादी नीति को बढ़ावा दे रहा चीन, न चुका पाने वालों पर कस रहा शिकंजा, गरीब देशों में मचा हाहाकार

पिछले कुछ वर्षों में चीन ने वैश्विक मंच पर अपनी आर्थिक ताकत का भरपूर इस्तेमाल किया है। खासतौर पर विकासशील और कम आय वाले देशों को ऋण देकर चीन ने एक ऐसे जाल की बुनियाद रखी है, जिसमें आज कई देश फंसे हुए नजर आ रहे हैं। ताजा रिपोर्ट्स बताती हैं कि चीन द्वारा दिया गया कर्ज अब इन देशों पर भारी पड़ रहा है और यह उनके सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक ढांचे को प्रभावित कर रहा है।

Shivam Srivastava
Published on: 28 May 2025 6:00 AM IST (Updated on: 28 May 2025 6:00 AM IST)
सस्ते लोन बांटकर अपनी विस्तारवादी नीति को बढ़ावा दे रहा चीन, न चुका पाने वालों पर कस रहा शिकंजा, गरीब देशों में मचा हाहाकार
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बीते कुछ सालों में विस्तारवादी चीन ने विश्व भर में अपनी बढ़ती हुई आर्थिक ताकत जमकर उपयोग किया है। विकासशील और कम आये वाले देशों के लोन देकर उसने एक ऐसे चक्रव्यूह की शुरआत की है जिसमें आज की डेट में कई देश बुरी तरीके से फंसे नजर आ रहे हैं। रिपोर्ट्स की माने तो चीन द्वारा दिया गया सॉफ्ट लोन अब इन देशों के लिये टेढ़ी खीर साबित होने लगा है। जो वहां के आर्थिक और राजनैतिक ढांचे को बेहद प्रभावित कर रहां

पिछले कुछ वर्षों में चीन ने वैश्विक मंच पर अपनी आर्थिक ताकत का भरपूर इस्तेमाल किया है। खासतौर पर विकासशील और कम आय वाले देशों को ऋण देकर चीन ने एक ऐसे जाल की बुनियाद रखी है, जिसमें आज कई देश फंसे हुए नजर आ रहे हैं। ताजा रिपोर्ट्स बताती हैं कि चीन द्वारा दिया गया कर्ज अब इन देशों पर भारी पड़ रहा है और यह उनके सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक ढांचे को प्रभावित कर रहा है।

75 देश चीन के कर्ज तले दबे

Lowy Institute की तरफ से जारी हुई रिपोर्ट के मुताबिक इन 75 देशों को कुल मिलाकर अबतक 35 बिलियन डॉलर से अधिक का सॉफ्ट लोन दे रखा है जिसमें 22 बिलियन डॉलर की किस्तें इन देशों को इसी साल अदा करनी है। जिसके कारण इन देशों की सरकार पर जबरदस्त दबाव पड़ रहा है। जिसकी वजह से उन देशों में समस्या बढ़ सकती हैं जहां पहले ही संसाधनों और आधारभूत संरचना की कमी है।

ड्रैगन ने ये सभी कर्ज अपनी महत्वकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत दिये हैं। जिसके जरिये इन देशों में बड़े आधारभूत संरचनओं के निर्माण के लिये कर्ज बाटे थे। लेकिन अब धीरे-धीरे स्थितियों से स्पष्ट होता जा रहा है कि ये चीन की इन देशों को सहायता नहीं बल्कि उच्च ब्याज वाले लोन हैं। जिनके शर्तें कभी भी इन देशों के लिये पारदर्शी नहीं रही जिसकी वजह से इन देशों के अब गंभीर वित्तीय संकट से जूझना पड़ा रहा।

भारी कर्जों से पिस रही आम जनता

चीन से उच्च दरों पर लिये गये कर्जों की वजह से पहले से ही गरीबी की मार झेल रहे वहां के आम निवासियों को एक और झटका लगा क्योंकि जुड़ी बुनियादी सुविधायें जैसे स्वास्थय और शिक्षा के बजट पर सीधा असर पड़ रहा है क्योंकि देश को मिलने वाले अधिकांश टैक्स का हिस्सा चीन के कर्जों का चुकाने में चला जा रहा है। इसकी वजह से अफ्रीक, एशिया और लैटिन अमेरिका के कई देशों को आर्थिक संकट का भयंकर सामना करना पड़ा रहा।

रणनीति के तहत काम कर रहा ड्रैगन

कई विशेषज्ञों का मानना है कि ये सिर्फ एक मदद नहीं बल्कि दुनियाभर में अपने सामरिक हितों को साधने की भी प्लानिंग हैं। दरअसल होंडुरास, डोमिनिकन रिपब्लिक और सोलोमन द्वीप जैसे देशों को चीन ने तभी कर्ज दिया जब उन्होंने ताइवान के साथ अपने डिप्लोमैटिक संबंधों को खत्म कर वन चाइन पॉलिसी पर अपनी मुहर लगाई। जिसके 18 महीनों के अंदर ही चीन से इन्हें भारी भरकम लोन की मंजूरी मिल गई।

श्रीलंका और लाओस है बड़ा उदाहरण

चीन से लिया गया कर्ज एक देश को कैसे भयंकर मुश्किल में डाल सकता है इसका उदाहरण है लाओस जिसने बड़े पैमाने पर चीन से भारी कर्ज लेकर एनर्जी के क्षेत्र में बड़ा निवेश किया। लेकिन आज की तारीख में ये निवेश ही उसकी इकॉनमी के लिये भारी बोझ बन गया है। लोन नहीं चुका पाने के कारण इन देशों को अपने महत्पूर्ण संसाधनों से हाथ धोना पड़ा है जैसा की श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट पर चाईनीज नियंत्रण को लेकर देखा गया।

क्या चीन खुद ही दबाव में?

AidData के एक अनुमान के मुताबिक को लगभग दुनिया भर से करीब 385 बिलियन डॉलर का बकाया वसूलना है। साथ ही घेरलू स्तर पर लगातार कर्ज वसूलने का दबाव भी बन रहा है। यह स्थिति उसे और अधिक आक्रामक बना रही है। रिपोर्ट बताती हैं कि चीन अपने ऋण की वास्तविक स्थिति को बहुत कम दर्शाता है और पारदर्शिता की भारी कमी है।

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Shivam Srivastava is a multimedia journalist with over 4 years of experience, having worked with ANI (Asian News International) and India Today Group. He holds a strong interest in politics, sports and Indian history.

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